Short Funny Story in Hindi

नमस्कार दोस्तों, हमेशा की तरह आज फिर से हाजिर है एक नए पोस्ट Short Funny Story in Hindi के साथ। हम उम्मीद करते है की ये पोस्ट आपको पसंद आएगा और आप इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करेंगे।

कंजूस का बेटा महाकंजूस

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एक दिन एक बहुत बड़े कंजूस सेठ के घर में कोई मेहमान आया। तभी कंजूस सेठ ने अपने बेटे से कहा कि – बेटा मेहमान के लिए आधा किलो बेहतरीन मिठाई ले आओ। बेटा बाहर गया और कई घंटे के बाद वापस घर आया। तब कंजूस सेठ ने पूछा बेटा मिठाई कहां है? बेटे ने कहना शुरू किया अरे पिताजी! पहले में मिठाई की दुकान पर गया और हलवाई से बोला की सबसे अच्छी मिठाई दे दो। तब हलवाई ने कहा – बेटा मैं तुम्हें ऐसी मिठाई दूंगा बिल्कुल मक्खन जैसी। फिर मैंने सोचा क्यों ना मक्खन ही ले लूं?

तभी मैं मक्खन लेने दुकान गया और दुकानदार से कहा सबसे बढ़िया मक्खन दे दो। तब दुकान वाला बोला कि ऐसा मक्खन दूंगा बिल्कुल शहद जैसा। फिर मैंने सोचा क्यों ना शहद ही ले लूं। तब मैं शहद वाले के पास गया और उससे कहा कि सबसे अच्छा शहद दे दो। शहद वाला बोला ऐसा शहद दूंगा बिल्कुल पानी जैसा साफ। तो पिताजी फिर मैंने सोचा कि पानी तो अपने घर पर ही है और मैं खाली हाथ घर चला आया।

कंजूस बहुत खुश हुआ और अपने बेटे को खूब शाबाशी दी। लेकिन तभी कंजूस सेठ के मन में एक ख्याल आया और अपने बेटे से पूछा कि बेटा तू इतनी दूर घूम कर आया तेरी चप्पल तो घुस गई होगी? तब कंजूस का बेटा बोला नहीं पिताजी मैं तो घर पर आए मेहमान की चप्पल पहन कर गया था।

बेटे की यह बात सुनकर कंजूस बाप की आंखों में खुशी के आंसू आ गए। उसने अपने बेटे को गले से लगा लिया और कहा कि बेटा जीवन में तुम मुझसे भी कई ज्यादा कंजूस बनेगा। पैसा बचाने में तो खूब आगे बढ़ेगा।

मेहमानों की ख़ातिरदारी

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एक शहर में बहुत ही कंजूस पति-पत्नी रहते थे। कंजूस इतने की हर रात खाने के वक्त किसी न किसी दोस्त या रिश्तेदार के घर पहुंच जाते। औपचारिकता दिखाते हुए पूछे जाने पर की क्या वह दोनों भोजन करेंगे? तो झट से उनके साथ खाना खाने के लिए बैठ जाते। अपनी छुट्टियां मनाने कभी एक तो कभी दूसरे के घर डेरा डाल देते और खूब मौज मस्ती करते। अपनी खातिर करवाना और रोज नए-नए पकवान की फरमाइश करना तो वह अपना हक समझते थे। लेकिन जब कोई उनके घर आने की बात करता तो कोई ना कोई वजह बता कर उन्हें टाल देते।

एक दिन उनकी बुआ और उनके परिवार बिना बताए उनके घर पहुंच गया। काफी देर तक गप्पे मारने के बाद कंजूस पति-पत्नी को लगा कि अब तो रात का खाना खिलाना ही पड़ेगा। मगर उनका कंजूस मन उन्हें खर्च करने से रोक रहा था। तभी पति को एक उपाय सूझा। बुआ जी की तरफ देखकर पति ने बोला – आज बहुत दिनों बाद घर आई हो तुम जल्दी से कुछ नहीं तो दाल चावल साथ में मटर पनीर बना लो।

मटर पनीर का नाम सुनते ही पत्नी परेशान हो गई और मन में सोचने लगी कि जब देखो मुंह उठाकर चले आते हैं। अब मटर पनीर पर इतना खर्चा करना पड़ेगा। वह मन ही मन गुदगुदाती हुई रसोई घर में जा घुसी। पीछे-पीछे पति महोदय भी पहुंच गए और अपनी योजना सुनाने लगे।पति ने कहा – देखो तुम सिर्फ दाल चावल ही बना लो लेकिन इन्हें ऐसा लगना चाहिए कि हम इन्हें मटर पनीर खिलाना चाहते हैं। पत्नी की समझ में नहीं आया तो पूछा यह कैसे होगा कि हम दाल और चावल परोसे और उन्हें लगे कि हम उन्हें मटर पनीर खिलाना चाहते हैं।

तब पति ने अपनी योजना बताई – ऐसा करना की रसोई में जाकर दाल चावल बना लो। जब तैयार हो जाए तो मुझे आवाज लगाना की खाना तैयार है आप प्लेट टेबल लगा लो। पत्नी ध्यान से सारी बात सुनती रही और आगे की योजना सुनने को बेताब होने लगी। तब पति ने अपनी असली योजना बताई पति ने कहा जब मैं प्लेट लगा चुका हूं तो तुम खाली कढ़ाई किचन में फर्श पर गिरा देना। तब मैं पूछूंगा कि क्या गिरा तो तुम जवाब देना मटर पनीर की कढ़ाई गिर गई। मटर पनीर बचा नहीं तो दाल चावल ही खाने पड़ेंगे।

पत्नी योजना सुनकर दाल चावल बना ले लगी और कुछ देर बाद पति को आवाज़ लगाई खाना बन गया है आप टेबल पर प्लेट लगा दो। पति उठा और अलमारी से प्लेट लेकर टेबल पर सजाने लगा। तभी धड़ाम से कुछ बर्तन गिरने की आवाज आई। पति ने पूछा क्या गिरा दिया तो पत्नी की तरफ से कोई जवाब न मिलने पर वह रसोई घर की तरफ भागा। रसोई में देखा तो दाल का कढ़ाई जमीन पर गिर पड़ा था।

दोनों पति-पत्नी को मानो सांप सुन गया। जब दाल ही गिर गई तो मटर पनीर का बहाना तो फेल हो गया। तब पति को बड़े ही दुखी मन से बाजार से दाल और मटर पनीर मंगवाकर बुआ जी और उनके परिवार को परोसना पड़ा। उनकी कंजूसी के चलते उन्हें लेने के देने पड़ गए। चले थे पैसे बचाने और बाजार से दुगनी कीमत पर खाना मंगवाकर अपने मेहमानों को खिलाना पड़ा।

ठाकुर का उल्लू

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किसी गांव में एक ठाकुर रहता था। ठाकुर साहब बड़े ठाट बाट से रहते थे। ठाकुर साहब को पक्षी पालने का बड़ा शौक था। उनके पास एक उल्लू था । वैसे तो उस उल्लू में कोई विशेषता नहीं थी पर ठाकुर साहब ने उसे एक विशेष आदत का अभ्यास कर दिया था। उनके आदेश पर वह सोने के सिक्के को निगल जाता था और उनके आदेश देने पर सिक्के को मुंह से उगल भी देता था।

ठाकुर साहब ने उसे यह तक अभ्यास करा दिया था कि वह उल्लू एक बार में पांच सिक्के तक निकल जाता था और आदेश अनुसार उन्हें एक-एक कर उगल देता था। अपने उल्लू की इस विशेषता को ठाकुर साहब ने किसी को नहीं बताया था।

ठाकुर साहब की एक पुत्री थी। उन्हें उसका विवाह अचानक तय करना पड़ा और विवाह की तिथि भी 10 दिन बाद की निश्चित हो गई। बेटी का विवाह सर पर था और ठाकुर साहब ठनठन गोपाल थे। एक पैसा पास नहीं था समस्या विकट थी। पर वह घबराए नहीं। उन्होंने निश्चित कर लिया की बेटी का विवाह निश्चित तिथि पर ही धूमधाम से होगा। ठाकुर साहब के गांव में एक साहूकार था जो ब्याज पर पैसे दिया करता था

एक दिन ठाकुर साहब इस साहूकार के पास गए और बोले सेठ जी मेरी बेटी का विवाह अचानक सर पर आ पड़ा है कुछ मदद कीजिए। ठाकुर साहब की बात सुनकर साहूकार ने पूछा कितना रुपए चाहिए? ठाकुर साहब बोले यही कोई 10000 से काम चल जाएगा। यह सुनकर साहूकार पहले चौक गया फिर कुछ सोचकर बोला गिरवी रखने को क्या लाए हो? ठाकुर साहब गिरवी की बात सुनकर चौंक गए और बोले भाई लाया तो मैं कुछ भी नहीं हूं। मैं तो लेने आया हूं लेकिन क्या आपको मुझ पर विश्वास नहीं है जो ऐसी बात कर रहे हो?

साहूकार बोला – विश्वास तो आप पर और आपकी नीयत पर किसे नहीं होगा पर व्यापार में विश्वास से ही काम नहीं चलता। लेनदेन का काम अपने नियमों पर ही चलना चाहिए। यह सुनकर ठाकुर साहब कुछ देर सोच में पड़ गए। फिर कुछ सोचकर बोले ठीक है सेठ जी मेरे पास एक बहुमूल्य चीज है।

हालांकि उसे मैं किसी कीमत पर भी नहीं देता पर बेटी का ब्याह करना है इसलिए मजबूरी में उसे ही मैं आपके यहां गिरवी रख दूंगा। बहुमूल्य चीज की बात सुनकर सेठ के मुंह में पानी आ गया और उत्सुकता से बोला ऐसी कौन सी चीज आपके पास है? ठाकुर साहब ने धीरे से सेठ के कान में कहा – एक उल्लू है सेठ जी सुनहरी उल्लू।

साहूकार चौक कर बोला – उल्लू सोने का उल्लू कितने तोले का है? ठाकुर साहब बोले – सोने का बना हुआ नहीं जीता जागता उल्लू है सेठ जी। यह सुनकर सेठ हंसा और बोला आप भी मजाक करते हैं ठाकुर साहब। मैंने तो समझा कि 10, 20 तोले का सोने का उल्लू होगा। अब ठाकुर साहब ने फुलझड़ी छोड़ी – अरे सेठ जी यह उल्लू सोने का एक सिक्का रोज निकालता है। सोने के सिक्के की बात सुनकर सेठ की आंखें खुली की खुली रह गई। ठाकुर साहब समझ गए कि तीर चल गया। वह अपनी बात पर और जोर देते हुए बोले हां सोने का सिक्का आप परीक्षा लेकर देख लीजिए।

साहूकार मान गया अगले दिन ठाकुर साहब उल्लू को 5 सिक्के खिलाकर साहूकार के यहां ले गए। उल्लू को सामने बिठाकर बोले निकाल बेटा और उल्लू ने झट से एक सिक्का उगल दिया। दूसरे दिन भी ठाकुर साहब ने साहूकार के सामने एक सिक्का उगलवाई और तीसरे दिन सेठ से कहा कि अब वह उल्लू को आदेश दें। उत्सुकता से भरा साहूकार बोला निकाल बेटा और उल्लू ने एक सिक्का उगल दी। सेठ का मन उछलने लगा उसने तुरंत चांदी के ₹10000 सिक्के ठाकुर साहब को दे दिया।

ठाकुर साहब ने बोला – सेठ जी साड़ी के बाद मै आऊँगा और अपना उल्लू ले जाऊंगा। साहूकार मुस्कुराते हुए बोला – अरे ठाकुर साहब कोई जल्दी नहीं है आराम से लौटाइएगा। ठाकुर साहब चले गए।

साहूकार उल्लू के लिए एक खूबसूरत पिंजरा लाया और उसमें उसे बिठाकर अपने सामने के कमरे में टांग लिया। उल्लू के पेट में दो सिक्के बची थी। अगले दो दिनों तक उसने वह सिक्के उगल दी किंतु तीसरे दिन साहूकार के खिलाई हुई रबड़ी उगल दी। अब अगले दो-तीन दिनों तक रबड़ी उगलने का क्रम चलता रहा तो साहूकार घबरा गया और नौकरों को भेजकर ठाकुर साहब को बुलवाया।

ठाकुर ने आते ही कहा – कहिए सेठ जी कैसे याद किया ? सेठ झल्ला कर बोला – ठाकुर तुमने मेरे साथ धोखा किया है। ठाकुर बोल धोखा मैंने क्या धोखा दिया आपको? सेठ ने गुस्से में काटते हुए कहा – हां तुमने धोखा दिया है तुम बेईमान हो तुम्हारा उल्लू बेईमान है। वह तीन दिनों से सिक्का नहीं उगल रहा। ठाकुर तो असलियत जानता ही था। मगर दिखावे के लिए पूछा – अच्छा तो फिर क्या उगल रहा है? साहूकार ने माथा ठोक कर कहा यह तो रबड़ी उगल रहा है।

यह सुनते ही ठाकुर ने ठहाका लगाया और बोला तो इसमें उल्लू का क्या कसूर है सेठ जी ? आपने रबड़ी खिलाई थी सो उसने रबड़ी उगल दी। यदि आप उसे सिक्का खिलाते तो वह सिक्का उगलता आखिर ठाकुर का उल्लू है बेईमानी थोड़े ही करेगा। जो खाएगा वही तो उगलेगा। यह कहकर ठाकुर साहब खिलखिलाते हुए साहूकार के घर से बाहर निकल गए। सेठ उल्लू की तरफ और उल्लू सेठ की तरफ देखता ही रह गया।

खुजली

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एक दिन एक राजा ने एक भिखारी को महल के दरवाजे के सामने अपनी पीठ रगड़ते हुए देखा। उसने अपने सिपाहियों से भिखारी को पड़कर राज दरबार में ले आने को कहा। सिपाही फौरन गए और भिखारी को पकड़ कर ले आए। राजा ने उससे पूछा तुम महल के दरवाजे के सामने अपनी पीठ क्यों खुजला रहे थे? भिखारी बोला – महाराज मेरी पीठ में खुजली हो रही थी इसलिए मैं महल के दरवाजे के सामने पीठ खुजला रहा था। राजा ने यह सुनने के बाद अपने सिपाहियों को आदेश दिया इस भिखारी को 20 स्वर्ण मुद्राएं दी जाए।

जल्दी ही यह खबर पूरे राज्य में आग की तरह फैल गई। कुछ समय बाद राजा ने दो अन्य भिखारी को महल के सामने अपनी पीठ रगड़ते देखा। उन्हें भी बुलवाकर राजा ने उनसे पीठ खुजाने का कारण पूछा उन्होंने भी जवाब दिया कि उनकी पीठ में खुजली हो रही थी। यह सुनकर राजा ने अपने सिपाहियों से कहा – इन भिखारी की पीठ की खुजली ठीक करने के लिए उनकी पीठ पर 20-20 कोड़े लगाओ।

यह सुनकर दोनों तुरंत बोले – लेकिन महाराज आपने तो एक अन्य भिखारी को 20 स्वर्ण मुद्राएं दी थी। राजा बोला – उसने सच कहा था लेकिन तुम दोनों झूठ बोल रहे हो। यदि चाहते तो तुम दोनों एक दूसरे की पीठ खुजला सकते थे। तुम दोनों यहां सिर्फ लालच के कारण ही आए हो। दोनों भिखारी अपनी करनी पर शर्मिंदा थे।

दोस्तों हम उम्मीद करते है की आज की पोस्ट Short Funny Story in Hindi आपको पसंद आई होगी। आपको ये कहानी कैसी लगी ये आप कमेन्ट करके बता सकते है। हम आगे भी आपके लिए ऐसे ही पोस्ट लेकर आते रहेंगे।

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