Hindi Story for Children

दोस्तों, बचपन मे बच्चों का कहानियों से एक अनोखा रिश्ता होता है। इन कहानियों से जिंदगी की छोटी से छोटी सिख बहुत आसानी से मिल जाती है। बच्चे जो भी अपने अगल बगल सुनते है वैसे ही उनका व्यक्तित्व निखरता है। तो दोस्तों, आज हम आपके लिए कुछ ऐसे ही Hindi Story for Children लेकर आए है। हम उम्मीद करते है की ये पोस्ट आपको पसंद आएगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करेंगे।

हाथी और शेर की कहानी

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एक बार एक जंगल में एक शेर अकेला बैठा हुआ था। वह अपने बारे में सोच रहा था कि मेरे पास तो तेज धारदार मजबूत पंजे और दांत हैं। साथ ही मैं एक बहुत ही ताकतवर जानवर भी हूं, लेकिन फिर भी जंगल के सारे जानवर हमेशा मोर की ही तारीफ क्यों करते रहते हैं।

दरअसल, शेर को इस बात से बहुत जलन महसूस होती थी कि सभी जानवर मोर की तारीफ करते थे। जंगल के सभी जानवर कहते थे कि मोर जब भी अपने पंख फैलाकर नाचता है, तो वह बहुत सुंदर लगता है। यही सब सोचकर शेर बहुत दुखी हो रहा था। वह सोच रहा था कि इतना ताकतवर होने और जंगल का राजा होने पर भी कोई उसकी तारीफ नहीं करता है। ऐसे में उसके इस जीवन का क्या मतलब है।

तभी वहां से एक हाथी जा रहा था। वह भी काफी दुखी था। जब शेर ने उस दुखी हाथी को देखा, तो उससे पूछा – “तुम्हारा शरीर इतना बड़ा है और तुम ताकतवर भी हो। फिर भी इतने दुखी क्यों हो? तुम्हें क्या परेशानी है?”
दुखी हाथी को देखकर शेर ने सोचा कि क्यों न मैं इस हाथी के साथ अपना दुख बांट लूं। उसने आगे कहते हुए हाथी से पूछा – “कि क्या इस जंगल में ऐसा कोई जानवर है, जिससे तुम्हें जलन होती हो और वह तुम्हें हानि पहुंचाता हो?”
शेर की बात सुनकर हाथी ने कहा – “जंगल का सबसे छोटा जानवर भी मुझ जैसे बड़े जानवर को परेशान कर सकता है।”
शेर ने पूछा – “वह कौन सा छोटा जानवर है?”
हाथी ने कहा – “महाराज, वो जानवर चींटी है। वह इस जंगल में सबसे छोटी है, लेकिन जब भी वो मेरे कान में घुसती है, तो मैं दर्द के मारे पागल हो जाता हूं।”

हाथी की बात सुनकर शेर को समझ में आ गया कि मोर तो मुझे चींटी की तरह परेशान भी नहीं करता है, फिर भी मुझे उससे जलन होती है। ईश्वर ने सभी प्राणियों को अलग-अलग खामियां और खूबियां दी हैं। इसी वजह से सारे प्राणी एक जैसे ही ताकतवर या कमजोर नहीं हो सकते हैं। इस तरह शेर को यह समझ में आ गया कि उस जैसे ताकतवर जानवर में भी खूबियों के साथ कमियां हो सकती है। इससे शेर के मन में उसका खोया हुआ आत्मविश्वास फिर से बढ़ गया और उसने मोर से जलन करना बंद कर दिया।

कहानी से सीख: हमें कभी भी किसी की खूबी देखकर उससे नहीं जलना चाहिए, क्योंकि हम सभी में अलग-अलग खूबियां और खामिंया होती है।

Hindi Story for Children – मिट्टी के खिलौने की कहानी

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बहुत समय पहले चुई गांव में एक कुम्हार रहता था। वो हर रोज मिट्टी के बर्तन और खिलौने बनाकर उन्हें बेचने के लिए शहर जाता था। इसी से जैसे-तैसे उसका जीवन चल रह था। हर दिन की तंगी से परेशान होकर एक दिन उसकी पत्नी ने उससे कहा कि मिट्टी के बर्तन बनाकर बेचना बंद करो। अब सीधे शहर जाओ और किसी नौकरी की तलाश करो, ताकि हम लोग कुछ धन कमा सकें।

कुम्हार को भी अपनी पत्नी की बात सही लग रही थी। वह खुद भी अपनी हालत से परेशान था। वह शहर गया और वहां जाकर नौकरी करने लगा। भले ही वह नौकरी करता था, लेकिन उसका मन मिट्टी के खिलोने और बर्तन बनाने का करता रहता था। फिर भी वह मन मारकर चुपचाप अपनी नौकरी करने में लगा रहा। ऐसे ही उसे नौकरी करते हुए काफी समय गुजर गया। वह जहां काम करता था, उसके मालिक ने एक दिन उसे अपने बेटे के जन्मदिन पर बुलाया। जन्मदिन के उपहार के तौर पर हर कोई महंगे-महंगे तोहफे खरीदकर ले गया था। कुम्हार ने सोचा कि हम गरीबों का तोहफा भला कौन ही देखता है, इसलिए मैं मालिक के बच्चे को मिट्टी का खिलौना बनाकर दे देता हूं।

यही सोचकर उसने मालिक के बेटे के लिए एक मिट्टी का खिलौना बनाया और उसे उपहार के तौर पर दे दिया। जब जन्मदिन की दावत खत्म हुई, तो मालिक के बेटे और उसके साथ के दूसरे बच्चों को मिट्टी का खिलौना खूब पसंद आया। वहां मौजूद सभी बच्चे वैसा ही मिट्टी का खिलौना लेने की जिद करने लगे। बच्चों की जिद देखकर व्यापारी की दावत में मौजूद हर कोई उस मिट्टी के खिलौने की चर्चा करने लगा। हर किसी के मुंह में एक ही सवाल था कि आखिर यह शानदार खिलौना कौन लेकर आया है? तब वहां मौजूद लोगों में से किसी एक ने बताया कि उनका नौकर यह खिलौना लेकर आया है। यह सुनकर हर कोई हैरान हो गया।

फिर वो सभी कुम्हार से उस खिलौने के बारे में पूछने लगे। सबने एक सुर में कहा कि तुमने इतना महंगा और सुंदर खिलौना कहां से और कैसे खरीदा? हमें भी बताओ अब हमारे बच्चे इसी खिलौने को पाने की जिद कर रहे हैं। कुम्हार ने उन्हें बताया कि यह कोई महंगा खिलौना नहीं है, बल्कि इसे मैंने खुद अपने हाथों से बनाया है। मैं अपने गांव में पहले यही बनाकर बेचा करता था। इस काम से कमाई बहुत कम होती थी, इसलिए मुझे यह काम छोड़कर शहर आना पड़ा और अब यह नौकरी कर रहा हूं।

कुम्हार का मालिक यह सब सुनकर बहुत हैरान हुआ। उसने कुम्हार से कहा, ‘क्या तुम ऐसा ही खिलौना यहां मौजूद हर एक बच्चे के लिए भी बना सकते हो?’
कुम्हार ने खुश होकर कहा, ‘ हां मालिक, ये तो मेरा काम है। मुझे मिट्टी के खिलौने बनाना खूब पसंद है। मैं इन सभी बच्चों को अभी तुरंत खिलौने बना कर दे सकता हूं।”
इतना कहने के बाद कुम्हार ने मिट्टी जुटाई और खिलौने बनाने में जुट गया। कुछ ही देर में रंग-बिरंगे कई सारे मिट्टी के खिलौने बनकर तैयार थे।

कुम्हार की यह कलाकारी देखर उसका मालिक हैरान होने के साथ ही काफी खुश भी हुआ। वह मन-ही-मन मिट्टी केे खिलौनों का व्यापार करने की सोचने लगा। उसके मन में हुआ कि वह कुम्हार से मिट्टी के खिलौने बनवाएगा और फिर खुद उन्हें बेचे देगा। उसने यही सोचकर कुम्हार को मिट्टी के खिलौने बनाने का काम दे दिया। कुम्हार का मालिक उसके मिट्टी के खिलौने बनाने के हुनर से खुश था, इसलिए उस व्यापारी ने कुम्हार को रहने के लिए अच्छा घर और मोटी तनख्वाह भी देने का फैसला किया। कुम्हार अपने मालिक की इस पेशकश से काफी खुश था। वो तुरंत अपने गांव गया और परिवार वालों को अपने साथ रहने के लिए लेकर आ गया।

खाने की तंगी और पैसों की कमी से जूझ रहा कुम्हार का परिवार आराम से व्यापारी के द्वारा दिए हुए घर में रहने लगे। कुम्हार द्वारा बनाए गए खिलौनों से उस व्यापारी को काफी मुनाफा भी हुआ। इस तरह से सब अपनी जिंदगी आनंद और खुशी के साथ जीने लगे।

कहानी से सीख – हुनर कभी भी इंसान का साथ नहीं छोड़ता। अगर कोई किसी काम में माहिर है, तो उसका वह हुनर उसे मुश्किल परिस्थितियों से बाहर निकाल सकता है।

चतुर मुर्गे की कहानी

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एक घने जंगल में एक पेड़ पर मुर्गा रहा करता था। वह रोज सुबह सूरज निकलने से पहले उठ जाता था। उठने के बाद वह जंगल में दाना-पानी चुगने के लिए चला जाता था और शाम होने से पहले वापस लौट आता था। उसी जंगल में एक चालाक लोमड़ी भी रहती थी। वह रोज मुर्गे को देखती और सोचती, “कितना बड़ा और बढ़िया मुर्गा है। अगर यह मेरे हाथ लग जाए, तो कितना स्वादिष्ट भोजन बन सकता है”, लेकिन मुर्गा कभी भी उस लोमड़ी के हाथ नहीं आता था।

एक दिन मुर्गे को पकड़ने के लिए लोमड़ी ने एक तरकीब निकाली। वह उस पेड़ के पास गई, जहां मुर्गा रहता था और कहने लगी, “अरे ओ मुर्गे भाई! क्या तुम्हें खुशखबरी मिली? जंगल के राजा और हमारे बड़ों ने मिलकर सारे लड़ाई-झगड़े खत्म करने का फैसला किया है। आज से कोई जानवर किसी दूसरे जानवर को नुकसान नहीं पहुंचाएगा। इसी बात पर आओ, नीचे आओ। हम गले लगकर एक दूसरे को बधाई दें।”

लोमड़ी की यह बात सुनकर मुर्गे ने मुस्कुराते हुए उसकी तरफ देखा और कहा, “अरे वाह लोमड़ी बहन, ये तो बहुत अच्छी खबर है। पीछे देखो, शायद इसलिए हमसे मिलने हमारे कुछ और दोस्त भी आ रहे हैं।”
लोमड़ी ने हैरान हो कर पूछा, “दोस्त? कौन दोस्त?” मुर्गे ने कहा, “अरे वो शिकारी कुत्ते, वो भी अब हमारे दोस्त हैं न?” कुत्तों का नाम सुनते ही, लोमड़ी ने न आव देखा न ताव और उनके आने की उल्टी दिशा में दौड़ पड़ी।

मुर्गे ने हंसते हुए लोमड़ी से कहा, “अरे-अरे लोमड़ी बहन, कहां भाग रही हो? अब तो हम सब दोस्त हैं न?” “हां-हां दोस्त तो हैं, लेकिन शायद शिकारी कुत्तों को अभी तक यह खबर नहीं मिली है”, यह कहते हुए लोमड़ी वहां से भाग निकली और मुर्गे की सूझबूझ की वजह से उसकी जान बच गई।

कहानी से सीख: बच्चों, चतुर मुर्गा और चालक लोमड़ी की कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि किसी भी बात पर आसानी से विश्वास नहीं करना चाहिए और चालाक लोगों से हमेशा सावधान रहना चाहिए।

मेंढक और चूहा की कहानी

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बहुत समय पहले की बात है, किसी घने जंगल में एक छोटा-सा जलाशय था। उसमें एक मेंढक रहा करता था। उसे एक दोस्त की तलाश थी। एक दिन उसी जलाशय के पास के एक पेड़ के नीचे से चूहा निकला। चूहे ने मेंढक को दुखी देखकर उससे पूछा, दोस्त क्या बात है तुम बहुत उदास लग रहे हो। मेंढक ने कहा, ‘मेरा कोई दोस्त नहीं है, जिससे में ढेर सारी बातें कर सकूं। अपना सुख-दुख बताऊं।’ इतना सुनते ही चूहे ने उछलते हुए जवाब दिया, ‘अरे! आज से तुम मुझे अपना दोस्त समझो, मैं तुम्हारे साथ हर वक्त रहूंगा।’ इतना सुनते ही मेंढक बेहद खुश हुआ।

दोस्ती होते ही दोनों घंटों एक दूसरे से बातें करने लगे। मेंढक जलाशय से निकलकर कभी पेड़ के नीचे बने चूहे के बिल में चला जाता, तो कभी दोनों जलाशय के बाहर बैठकर काफी बातें करते। दोनों के बीच की दोस्ती दिनों-दिन काफी गहरी होती गई। चूहा और मेंढक अपने मन की बात अक्सर एक दूसरे से साझा करते थे। होते-होते मेंढक के मन में हुआ कि मैं तो अक्सर चूहे के बिल में उससे बातें करने जाता हूं, लेकिन चूहा मेरे जलाशय में कभी नहीं आता। ये सोचते-सोचते चूहे को पानी में लाने की मेंढक को एक तरकीब सूझी।

चालाक मेंढक ने चूहे से कहा, ‘दोस्त हमारी मित्रता बहुत गहरी हो गई है। अब हमें कुछ ऐसा करना चाहिए, जिससे एक दूसरों की याद आते ही हमें आभास हो जाए।’ चूहे ने हामी भरते हुए कहा, ‘हां जरूर, लेकिन हम ऐसा करेंगे क्या?’ दुष्ट मेंढक फटाक से बोला, ‘एक रस्सी से तुम्हारी पूंछ और मेरा एक बार पैर बांध दिया जाए, तो जैसे ही हमें एक दूसरे की याद आएगी तो हम उसे खींच लेंगे, जिससे हमें पता चल जाएगा।’ चूहे को मेंढक के छल का जरा भी अंदाजा नहीं था, इसलिए भोला चूहा एकदम इसके लिए राजी हो गया। मेंढक ने जल्दी-जल्दी अपने पैर और चूहे की पूंछ को बांध दिया। इसके बाद मेंढक ने एकदम पानी में छलांग लगा ली। मेंढक खुश था, क्योंकि उसकी तरकीब काम कर गई। वहीं, जमीन पर रहने वाले चूहे की पानी में हालत खराब हो गई। कुछ देर छटपटाने के बाद चूहा मर गया।

बाज आसमान में उड़ते हुए यह सब रहा था। उसने जैसे ही पानी में चूहे को तैरते हुए देखा तो बाज तुरंत उसे मुंह में दबाकर उड़ गया। दुष्ट मेंढक भी चूहे से बंधा हुआ था, इसलिए वो भी बाज के चंगुल में फंस गया। मेंढक को पहले तो समझ ही नहीं आया कि हुआ क्या। वो सोचने लगा आखिर वो आसमान में उड़ कैसे रहा है। जैसे ही उसने ऊपर देखा तो बाज को देखकर वो सहम गया। वो भगवान से अपनी जान की भीख मांगने लगा, लेकिन चूहे के साथ-साथ बाज उसे भी खा गया।

मेंढक और चूहा की कहानी से सीख

दूसरों का नुकसान पहुंचाने की सोच रखने वालों को खुद भी नुकसान उठाना पड़ता है। जो जैसा करता है, वो वैसा ही भरता है। इसलिए बच्चों, दुष्ट लोगों से दोस्ती नहीं करनी चाहिए और हर किसी की हां में हां नहीं मिलानी चाहिए, बल्कि अपनी बुद्धि का भी प्रयोग करना चाहिए।

Hindi Story for Children – धोबी का गधा की कहानी

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किसी एक गांव में एक धोबी अपने गधे के साथ रहता था। वह रोज सुबह अपने गधे के साथ लोगों के घरों से गंदे कपड़े लाता और उन्हें धोकर वापस दे आता। यही उसका दिनभर का काम था और इसी से उसकी रोजी-रोटी चलती थी। गधा कई सालों से धोबी के साथ काम कर रहा था और समय के साथ-साथ अब वह बूढ़ा हो गया था। बढ़ती उम्र ने उसे कमजोर बना दिया था, जिस वजह से वह ज्यादा कपड़ों का वजन नहीं उठा पाता था।

एक दोपहर, धोबी अपने गधे के साथ कपड़े धोने धोबी घाट जा रहा था। धूप तेज थी और गर्मी की वजह से दोनों की हालत खराब हो रही थी। गर्मी के साथ-साथ कपड़ों के अधिक वजन के कारण गधे को चलने में परेशानी हो रही थी। वो दोनों घाट की तरफ जा ही रहे थे कि अचानक गधे का पैर लड़खड़ाया और वह एक गहरे गड्ढे में गिर गया।

अपने गधे को गड्ढे में गिरा देख धोबी घबरा गया और उसे बाहर निकालने के लिए जतन करने लगा। बूढ़ा और कमजोर होने के बावजूद, गधे ने गड्ढे से बाहर निकलने में अपनी सारी ताकत लगा दी, लेकिन गधा और धोबी दोनों नाकामयाब रहे। धोबी को इतनी मेहनत करते देख कुछ गांव वाले उसकी मदद के लिए पहुंच गए, लेकिन कोई भी उसे गड्ढे से बाहर नहीं निकाल पाया।

तब गांव वालों ने धोबी से कहा कि गधा अब बूढ़ा हो गया है, इसलिए समझदारी इसी में है कि गड्ढे में मिट्टी डालकर उसे यहीं दफना दिया जाए। थोड़ा मना करने के बाद, धोबी भी इस बात के लिए राजी हो गया। गांव वालों ने फावड़े की मदद से गड्ढे में मिट्टी डालना शुरू कर दिया। जैसे ही गधे को समझ आया कि उसके साथ क्या हो रहा है, तो वह बहुत दुखी हुआ और उसकी आंखों से आंसू निकलने लगे। गधा कुछ देर चिल्लाया, लेकिन कुछ देर बाद वह चुप हो गया।

अचानक धोबी ने देखा कि गधा एक विचित्र हरकत कर रहा है। जैसे ही गांव वाले उस पर मिट्टी डालते, वह अपने शरीर से मिट्टी को नीचे गड्ढे में गिरा देता और उस मिट्टी के ऊपर चढ़ जाता। ऐसा लगातार करते रहने से गड्ढे में मिट्टी भरती रही और गधा उस पर चढ़ते हुए ऊपर आ गया। अपने गधे की इस चतुराई को देखकर धोबी की आंखों में खुशी के आंसू आ गए और उसने गधे को गले से लगा लिया।

कहानी से सीख: बच्चों, ‘धोबी का गधा’ कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि मुश्किल से मुश्किल परिस्थिति में भी आप अपनी बुद्धि का प्रयोग कर कठिनाइयों को पार कर सकते हैं।

आलसी गधे की कहानी

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किसी गांव में एक गरीब व्यापारी अपने गधे के साथ रहा करता था। व्यापारी का घर बाजार से कुछ दूरी पर ही था। वह रोज गधे की पीठ पर सामान की बोरियां रखकर बाजार जाया करता था। व्यापारी बहुत अच्छा और दयालु इंसान था और अपने गधे का अच्छी तरह ध्यान रखता था। गधा भी अपने मालिक से बहुत प्यार करता था, लेकिन गधे की एक समस्या थी कि वह बहुत आलसी था। उसे काम करना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। उसे सिर्फ खाना और आराम करना पसंद था।

एक दिन व्यापारी को पता चला कि बाजार में नमक की बहुत मांग है। उस दिन उसने सोचा कि अब वो बाजार में नमक बेचा करेंगे। जैसे ही हाट लगने का दिन आया, व्यापारी ने नमक की चार बोरियां गधे की पीठ पर लादी और उसे बाजार चलने के लिए तैयार किया। व्यापारी, गधे के आलसीपन के बारे में जानता था, इसलिए गधे के न चलने पर उसने गधे को एक-दो बार धक्का दिया और गधा चल पड़ा। नमक की बोरियां थोड़ी भारी थीं, जिस वजह से गधे के पैर कांप रहे थे और उसे चलने में मुश्किल हो रही थी। किसी तरह, गधे को धक्का देते हुए व्यापारी उसे आधे रास्ते तक ले आया।

व्यापारी के घर और बाजार के बीच एक नदी पड़ती थी, जिसे पुल की मदद से पार करना पड़ता था। गधा जैसे ही नदी पार करने के लिए पुल पर चढ़ा और कुछ दूर चला, उसका पैर फिसल गया और वह नदी में गिर गया।

गधे को नदी में गिरा देख, व्यापारी घबरा गया और हड़बड़ाते हुए तैरकर उसे नदी से निकालने जा पहुंचा। व्यापारी ने किसी तरह अपने गधे को नदी से बाहर निकाल लिया। जब गधा नदी से बाहर आया, तो उसने देखा कि उसकी पीठ पर लदी बोरियां हल्की हो गई हैं। सारा नमक पानी में घुल गया था और व्यापारी को आधे रास्ते से ही वापस घर लौटना पड़ा। इस वजह से व्यापारी का बहुत नुकसान हो गया, लेकिन इस घटना से आलसी गधे को बाजार तक न जाने की एक तरकीब सूझ गई थी।

अगले दिन बाजार जाते समय जब पुल आया, तो गधा जानबूझकर नदी में गिर गया और उसकी पीठ पर टंगी बोरियों में रखा सारा नमक पानी में घुल गया। व्यापारी को फिर से आधे रास्ते से ही घर लौटना पड़ा। गधे ने हर दिन ऐसा करना शुरू कर दिया। इसके कारण गरीब व्यापारी को बहुत ज्यादा नुकसान होने लगा, लेकिन धीरे-धीरे व्यापारी को गधे की यह युक्ति समझ आ गई थी।

एक दिन व्यापारी ने सोचा कि क्यों न गधे की पीठ पर ऐसा सामान रखा जाए जिसका वजन पानी में गिरने से दोगुना हो जाए। यह सोच कर व्यापारी ने गधे की पीठ पर रूई से भरी बोरियां बांध दी और उसे लेकर बाजार की ओर चल पड़ा। जैसे ही पुल आया, गधा रोज की तरह नदी में गिर गया, लेकिन आज उसकी पीठ पर लदा वजन कम नहीं हुआ, बल्कि और बढ़ गया। गधा इस बात को समझ नहीं पाया। ऐसा अगले दो से तीन तक होता रहा। व्यापारी गधे की पीठ पर रूई से भरी बोरी बांध देता और पानी में गिरते ही उसका वजन दोगुना हो जाता। आखिरकार गधे ने हार मान ली।

गधे को अब सबक मिल चुका था। चौथे दिन जब व्यापारी और गधा बाजार के लिए निकले, तो गधे ने चुपचाप पुल पार कर लिया। उस दिन के बाद से गधे ने कभी भी काम करने में आलस नहीं दिखाया और व्यापारी के सारे नुकसान की धीरे-धीरे भरपाई हो

कहानी से सीख

बच्चों, आलसी गधे की कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि अपने कर्त्तव्य का पालन करने में कभी भी आलस नहीं दिखाना चाहिए। साथ ही, व्यापारी की तरह सही समझ और सूझबूझ से किसी भी काम को आसानी से किया जा सकता है।

Hindi Story for Children – नकली तोते की कहानी

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एक बार की बात है, एक घने जंगल में विशाल बरगद का पेड़ था। उस पेड़ पर बहुत सारे तोते रहा करते थे। वे सभी हमेशा इधर-उधर की बात करते रहते थे। उन्हीं में एक मिट्ठू नाम का तोता भी था। वह बहुत कम बोलता था और शांत रहना पसंद करता था। सब उसकी इस आदत का मजाक उड़ाया करते थे, लेकिन वह कभी भी किसी की बात का बुरा नहीं मानता था।

एक दिन दो तोते आपस में बात कर रहे थे। पहला तोता बोला – “मुझे एक बार बहुत अच्छा आम मिला था। मैंने पूरे दिन उसे बड़े चाव से खाया।” इस पर दूसरे तोते ने जवाब दिया – “मुझे भी एक दिन आम का फल मिला था, मैंने भी बड़े चाव से उसे खाया था।” वहीं, मिट्ठू तोता चुपचाप बैठा था। तब तोतों के मुखिया ने उसे देखते हुए कहा – “अरे हम तोतों का तो काम ही होता है बात करना, तुम क्यों चुप रहते हो?” मुखिया ने आगे कहा – “तुम तो मुझे असली तोते लगते ही नहीं। तुम नकली तोते हो।” इस पर सभी तोते उसे नकली तोता-नकली तोता कहकर बुलाने लगे, लेकिन मिट्ठू तोता फिर भी चुप था।

यह सब चलता रहा। फिर एक दिन रात में मुखिया की बीवी का हार चोरी हो गया। मुखिया की बीवी रोती हुई आई और उसने पूरी बात बताई। मुखिया की बीवी ने कहा – “किसी ने मेरा हार चोरी कर लिया है और वो हमारी ही झुंड में से एक है।” यह सुनकर मुखिया ने तुरंत सभा बुलाई। सभी तोते तुरंत सभा के लिए इकट्ठा हो गए। मुखिया ने कहा – “मेरी बीवी का हार चोरी हो गया है और मेरी बीवी ने उस चोर को भागते हुए भी देखा है।”

वह चोर आप लोगों में से ही कोई एक है। यह सुनकर सभी हैरान हो गए। मुखिया ने फिर आगे कहा कि उसने अपने मुंह को कपड़े से ढककर रखा हुआ था, लेकिन उसकी चोंच बाहर दिख रही थी। उसकी चोंच लाल रंग की थी। अब पूरे झुंड की निगाह मिट्ठू तोते और हीरू नाम के एक दूसरे तोते पर थी, क्योंकि झुंड में केवल इन्हीं दोनों की चोंच लाल रंग की थी। यह सुनकर सभी मुखिया से चोर का पता लगाने के लिए बोलने लगे, लेकिन मुखिया ने सोचा कि ये दोनों मेरे अपने हैं। मैं कैसे इनसे पूछ सकता हूं कि तुम चोर हो क्या? इसलिए, मुखिया ने एक कौवे से इसका पता लगाने के लिए मदद ली।
असली चोर का पता लगाने के लिए कौवे को बुलाया गया। कौवे ने लाल चोंच वाले हीरू और मिट्ठू तोते को सामने बुलाया। कौवे ने दोनों तोतों से पूछा कि तुम दोनों चोरी के समय कहां थे? इस पर हीरू तोता जोर-जोर से बोलने लगा – “मैं उस दिन बहुत थक गया था। इसलिए, खाना खाकर मैं उस रात जल्दी सोने के लिए चला गया था।” वहीं मिट्ठू तोते ने बहुत धीमी आवाज में जवाब दिया। उसने कहा – “मैं उस रात सो रहा था।”

इस बात को सुनकर कौवे ने फिर पूछा – “तुम दोनों अपनी बात साबित करने के लिए क्या कर सकते हो?” इस पर हीरू तोता फिर बड़ी तेज आवाज में बोला – “मैं उस रात सो रहा था। मेरे बारे में सब जानते हैं। ये चोरी मिट्ठू ने ही की होगी। इसलिए, वह इतना शांत होकर खड़ा है?” मिट्ठू तोता चुपचाप खड़ा हुआ था। सभा में मौजूद सभी तोते चुपचाप यह सब देख रहे थे। मिट्ठू तोता फिर धीमी आवाज में बोला – “मैंने यह चोरी नहीं की है।”

इस बात को सुनकर कौवा मुस्कुराकर बोला कि चोर का पता लग गया है। मुखिया के साथ-साथ सब लोग हैरानी से कौवे की ओर देखने लगे। कौवे ने बताया कि चोरी हीरू तोते ने की है। इस पर मुखिया ने पूछा – “आप यह कैसे कह सकते हैं?” कौवे ने मुस्कुराकर कहा – “हीरू तोता जोर-जोर से बोलकर अपने झूठ को सच साबित करने में लगा था, जबकि मिट्ठू तोता जानता है कि वह सच बोल रहा है। इसलिए, वो अपनी बात आराम से कह रहा था।” कौवे ने आगे कहा – “वैसे भी हीरू तोता बहुत बोलता है, उसकी बात पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।” इसके बाद हीरू ने अपना जुर्म कबूल कर लिया और सभी से माफी मांगी।

यह सुनकर सभी तोते हीरू तोते को कड़ी सजा देने की बात कहने लगे, लेकिन मिट्ठू तोते ने कहा – “मुखिया जी, हीरू तोते ने अपनी गलती मान ली है। उसने सबके सामने माफी भी मांग ली है। उससे पहली बार यह गलती हुई है, इसलिए उसे माफ किया जा सकता है।” यह बात सुनने के बाद मुखिया ने हीरू तोते को माफ कर दिया।

कहानी से सीख: कभी-कभी ज्यादा बोलकर हम अपनी अहमियत खो देते हैं। इसलिए, जरूरत के समय ही बोलना चाहिए

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