अगर याद हो, तो हमारे बुजुर्गों ने हमे नैतिकता का पाठ नैतिक कहानी के माध्यम से सिखाया था। अब सवाल यह उठता है कि वो नैतिक कहानियां आज भी महत्व रखती हैं, तो इसका जवाब हां है। यही कारण है कि हम कहानियों के इस भाग में कुछ ऐसी ही नैतिक कहानियां आपके बच्चों के लिए संजोकर लाए हैं। ये इन कहानियों का जादू ही है, जो बच्चों को जीवन भर भूलने नहीं देगा कि जिंदगी में नैतिक मूल्यों का होना कितना जरूरी है। आज हम आपके लिए Short motivational Story in Hindi लेकर आए है। हम उम्मीद करते है की ये कहानी आपको पसंद आएगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करेंगे।
बदसूरत बत्तख की कहानी
गर्मियों के दिन थे। शाम के समय एक बत्तख झील के पास ही पेड़ के नीचे अपने अंडे देने के लिए अच्छी जगह ढूंढी थी। उसने वहां पर पांच अंडे दिए। उसने देखा की उसके पांच अंडों में से एक अंडा सबसे बहुत अलग था। जिसे देखर वह परेशान रहने लगी। उसने अंडों से बच्चों के बाहर आने तक का इंतजार किया।
फिर एक सुबह उसके चार अंडों में से उसके चार नन्हें बच्चे बाहर आ गए। वो सभी बहुत सुंदर और प्यारे थे। लेकिन उसके पांचवें अंडे से अभी तक बच्चा बाहर नहीं आया था। बत्तख ने कहा कि यह पांचवें अंडे का बच्चा उसका सबसे सुंदर बच्चा होगा, तभी वह बाहर आने में इतना ज्यादा समय ले रहे है।
एक सुबह वह पांचवां अंडा भी फूट गया। उसमें से एक बदसूरत बत्तख का बच्चा निकला। बत्तख का यह बच्चे अपने बाकी के चारों भाई-बहनों से बहुत बड़ा और बदसूरत था।
यह देख कर बत्तख मां बहुत उदास हो गई। उसे उम्मीद थी कि शायद कुछ दिनों बाद वह बदसूरत बत्तख भी अपने भाई-बहनों की तरह सुंदर हो जाएगा।
कई दिन बीत जाने के बाद भी वह बत्तख बदसूरत ही रहा। बदसूरत होने की वजह से उसके सारे भाई-बहन उसका मजाक भी उड़ाते थे और कोई भी उसके साथ नहीं खेलता था। वह बदसूरत बत्तख का बच्चा बहुत उदास रहने लगा।
एक दिन झील में अपनी परछाई देखते हुए वह बदसूरत बत्तख का बच्चा सोचने लगा कि अगर उसने अपने परिवार को छोड़ दिया, तो वो सारे बहुत खुश हो जाएं। वह किसी दूसरे जंगल में चला जाएगा। यही सोचकर वह किसी घने जंगल में चला गया। जल्द ही सर्दियों के दिन आ गए। हर तरफ बर्फ की बारिश हो रही थी। बदसूरत बत्तख के बच्चे को ठंड लग रही थी। उसके पास खाने-पीने के लिए भी कुछ नहीं था।
वहां से वह एक बत्तख के परिवार के पास गया, उन्होंने उसे भगा दिया। फिर वो एक मुर्गी के घर गया, मुर्गी ने भी उसे चोंच मारकर भगा दिया। उसी रास्ते में उसे एक कुत्ते ने देखा, लेकिन कुत्ता भी उसे छोड़कर चला गया।
बदसूरत बत्तख उदास मन से सोचने लगा कि वह इतना बदसूरत है कि कुत्ता भी उसे नहीं खाना चाहता है। उदास होकर वह बदसूरत बत्तख का बच्चा फिर से जंगल जाने लगा। रास्ते में उसे एक किसान दिखाई दिया। वह किसान उस बदसूरत बत्तख को अपने घर ले गया। वहां पर उसे एक बिल्ली परेशान करने लगी, तो वह वहां से भी भाग गया और फिर से एक जंगल में रहने लगा।
कुछ ही दिनों में बसंत का मौसम आ गया। अब वह बदसूरत बत्तख भी काफी बड़ा हो गया था। एक दिन वह एक नदी के किनारे टहल रहा था। वहां पर उसने एक सुंदर राजहंसी को देखा, जिससे उसे प्यार हो गया। लेकिन फिर उसे लगा कि वह एक बदसूरत बत्तख है, इसलिए उसे वह राजहंसी कभी नहीं मिलेगी। शर्म से उसने अपना सिर झुका लिया।
तभी उसने नहीं के पानी में अपनी परछाई देखी और वह हैरान हो गया। उसने देखा अब वह बहुत बड़ा हो गया है और एक सुंदर राजहंस में बदल गया है। उसे यह एहसास हो गया कि वह एक हंस है, तभी वो अपने बाकी के बत्तख भाई-बहनों से काफी अलग था। जल्द ही उस बदसूरत बत्तख से राजहंस बने उस हंस ने हंसनि से शादी कर ली और दोनों खुशी-खुशी रहने लगे।
कहानी से सीख – सही समय आने पर हर कोई अपनी सही पहचान कर सकता है। तभी वह अपने गुणों को पहचान कर अपने दुखों को दूर कर सकता है।
बूढ़े गिद्ध की सलाह की कहानी
किसी घने जंगल में गिद्धों का एक झुण्ड रह करता था। उनका पूरा झुण्ड एक साथ उड़ना भरते और साथ में ही शिकार करते थे। एक बार वो सभी उड़ते-उड़ते किसी टापू पर पहुंच गएं। वहां बहुत सी मछली और मेंढक रहते थें।उन्हें वह टापू बहुत अच्छा लगा। उसके खाने-पीने और रहने की सारी सुविधाएं उस टापू पर मौजूद थी। सभी गिद्ध उसी टापू पर रहने लगें। अब उन्हें शिकार के लिए कहीं जाना भी नहीं पड़ता था। सभी बिना किसी मेहनत के भरपेट भोजन करते और उस टापू पर आसल में जीवन जीने लगें।
उसी झुण्ड में एक बूढ़ा गिद्ध भी रहता था। वह बूढ़ा गिद्ध यह सब देखकर बहुत परेशान रहता था। उसे अपने साथियों की आलस भरी दशा देखकर चिंता होने लगी।
वो सभी गिद्धों को कई बार चेतावनी भी देता कि मित्रों हमें फिर से शिकार के लिए उड़ान भरनी चाहिए, ताकि हम अपना शिकार करने की कला को और भी मजबूत बनाए रख सकें। अगर ऐसे ही आलस करेंग, तो एक दिन हम शिकार करना तक भूल जाएंगे। इसलिए, हमें जल्द ही अपने पुराने जंगल में वपास जाना चाहिए।
उस बूढ़े गिद्ध की सलाह सुनकर सभी गिद्ध हंसने लगे। वह उसका मजाक बनाने लगे। उन्होंने कहा कि बूढ़ा होने की वजह से इनका दिमाग खराब हो गया है। इसलिए, यह हमें .ह आरामदायक जीवन छोड़कर जाने की सलाह दे रहे हैं। ये कहकर गिद्धों के झुंड से उस टापू से जाने से मना कर दिया। इसके बाद वह बूढ़ा गिद्ध अकेले ही वापस जंगल में लौट गया।
कुछ दिनों के बाद उस बूढ़े गिद्ध ने सोचा कि बहुत समय हो गया, चलो उस टापू पर जाता हूं और वहां पर अपने सगे लोगों और दोस्तों से मिलकर आता हूं। वह बूढ़ा गिद्ध जैसे ही उस टापू पर पहुंचा वहां की हालत देखकर वह हैरान रह गया। वहां का दृश्य बहुत भयावह था।
उस टापू पर मौजूद सभी गिद्ध मर गए थे। वहां पर सिर्फ उनकी लाशें ही पड़ी थी। तभी उसे कोने में एक घायल गिद्ध दिखाई दिया। वह उसके पास गया और वहां की हालत के बारे में पूछा। उसने बताया कि कुछ दिन पहले इस टापू पर चीतों का एक झुण्ड आया था। जिन्होंने उनपर हमला कर दिया और सबको मार दिया। हम लोग बहुत समय से उंचा उड़े नहीं थे, तो हम अपनी जान भी नहीं बचा सकें। हमारे पंजों में उनसे मुकाबला करने की क्षमता भी कम हो गई थी।
उस घायल गिद्ध की बात सुनकर बूढ़े गिद्ध को बहुत दुख हुआ। उसके मरने के बाद बूढ़ा गिद्ध वापस से अपने जंगल में वापस चला गया।
कहानी से सीख – हमें हर हाल में अपनी शक्ति और अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए। अगर आलस की वजह से अपना कर्तव्य करना छोड देंगे, तो भविष्य में यह हमारे लिए घातक हो सकता है।
Short motivational Story in Hindi – सूर्य और वायु की कहानी
एक बार की बात है, एक दिन सूर्य और हवा में अचानक विवाद होने लगा। दोनों इस बात पर बहस करने लगें की उन दोनों में सबसे अधिक शक्तिशाली कौन है। वायु बड़ी ही घमंडी और जिद्दी स्वाभाव की थी। उसे अपनी शक्ति पर बड़ा ही गुरूर था। उसका मानना था कि वह अगर तेज गति से बहने लगे, तो बड़े-बड़े पेड़ों को उखाड़ सकती है। उसमें मौजूद आर्द्रता नदियों और झीलों के पानी को भी जमा सकती है।
अपने इसी घमंड के चलते वायु ने सूर्य से बहस करते हुए कहा – “मैं तुमसे ज्यादा शक्तिशाली हूं। मैं चाहूं तो किसी को भी अपने झोंके से हिला सकती हूं।”
सूर्य ने हवा की बात मानने से इंकार कर दिया और कहा बड़े ही शांत तरीके से कहा – “देखो कभी भी अपने पर घमंड नहीं करना चाहिए।”
हवा यह सुनकर चिढ़ गई और खुद को ज्यादा शक्तिशाली बताती रही।
इस पर दोनों आपस में बहस कर ही रहे थे कि उन्हें तभी रास्ते में एक आदमी दिखाई दिया। उस आदमी ने कोट पहना हुआ था। उसे देखकर सूर्य के मन में एक योजना आई। उसने हवा से कहा – “जो भी इस आदमी को उसका कोट उतारने के लिए मजबूर कर देगा, उसे ही अधिक शक्तिशाली माना जाएगा।”
हवा ने बात मान ली और कहा – “ठीक है। सबसे पहले मैं कोशिश करूंगी। तब तक तुम बादलों में छिप जाओ।”
सूर्य बादलों के पीछे छिप गया। फिर हवा बहने लगी। वह धीमे-धीमे बहने लगी, लेकिन उस आदमी ने अपना कोट नहीं उतारा। फिर वह तेजी से बहने लगी। हवा तेज होने की वजह से उस आदमी को ठंड लगने लगी और उसने अपने कोट से शरीर को अच्छे से लपेट लिया।
बहुत देर तक ठंडी और तेज हवा बहती रही, लेकिन उस आदमी ने अपना कोट नहीं उतारा। अंत में हवा थककर शांत हो गई।
इसके बाद सूर्य की बारी आई। वह बादलों से बाहर निकला और हल्की धूप करके चमकने लगा।
हल्की धूप होते ही उस व्यक्ति को ठंड के तापमान से थोड़ी राहत मिली, तो उसने अपना कोट ढीला कर दिया। इसके बाद फिर सूर्य तेजी से चमकने लगा और तेज धूप निकल गई।
तेज धूप होते ही आदमी को गर्मी लगने लगी और उसने अपना कोट उतार दिया।
जब हवा ने यह देखा, तो वह खुद पर शर्मिंदा होने लगी और उसने सूर्य के सामने अपनी हार मान ली। इस तरह घमंडी वायु का अंहकार भी टूट गया।
कहानी से सीख – खुद की योग्यता व ताकत पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए, क्योंकि घमंड करने वालों की कभी जीत नहीं होती है।
चींटी और टिड्डा की कहानी
एक बार की बात है। गर्मी का मौसम था और एक चींटी कड़ी मेहनत से अपने लिए अनाज जुटा रही थी। दरअसल, वह सोच रही थी कि धूप तेज हो जाए, इससे पहले क्यों न अपना काम पूरा कर लिया जाय। चींटी कई दिनों से इस काम में जुटी थी। वह रोजाना खेत से उठाकर दाने अपने बिल में जमा करती थी। वहीं, पास में ही एक टिड्डा फुदक रहा था। मस्ती में वह नाच रहा था। गाने गाकर जिंदगी के मजे ले रहा था।
पसीने से तरबतर चींटी अनाज ढोते-ढोते थक चुकी थी। पीठ पर अनाज लेकर बिल की तरफ जा रही थी, तभी टिड्डा फुदककर उसके सामने आ गया। बोला, प्यारी चींटी… क्यों इतनी मेहनत कर रही हो। आओ मजे करें। चींटी ने टिड्डे को नजरअंदाज किया और खेत से उठाकर एक-एक दाना अपने बिल में जमा करती रही।
मस्ती में डूबा टिड्डा चींटी को देखकर हंसता और मजाक उड़ाता। उछलकर उसके रास्ते में आकर कहता, प्यारी चींटी आओ मेरा गाना सुनो। कितना बढ़िया मौसम है। ठंडी हवा चल रही। सुनहरी धूप है। क्यों मेहनत करके इस खूबसूरत दिन को बर्बाद कर रही हो। टिड्डा की हरकतों से चींटी परेशान हो गई। उसने समझाते हुए कहा, सुनो टिड्डा- ठंड का मौसम कुछ दिन बाद ही आने वाला है। तब खूब बर्फ गिरेगी। कहीं भी अनाज नहीं मिलेगा। मेरी सलाह है, अपने खाने का इंतजाम कर लो।
धीरे-धीरे गर्मी का मौसम खत्म हो गया। मस्ती में डूबे टिड्डे को पता ही नहीं चला कि गर्मी कब खत्म हो गई। बारिश के बाद ठंड आ गई। कोहरे और बर्फबारी की वजह से बमुश्किल सूरज के दर्शन हो रहे थे। टिड्डे ने अपने खाने के लिए बिल्कुल भी अनाज नहीं जुटाया था। हर ओर बर्फ की मोटी चादर पड़ी थी। भूख से टिड्डा तड़पने लगा।
टिड्डे के पास बर्फबारी और ठंड से बचने का भी इंतजाम नहीं था। तभी उसकी नजर चींटी पर पड़ी। अपनी बिल में चींटी मजे से जमा किए हुए अनाज खा रही थी। तब टिड्डे को एहसास हुआ कि समय को बर्बाद करने का उसे फल मिल चुका है। भूख और ठंड से तड़पते टिड्डे की फिर चींटी ने मदद की। खाने के लिए उसे कुछ अनाज दिए। चींटी ने ठंड से बचने के लिए खूब घास-फूस जुटाए थे। उसी से टिड्डे को भी अपना घर बनाने के लिए कहा।
कहानी से सीख : अपने काम को मेहनत और लगन के साथ करना चाहिए। उस वक्त भले ही लोग मजाक उड़ाएं, लेकिन बाद में वे ही तारीफ करेंगे।
Short motivational Story in Hindi – शेर और सियार की कहानी
एक बार की बात है सुंदरवन नाम के जंगल में बलवान शेर रहा करता था। शेर रोज शिकार करने के लिए नदी के किनारे जाया करता था। एक दिन जब नदी के किनारे से शेर लौट रहा था, तो उसे रास्ते में सियार दिखाई दिया। शेर जैसे ही सियार के पास पहुंचा, सियार शेर के कदमों में लेट गया।
शेर ने पूछा अरे भाई! तुम ये क्या कर रहे हो। सियार बोला, “आप बहुत महान हैं, आप जंगल के राजा हैं, मुझे अपना सेवक बना लीजिए। मैं पूरी लगन और निष्ठा से आपकी सेवा करूंगा। इसके बदले में आपके शिकार में से जो कुछ भी बचेगा मैं वो खा लिया करूंगा।”
शेर ने सियार की बात मान ली और उसे अपना सेवक बना लिया। अब शेर जब भी शिकार करने जाता, तब सियार भी उसके साथ चलता था। इस तरह साथ समय बिताने से दोनों के बीच बहुत अच्छी दोस्ती हो गई। सियार, शेर के शिकार का बचा खुचा मांस खाकर बलवान होता जा रहा था।
एक दिन सियार ने शेर से कहा, “अब तो मैं भी तुम्हारे बराबर ही बलवान हो गया हूं, इसलिए मैं आज हाथी पर वार करूंगा। जब वो मर जाएगा, तो मैं हाथी का मांस खाऊंगा। मेरे से जो मांस बच जाएगा, वो तुम खा लेना। शेर को लगा कि सियार दोस्ती में ऐसा मजाक कर रहा है,” लेकिन सियार को अपनी शक्ति पर कुछ ज्यादा ही घमंड हो चला था। सियार पेड़ पर चढ़कर बैठ गया और हाथी का इंतजार करने लगा। शेर को हाथी की ताकत का अंदाजा था, इसलिए उसने सियार को बहुत समझाया, लेकिन वो नहीं माना।
तभी उस पेड़ के नीचे से एक हाथी गुजरने लगा। सियार हाथी पर हमला करने के लिए उस पर कूद पड़ा, लेकिन सियार सही जगह छलांग नहीं लगा पाया और हाथी के पैरों में जा गिरा। हाथी ने जैसे ही पैर बढ़ाया वैसे ही सियार उसके उसके पैर के नीचे कुचला गया। इस तरह सियार ने अपने दोस्त शेर की बात न मानकर बहुत बड़ी गलती की और अपने प्राण गंवा दिए।
कहानी से सीख : हमें कभी भी किसी बात पर घमंड नहीं करना चाहिए और अपने सच्चे दोस्त को नीचा नहीं दिखाना चाहिए।
नीले सियार की कहानी
एक बार की बात है, जंगल में बहुत तेज हवा चल रही थी। तेज हवा से बचने के लिए एक सियार पेड़ के नीचे खड़ा था और तभी उस पर पेड़ की भारी शाखा आकर गिर गई। सियार के सिर में गहरी चोट लगी और वो डर कर अपनी मांद की ओर भाग गया। उस चोट का असर कई दिनों तक रहा और शिकार पर नहीं जा सका। खाना न मिलने से सियार दिन प्रतिदिन कमजोर होता जा रहा था।एक दिन उसे बहुत तेज भूख लगी थी और उसे अचानक एक हिरन दिखाई दिया।
सियार उसका शिकार करने के लिए बहुत दूर तक हिरन के पीछे दौड़ा, लेकिन वह बहुत जल्दी थक गया और हिरन को नहीं मार पाया। सियार पूरे दिन भूखा-प्यासा जंगल में भटकता रहा, लेकिन उसे कोई मरा जानवर भी नहीं मिला, जिससे वह अपना पेट भर सके। जंगल से निराश होकर सियार ने गांव की ओर जाने की ठानी। सियार को उम्मीद थी कि गांव में उसे कोई बकरी या मुर्गी का बच्चा मिल जाएगा, जिसे खाकर वह अपनी रात काट लेगा। गांव में सियार अपना शिकार ढूंढ रहा था, लेकिन तभी उसकी नजर कुत्तों के झुंड पर पड़ी, जो उसकी ओर आ रहे थे। सियार को कुछ समझ में नहीं आया और वो धोबियों की बस्ती की ओर दौड़ने लगा।
कुत्ते लगातार भौंक रहे थे और सियार का पीछा कर रहे थे। सियार को जब कुछ समझ नहीं आया, तो वह धोबी के उस ड्रम में जाकर छुप गया, जिसमें नील घुला हुआ था। सियार को न पाकर कुत्तों का झुंड वहां से चला गया। बेचारा सियार पूरी रात उस नील के ड्रम में छुपा रहा। सुबह-सवेरे जब वह ड्रम से बाहर आया, तो उसने देखा कि उसका पूरा शरीर नीला हो गया है। सियार बहुत चालाक था, अपना रंग देखकर उसके दिमाग में एक आइडिया आया और वह वापस जंगल में आ गया।
जंगल में पहुंच कर उसने ऐलान किया कि वह भगवान का संदेश देना चाहता है, इसलिए सारे जानवर एक जगह इकट्ठा हो जाएं। सारे जानवर सियार की बात सुनने के लिए एक बड़े पेड़ के नीचे एकत्रित हो गए। सियार ने जानवरों की सभा में कहा “क्या किसी ने कभी नीले रंग का कोई जानवर देखा है? मुझे ये अनोखा रंग भगवान ने दिया है और कहा है कि तुम जंगल पर राज करो। भगवान ने मुझसे कहा है कि जंगल के जानवरों का मार्गदर्शन करने की जिम्मेदारी तुम्हारी है।
सभी जानवर सियार की बात मान गए। सब एक स्वर में बोले, “कहिए महाराज क्या आदेश है?” सियार ने कहा, “सारे सियार जंगल से चले जाएं, क्योंकि भगवान ने कहा है कि सियारों की वजह से इस जंगल पर बहुत बड़ी आपदा आने वाली है।” नीले सियार की बात को भगवान का आदेश मानकर सारे जानवर जंगल के सियारों को जंगल से बाहर खदेड़ आए। ऐसा नीले सियार ने इसलिए किया, क्योंकि अगर सियार अगर जंगल में रहते, तो उसकी पोल खुल सकती थी।
अब नीला सियार जंगल का राजा बन चुका था। मोर उसे पंखा झलते और बंदर उसके पैर दबाते। सियार का मन किसी जानवर को खाने का करता, तो वह उसकी बलि मांग लेता। अब सियार कहीं नहीं जाता था, हमेशा अपनी शाही मांद में बैठा रहता और सारे जानवर उसकी सेवा में लगे रहते।
एक दिन चांदनी रात में सियार को प्यास लगी। वह मांद से बाहर आया, तो उसे सियारों की आवाज सुनाई दी, जो दूर कहीं बोल रहे थे। रात को सियार हू-हू की आवाज करते हैं, क्योंकि ये उनकी आदत होती है। नीला सियार भी अपने आप को रोक न सका। उसने भी जोर-जोर से बोलना शुरू कर दिया। शोर सुनकर आस-पास के सभी जानवर जाग गए। उन्होंने नीले सियार को हू-हू की आवाज निकालते हुए देखा, तब उन्हें पता चला कि ये एक सियार है और इसने हमें बेवकूफ बनाया है। अब नीले सियार की पोल खुल चुकी थी। यह पता चलते ही सारे जानवर उस पर टूट पड़े और उसे मार डाला।
कहानी से सीख: हमें कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए, एक न एक दिन पोल खुल जाती है। किसी को भी ज्यादा दिनों तक बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता है।
Short motivational Story in Hindi – लड़ती बकरियां और सियार
बहुत समय पहले की बात है। एक जंगल में किसी बात को लेकर दो बकरियों के बीच झगड़ा हो गया। इस झगड़े को वहां से गुजर रहा एक साधु देख रहा था। देखते ही देखते दो बकरियों में झगड़ा इतना बड़ गया कि दोनों आपस में लड़ने लगीं।
उसी समय वहां से एक सियार भी गुजरा। वह बहुत भूखा था। जब उसने दोनों बकरियों को झगड़ते देखा, तो उसके मुंह में पानी आ गया।
बकरियों की लड़ाई इतनी बड़ गई थी कि दोनों ने एक-दूसरे को लहूलुहान कर दिया था, लेकिन फिर भी लड़ना नहीं छोड़ रही थीं। दोनों बकरियों के शरीर खून निकलने लगा था। भूखे सियार ने जब जमीन पर फैले खून की तरफ देखा, तो उसे चाटने लगा और धीरे-धीरे उनके करीब जाने लगा। उसकी भूख और ज्यादा बढ़ गई थी। उसके मन में आया कि क्यों न दोनों बकरियों को मारकर अपनी भूख मिटाई जाए।
वहीं, दूर खड़ा साधु यह सब देख रहा था। जब उसने सियार को दोनों बकरियों के बीच जाते हुए देखा, तो सोचा कि अगर सियार इन दोनों बकरियों के और करीब गया, तो उसे चोट लग सकती है। यहां तक कि उसकी जान भी जा सकती है।
साधु अभी यह सोच ही रहा था कि सियार दोनों बकरियों के बीच पहुंच गया। बकरियों ने जैसे ही उसे अपने पास आते देखा, तो दोनों ने लड़ना छोड़कर उस पर हमला कर दिया। अचानक हुए हमले से सियार अपने आप को संभाल नहीं सका और चोटिल हो गया। वह किसी तरह से अपनी जान बचाकर वहां से भागा।
सियार को भागता देख बकरियां ने भी लड़ना छोड़ दिया और अपने घर लौट गईं। वहीं, साधु भी अपने घर की ओर चल दिया।
कहानी से सीख: हमें इस कहानी से यह सीख मिलती है कि कभी भी लालच नहीं करना चाहिए। साथ ही दूसरों की लड़ाई में नहीं कूदना चाहिए, इससे हमारा ही नुकसान होता है।
बगुला भगत और केकड़ा
यह कहानी है एक जंगल की जहां एक आलसी बगुला रहा करता था। वह इतना आलसी था कि कोई काम करना तो दूर, उससे अपने लिए खाना ढूंढने में भी आलस आता था। अपने इस आलस के कारण बगुले को कई बार पूरा-पूरा दिन भूखा रहना पड़ता था। नदी के किनारे अपनी एक टांग पर खड़े-खड़े दिन भर बगुला बिना मेहनत किए खाना पाने की युक्तियां सोचा करता था।
एक बार की बात है, जब बगुला ऐसी ही कोई योजना बना रहा था और उसे एक आइडिया सूझा। तुरंत ही वह उस योजना को सफल बनाने में जुट गया। वह नदी के किनारे एक कोने में जाकर खड़ा हो गया और मोटे-मोटे आंसू टपकाने लगा। उसे इस प्रकार रोता देख केंकड़ा उसके पास आया और उससे पूछा, “अरे बगुला भैया, क्या बात है? रो क्यों रहे हो?” उसकी बात सुनकर बगुला रोते-रोते बोला, “क्या बताऊं केंकड़े भाई, मुझे अपने किए पर बहुत पछतावा हो रहा है। अपनी भूख मिटाने के लिए मैंने आज तक न जाने कितनी मछलियों को मारा है। मैं कितना स्वार्थी था, लेकिन आज मुझे इस बात का एहसास हो गया है और मैंने यह वचन लिया है कि अब मैं एक भी मछली का शिकार नहीं करूंगा।”
बगुले की बात सुन कर केंकड़े ने कहा, “अरे ऐसा करने से तो तुम भूखे मर जाओगे।” इस पर बगुले ने जवाब दिया, “किसी और की जान लेकर अपना पेट भरने से तो भूखे पेट मर जाना ही अच्छा है, भाई। वैसे भी मुझे कल त्रिकालीन बाबा मिले थे और उन्होंने मुझसे कहा कि कुछ ही समय में 12 साल के लिए सूखा पड़ने वाला है, जिस कारण सब मर जाएंगे।” केंकड़े ने जाकर यह बात तालाब के सभी जीवों को बता दी।
“अच्छा,” तालाब में रहने वाले कछुए ने चौंक कर पूछा, “तो फिर इसका क्या हल है?” इस पर बगुले भगत ने कहा, “यहां से कुछ कोस दूर एक तालाब है। हम सभी उस तालाब में जाकर रह सकते हैं। वहां का पानी कभी नहीं सूखता। मैं एक-एक को अपनी पीठ पर बैठा कर वहां छोड़कर आ सकता हूं।” उसकी यह बात सुनकर सारे जानवर खुश हो गए।
अगले दिन से बगुले ने अपनी पीठ पर एक-एक जीव को ले जाना शुरू कर दिया। वह उन्हें नदी से कुछ दूर ले जाता और एक चट्टान पर ले जाकर मार डालता। कई बार वह एक बार में दो जीवों को ले जाता और भर पेट भोजन करता। उस चट्टान पर उस जीवों की हड्डियों का ढेर लगने लगा था। बगुला अपने मन में सोचा करता था कि दुनिया भी कैसे मूर्ख है। इतनी आसानी से मेरी बातों में आ गए।
ऐसा कई दिनों तक चलता रहा। एक दिन केंकड़े ने बगुले से कहा, “बगुला भैया, तूम हर रोज किसी न किसी को ले जाते हो। मेरा नंबर कब आएगा?” तो बगुले ने कहा, “ठीक है, आज तुम्हें ले चलता हूं।” यह कहकर उसने केंकड़े को अपनी पीठ पर बिठाया और उड़ चला।
जब वो दोनों उस चट्टान के पास पहुंचे, तो केंकड़े ने वहां अन्य जीवों की हड्डियां देखी और उसका दिमाग दौड़ पड़ा। उसने तुरंत बगुले से पूछा कि ये हड्डियां किसकी हैं और जलाशय कितना दूर है? उसकी बात सुनकर बगुला जोर जोर से हंसने लगा और बोला, “कोई जलाशय नहीं है और ये सारी तुम्हारे साथियों की हड्डियां हैं, जिन्हें मैं खा गया। इन सभी हड्डियों में अब तुम्हारी हड्डियां भी शामिल होने वाली हैं।”
उसकी यह बात सुनते ही केंकड़े ने बगुले की गर्दन अपने पंजों से पकड़ ली। कुछ ही देर में बगुले के प्राण निकल गए। इसके बाद, केंकड़ा लौट कर नदी के पास गया और अपने बाकी साथियों को सारी बात बताई। उन सभी ने केंकड़े को धन्यवाद दिया और उसकी जय जयकार की।
कहानी से सीख: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें आंख बंद करके किसी पर विश्वास नहीं करना चाहिए। मुसीबत के समय भी संयम और बुद्धिमानी से काम करना चाहिए।