नमस्कार दोस्तों, हमेशा की तरह आज फिर से हाजिर है एक नए पोस्ट के साथ जिसका टाइटल Funny Story in Hindi है। हम उम्मीद करते है की ये पोस्ट आपको पसंद आएगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करेंगे।
कौन बड़ा मूर्ख
(Funny Story in Hindi)
दो सेठ आपस में बात कर रहे थे और दोनों के दोनों सेठ अपने नौकरों से बेहद दुखी थे। तभी पहले सेठ ने दूसरे सेठ से कहा अरे मैं तो बड़ा दुखी हो गया। इतना मूर्ख नौकर मिला है कि समझा समझा के मेरा दिमाग खराब हो जाए, निकाल भी नहीं सकता बहुत विस्वसनीय है।
दूसरा सेठ – अरे भैया तुम अपने नौकर को बोल रहे हो मेरा नौकर तुम्हारे नौकर से भी चार गुना मूर्ख है कहो तो नमूना दिखा दूँ।
पहला सेठ – हां हां दिखाइए भैया हम देखते हैं कि हमारा नौकर बहुत मूर्ख है या तुम्हारा नौकर बहुत मूर्ख है?
दूसरा सेठ – अरे रामू इधर या ये लो ₹10 और बाजार जाकर टीवी ले आओ।
नौकर – जी सेठ जी अभी लाया ।
पहला सेठ – देखा ₹10 दे रहा हूं टीवी लाने के लिए और वो कह रहा जी सेठ जी ला रहा हूं।
पहला सेठ – बस इतनी सी बात अभी देखो हमारा नौकर कितना मूर्ख है?अरे सुशील ?
नौकर – जी सर जी जरा ऑफिस जाओ और ऑफिस जाकर यह पता करो हम वहां है या नहीं?
नौकर – जी सेठ जी जाता हूं अभी ।
दोनों सेठ आपस में बात करने लगे। देख लिया मैं तो परेशान हो गया मैं यहां बैठा हूं और मैं कह रहा हूं मैं वहां हूं कि नहीं हूं और वह जा रहा है देखने के लिए मुझे ।
दूसरा सेठ – उफ्फ़ क्या करें इनका ?
उधर वह दोनों नौकर रास्ते में मिल गए। जो नौकर ऑफिस जा रहा था उसने तुरंत दूसरे नौकर से कहा – अरे मुझे लगता है मेरा सेठ पागल हो गया है इतना बड़ा मूर्ख सेठ मैंने नहीं देखा टीवी लेने जा रहा था उसने पता क्या बोला !मुझे कह रहा है ₹10 में टीवी ले आओ अरे टीवी तो मैं चार ले आऊँ लेक उसे नहीं पता क आज इतवार है और सर बाजार बंद पड़ा है।
दूसरा नौकर- यही तो मैं कह रहा हूं! मेरा सेठ महा पागल है। अरे इतनी दूर मुझे दौड़ाया कि वह वहां है या नहीं ? फोन नहीं कर सकता था एक। पागल कहीं का पता नहीं इन लोगों के पास धन कहां से आ जाता है मुर्ख कहीं के।
उधर दोनों सेठ आपस में बात कर रहे थे। अरे नौकर रखना भी एक बहुत बड़ी कला है। काम निकालना इन लोगों से बिल्कुल टेढ़ी खीर के बराबर है। एक दिन मैंने ऐसे ही पूछ लिया मेरी ज्यादा जल्दी आंख खुल गई मैं अपने नौकर को जगा कर कहा जरा देखना सवेरा हो गया कि नहीं तो पागल मूर्ख कर कह रहा है। अंधेरे में कुछ दिख नहीं रहा है लालटेन जला लेता हुँ पता चल जाएगा की सबेरा हुआ है या नहीं? मै तो अपना माथा पकड़ कर बैठ गया।
दूसरा सेठ – सही कह रहे हो इन नौकरों से काम लेना वाकई में टेढ़ी ही खीर है। अरे सेठानी को मटर आलू की जरूरत पड़ गई मैंने 50-50 रुपए के दो नॉट दे दिए और कहा मटर और आलू ले आना। अरे बदतमीज आधे घंटे बाद आकर कह रहा है कौन से 50 कि आलू लाने थे और कौन से 50 के मटर। सेठ जी लिख दीजिए। मन तो यह क्या कि डंडे से पीट दूँ।
पहला सेठ – एक दिन तो हद हो गई मैंने कहा चिट्ठी डाल के आजा डाकखाने में तो – बोलने लगा की डाक खाना कैसा होता है? तो मैंने कहा लाल रंग का होता है। लाल रंग की टोपी होती है मुंह खुला होता है और चिट्ठी उसके अंदर डाल आना। अरे पता नहीं किसी ने लाल रंग के कपड़े पहने थे और लाल रंग की टोपी पहनी थी मूर्ख उसका मुंह खुलवाकर पुरी की पूरी चिट्ठी उसके मुंह में डाल आया। वह तो भैया लड़ने आ गया कि यह क्या किया। देखिए मेरे मुंह में इसने चिठ्ठी डाल दी।
वह जाकर बोल रहा है सर जी आपने तो कहा था लाल रंग का होगा , ऊपर लाल रंग की टोपी होगी, मुंह खुला होगा। इस आदमी का पूरा देखिए पूरा लाल यह मुंह खुला था। मैं तो चिट्ठी के मुंह में डाल आया।
लेकिन एक बात है सेठ जी एक चीज में तो बड़ी होशियारी की भली जितना मूर्ख है पर एक तो बहुत ही अच्छी काम किया। हमारे घर एक मेहमान आ रखा था और मेरी सेठानी कहने लगी की शाम का खाना ना खिलाएंगे। दोपहर में ही इसको तड़का दो बस। लेकिन वह मेहमान इतना बेशर्म था की शाम तक भी रुकना चाह रहा था और कह रहा था कि भोजन खाकर ही जाएगा। ऐसा मुझे लगा जाना होता तो दोपहर मे ही चला गया होता। इसी मूर्ख नौकर ने मुझे आकर तरकीब बताई।
सेठ जी आप चिंता न करना शाम का खाना ये बिना खाए जाएगा।
अपने मुंह से तो मैं कह नहीं सकता था कि भैया अपने घर जा। लेकिन इसने बड़े कमाल कर दिए। मुझे कान में कुछ कहा और मैं भी सुनकर गदगद हो गया। कहने लगा मैं शाम को आपसे भोजन के लिए पूछूंगा और आप मुझे यह जवाब देना ।
दूसरा सेठ – ऐसा क्या बताया तुम्हारे नौकर ने जरा हमको भी तो बताओ?
पहला सेठ – अरे वही तो बता रहा हूं।
दूसरा सेठ – थोड़ा धैर्य रखकर सुनो! यह फिर नौकर शाम को मेरे पास आया और मुझसे कहने लगा। सेठ जी खाने मे क्या बनेगा हलवा बनाऊँ या लौकी के कोफ्ते ? इस मूर्ख ने मुझे जो बोलने को बोल था मैंने तुरंत बोल दिया – अरे तूने हमें राक्षस समझा है क्या दोपहर मे तो खाना खाया है। अरे इनसे पूछो मेहमान से क्या खाना है? बेचारा मेहमान तो भी चुप हो कर बैठ गया और बोल – नहीं नहीं मुझे नहीं खाना-खाना मैं मेरा पेट पहले से ही भरा है और वह अपना झोला उठाकर चला गया। मैंने तो अपने नौकर को बड़ी शाबाशी दी।
पहला सेठ – यह तो बहुत ही भला काम किया भाई तुम्हारे नौकर ने। तुम्हारा एक शाम का का खाना बचा दिया और तुम कह रहे हो मूर्ख है। भाई तुम्हारे नौकर में तो थोड़ी बहुत समझ है पर मेरे वाला तो बिल्कुल ही निरामूर्ख है। अरे मेरी माता जी माला जपते जपते हाथ पसारे पसारे सो गई। अब क्या हुआ माला जप रही थी उनको नींद लग गई। हाथ से उनकी माला छूट गई और हाथ पसरा हुआ रह गया। मैंने उसको कहा था की खीर बना रहा है तो माता जी को जरूर चखा देना। नालायक ने गरम गरम खीर उनके हाथ में डाल कर दे दी।
जब हमने उससे पूछा तूने ऐसा क्यों किया ? तो उसने बोल – हमको क्या पता थी कि कैसे खीर चखानी है ? हम खीर बनाएं यह लेटी हुई थी और हाथ पसरा हुआ था हमको लगा की कह रही कि हाथ में ही दे दे। हम भी ठहरे आज्ञाकारी उठाकर गरम खीर हाथ में रख दी।
बिना कौड़ी के जलेबी
( Funny Story in Hindi )
रामू और श्यामु एक गाँव मे रहते थे। दोनों खाने पीने के बड़ी शौकीन थे। लेकिन जेब ठन ठन गोपाल था। इधर उधर हेरा फेरी करके अपना पेट भरते थे। ऐसे ही उनका जीवन चक्र चल रहा था। सबसे बड़ी बात किसी यह थी को यह पता नहीं चल पाता था कि ठगी करता कौन है। यह ठगी राम करता है या श्याम? दोनों मिलकर कुछ ऐसा चक्कर चलाते की पूरी दुनिया उसी में गोल-गोल होकर रह जाती। अभी दोनों बैठे कुछ वार्तालाप कर ही रहे थे। अचानक उनके नाक के नथुने फूलने शुरू हो गए।
राम – अरे श्याम तुमको कुछ खुशबू सुनाई पड़ रही है।
श्याम – सुनाई ! मुझको तो खुशबू दिखाई भी पड़ रही है
राम – तो क्या दिखाई पड़ा?
श्याम – अरे वह जो कल्लू हलवाई है बड़ा गोल-गोल जलेबी उतार रहा है। हा हा हा कैसी गरम-गरम जलेबी है। उसने अपने कपड़े में लिया और कढ़ाई में यह गोल-गोल यह गोल-गोल यह गोल गोल जलेबी घूम रही है। वाह! पूरी कढ़ाई भर गई भैया अब पलट पलट कर क्या मजेदार सेक रहा है और मजेदार जलेबियां चुन चुन कर ऐसे लग रहा है जैसे नर्तकी नृत्य कर रही हो।
राम – अरे श्याम तुमने तो जलेबियां का ऐसा सजीव चित्रण कर दिया है अब तो जलेबियां को खाए बिना रहा ना जाएगा आत्मा ऐसे तड़प रही है जैसे परमात्मा में लीन होना चाहती।
श्याम – तो फिर देर काहे की भैया चलते हैं ।
सबसे पहले रामू पहुंचा और जैसा चित्रण किया था वैसा ही वहां पर पाया। कल्लू हलवाई इतनी सुंदर जलेबियां तल रहा था और उसके बाद गुलाबी गुलाबी सेकने के बाद उसने अपने चिमटे से पकड़ कर चाशनी में बिल्कुल वैसे ही डुबो रहा था। जैसे श्याम ने वर्णन किया था।
तभी कल्लू हलवाई बोला – अरे कहिए भगत जी क्या चाहिए दूध जलेबी पेड़ा क्या चाहिए?
राम – अरे ज्यादा नहीं बस ऐसा करो एक पाव जलेबी का दाम बता दो।
कल्लू – एक पाव जलेबी बस ₹10 का है ले लीजिए
राम – हां तो फिर दे दीजिए देर काहे की।
कल्लू – बिल्कुल गरम वाली दीजिएगा
गरम-गरम जलेबियां दोना में रखकर जैसे ही कल्लू हलवाई ने रामू को दी। बड़े आनंद के साथ फूंक मार मार कर वह खाने लगा।
कल्लू – अरे भगत जी आराम आराम से बहुत गर्म है चाशनी अगर चिपक गई तो
रामू – अरे नहीं नहीं हम बड़े आराम से खा रहे हैं और एक तरफ होकर वह आनंद लेने लग गया । इसके बाद shyam आता है।
श्याम – भाई मुझे सिर्फ एक पाव जलेबी का दाम बता दीजिए ?
कल्लू – ज्यादा नहीं ₹10 का
श्याम – तो दे दीजिए तुरंत
उसने भी दानों में भरी और एक तरफा होकर वह भी खाने लगा।
जब रामू ने जलेबी ली तो कल्लू हलवाई ने बोला – पैसा दे दीजिए
रामू – अरे यह कैसी बात कर रहे हैं कल्लू हलवाई सुबह-सुबह भांग चढ़ाई है क्या? जैसे ही जलेबी ली कैसी है मैं ₹10 दे दिया था।
कल्लू – अरे यह कैसी बात कर रही है पहले बहनी मेरी आपसे ही हुई है देख लीजिए गला खाली है ।
रामू – यह मुझे नहीं पता मैंने आपको ₹10 दिया तो ही आपने मुझे जलेबी दी और इतनी देर से खा रहा हूं आराम आराम से खा रहा हूं तब तो आपने एक बार नहीं टोका।अब कह रहे हैं जब मैं खा कर दोना फेंक दिया कि ₹10 दे दीजिए। भला कोई बिना पैसे के कोई इस तरह जलेबी देता है। आप अपने आप को मूर्ख बना रहे हैं या मुझे?
दोनों आपस में झगड़ने लगे तभी श्याम जोर से बोला अरे भाई तुम अपने झगड़े में कल्लू हलवाई मेरे ₹10 मत भूल जाना मैं तो तुरंत दे दिए थे। अभी जब आपस में झगड़ा कर रहे थे तो शाम ने भी अपना पत्ता फेंक दिया।
तुरंत कल्लू हलवाई बोला – हां हां मैं आपसे बाद में बात करता हूं पहले इनसे निपट लूँ।
श्याम – अरे मुझे नहीं पता पहले मेरा निपट करो मैंने तुरंत 10 रु दिए न?
कल्लू – अरे आपने नहीं दिए भाई साहब आप। आपने जलेबी का दाम पूछा और फिर कहा कि जलेबी ऐसी और मैंने आपको जलेबी दी। फिर आप ऐसे आराम से नहीं खा रहे थे जल्दी-जल्दी खा रहे थे। मुझे लगा आपकी जुबान न जल जाए तो मैं आपको टोक रहा था फिर आपकी खिसक कर इधर हो गए अपने पैसे नहीं दिए।
रामू – अरे कैसे बात कर रहे हो आप चाहो तो श्याम से पूछ लो। श्याम भी तो तुरंत आ गया था उसी समय।
श्याम – देखिए भाई आप दोनों का झगड़ा है कल्लू भैया मेरे पैसे मत भूल जाना।
कल्लू – अरे तुम चुप करो भाई तुम्हारा सुन लिया मैंने हां दे दिया तुमने पैसे दे दी । पहले यह बताओ क्या इन्होंने मुझे पैसे दिए ?
श्याम -देखिए राम जी की कसम खाकर कह रहा हूं, जैसे पैसे मैंने दिए ऐसे ही राम ने भी दिए ।
अब तो कल्लू हलवाई कुछ भी ना कह सका ।
दोनों ने एक दूसरे को देखा और मुस्कुरा कर चल दिए। इस तरह से उन्होंने बिना पैसे दिए जलेबी खा ली और कल्लू हलवाई को ठग दिया।
दोस्तों आज की Funny Story in Hindi आपको कैसे लगी ये आप कॉमेंट करके बता सकते है। हम उम्मीद करते है की ये कहानी आपको जरूर पसंद आएगी। हम ऐसे ही मजेदार कहानियाँ आपके लिए लेकर आते रहेंगे।
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