Educational Story in HIndi

नमस्कार दोस्तों, हमेशा की तरह आज फिर से हाजिर है एक नए पोस्ट के साथ जिसका टाइटल Educational Story in Hindi है। हम उम्मीद करते है की ये कहानियाँ आपको पसंद आएंगी और आप इसे अपने दोस्तों, के साथ जरूर शेयर करेंगे।

शांति का दूत – सांप

Educational Story in Hindi
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एक समय की बात है। एक बहुत बड़ा और बहुत पुराना बरगद का पेड़ था। सारे चरवाहे अपनी भेड़ बकरियां चराने के लिए वहां आते थे। लेकिन कोई भी चरवाहा या उनका जानवर उसे बरगद के पेड़ के पास नहीं जाता था। इसका कारण था उसी पेड़ के नीचे रहने वाला एक सांप। पेड़ की जड़ों में उस सांप का बिल था। वह सांप बहुत ही जहरीला और देखने में बहुत ही ज्यादा भयानक था। किसी की हिम्मत नहीं होती थी कि वह पेड़ के नजदीक से भी गुजर जाए।

एक दिन गांव में एक साधु महाराज आए उन्हें वह बरगद का पेड़ बहुत ही पसंद आया। साधु उसी पेड़ के नीचे ध्यान समाधि लगाने के लिए चल दिए। कुछ चरवाहों ने साधु महाराज को उस पेड़ के नीचे जाने से मना भी किया। लेकिन साधू ने उनकी बात को अनसुना कर दिया और वह बरगद के पेड़ के नीचे ध्यान समाधि लगाकर बैठ गए। कुछ देर बाद वह जहरीला सांप अपने बिल से बाहर आया और जब उसने वहां साधु महाराज को बैठे हुए देखा तो सांप ने अपना फन लहराया और फूंकारने लगा।

सांप को देखकर वह साधु महाराज बिल्कुल शांत बैठे रहे, साधु ने सांप की तरफ देखा और अपना एक हाथ हवा में उठाकर कुछ मंत्र पढ़ने लगे इसका असर यह हुआ कि वह भयानक सांप बिल्कुल शांत हो गया। उसने फुँकारना बंद कर दिया और वह शांत होकर जमीन पर लेट गया। साधु महाराज ने सांप से कहा तुम बिना वजह ही लोगों को सताते हो। उन्हें डस कर उन्हें मार डालते हो। आज से तुम किसी इंसान को नहीं डसोगे। किसी की जान नहीं लोगे और कोई भी हिंसा का काम नहीं करोगे।

सांप ने बिल्कुल शांति से कहा ठीक है आज से मैं बिल्कुल आपके बताए हुए रास्ते पर ही चलूंगा। चाहे कुछ भी हो जाए मैं बिल्कुल भी हिंसा नहीं करूंगा। साधु महाराज सांप की इस बात से काफी खुश हुए और उसके बाद वह साधु वहां से चले गए। कई दिन बीत गए अब वह सांप अपने बिल में बिल्कुल शांति से रहता था। उसने हिंसा का रास्ता छोड़ दिया। यहां तक कि उसने अपने खाने के लिए शिकार करना भी बंद कर दिया। जिसका नतीजा यह निकला कि वह सांप बहुत ही कमजोर होता जा रहा था।

एक दिन एक चरवाहे लड़के ने देखा कि वह भयानक सांप अपने बिल के बाहर पेड़ के नीचे बिल्कुल शांत पड़ा हुआ है। ऐसा लग रहा था मानो वो सांप मर चुका हो। लड़के ने कुछ पत्थर उठाकर उसे सांप की तरफ फेंक, उन पत्थरों से सांप को काफी ज्यादा चोट लगी और उसके शरीर पर जख्म के निशान भी पड़ गए। लेकिन फिर भी वह सांप बिल्कुल शांत ही पड़ा रहा।

यह देखकर उस लड़के की हिम्मत और भी बढ़ गई उसने सांप को पूछ से पकड़ लिया और उसे जोर-जोर से घूमने लगा। सांप को बहुत दर्द और बहुत तकलीफ महसूस हो रही थी। फिर भी वह शांत ही रहा सांप ने लड़के को डसने की कोशिश भी नहीं कि। आखिर में उस लड़के ने सांप को बड़े-बड़े पत्थरों पर पटक दिया और वहीं पर सांप को मरने के लिए छोड़ दिया। सांप अब बिल्कुल बेहोश हो चुका था ।

शाम को वह साधु महाराज फिर से उसी बरगद के पेड़ के नीचे आए। जब उन्होंने सांप को ऐसी दर्दनाक हालत में देखा तो वह बहुत ही दुखी हो गए। उन्होंने जड़ी बूटियां लगाकर सांप का इलाज किया। कुछ देर बाद जब सांप को होश आया तो साधु महाराज ने सांप से पूछा कि तुमने यह अपनी क्या हालत बना रखी है।

तुम तो बिल्कुल मरने ही वाले थे। यह सब कैसे हो गया बताओ मुझे तब सांप ने कहा मैं तो बस आपके बताए हुए रास्ते पर ही चल रहा था। मैंने हिंसा करना बिल्कुल ही बंद कर दिया था। उस चरवाहे लड़के ने मुझे बहुत सताया मुझे पत्थरों पर पटक भी दिया। लेकिन फिर भी मैंने उसे नहीं डसा।

साधु यह सुनकर बोले यह बहुत अच्छी बात है कि तुमने अपने गुस्से को काबू में कर लिया है। लेकिन मैं तुम्हें लोगों को डसने से मना किया था अपना फन लहराकरऔर फनकार कर उन्हें डराने से मना नहीं किया। तुम्हें दूसरों को नुकसान नहीं पहुंचाना लेकिन जो तुम्हें नुकसान पहुंचा रहा है। उसे तुम अपना फन लहरा कर और फूंकार मार कर तो डरा ही सकते हो। जिससे कि वह तुमसे दूर रहे।

दोस्तों हमें भी अपने व्यवहार में अच्छी आदतों को शामिल करना चाहिए – जैसे सबसे प्यार से बात करना, गुस्सा ना करना। यह बहुत जरूरी भी है लेकिन कहीं ऐसा ना हो कि कुछ बुरे लोग आपकी अच्छाई का फायदा उठाएं और आपका ही नुकसान कर दें। हमें अपने व्यवहार को अच्छा होने के साथ-साथ प्रैक्टिकल भी बनाना चाहिए।

कर्ज का बोझ

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रतनपुर गांव में बिरजू नाम का चरवाहा अपनी बेटियों के साथ रहता था। बिरजू की सात बेटियां थी। जिसमें से पांच को वह ब्याह चुका था। बिरजू की पत्नी भगवान को प्यारी हो चुकी थी। बिन मां की बच्चियों को बिरजू ने बड़े ही जतन से पाला था। संपत्ति के नाम पर बिरजू के पास एक टूटा फूटा झोपड़ी जैसा घर था और 20 भेड़ बकरियां थी। इन्हीं की उन और दूध बेचकर वह अपना और अपनी बेटियों का गुजारा करता था। इतनी गरीबी में रोजमर्रा का गुजारा तो चल जाता लेकभी किसी बेटी की शादी करनी होती तो शादी के खर्च और दान दहेज देने के लिए उसे अपनी बकरियों भी बेचनी पड़ जाता था।

इसीलिए उसकी बकरियों की गिनती अब कम होती जा रही थी। उसने गांव के साहूकार से ब्याज पर कर्ज भी ले रखा था। साहूकार लाल अक्सर पैसे और ब्याज वसूलने उसके घर पर आ जाता था। बिरजू की बकरियां में एक छोटा मेमना भी था जो बिरजू को जान से भी ज्यादा प्यार था। मेमना भी बिरजू को बहुत प्यार करता था। यह मेमना पूरा दिन गांव में घूमता रहता कभी बेरी के पेड़ पर तो कभी कुएं की मुंडेर पर। बिरजू का एक असूल था कि जब भी वह अपनी बकरी किसी को बेचता तो इस बात की पूरी तसल्ली कर लेता की बकरी कसाई के हाथों में ना पहुंच जाए।

इस साल भी बिरजू ने साहूकार लाल से मोटी रकम ब्याज पर ली थी। उसे अपनी सबसे छोटी बेटी की शादी जो करनी थी। एक शाम साहूकार बीजू की झोपड़ी में आया और कर्ज वापस करने के लिए धमका कर गया की 2 दिन में मेरा कर्ज ब्याज समेत वापस करो। बिरजू इस कर्ज के बोझ से मुक्ति पाना चाहता था। अगली सुबह ही बिरजू ने अपनी बकरियों बेचने के लिए कुछ ग्राहकों को घर पर बुलाया।

पड़ोस के गांव का मुखिया अपनी 9 साल की बेटी के साथ बकरियां खरीदने के लिए आया। मुखिया ने एक साथ आठ बकरियां खरीद ली। उसकी छोटी सी बेटी मेमने को खरीदने की जिद करने लगी। बिरजू मेमने को बेचने से मना कर देता है। लेकिन मुखिया की बेटी की जिद के कारण मुखिया मेमने की ऊंची कीमत देने को भी तैयार हो गया। आठ बकरियां और मेमने की ऊंची कीमत को मिलता देखकर बिरजू सोचने लगा इतनी रकम से तो वह साहूकार का सारा कर्ज भी चूका देगा और अपनी बेटी का ब्याह भी कर लेगा।

अच्छा पैसा मिलता देख बिरजू भारी मन से मेमने को बेचने के लिए भी राजी हो गया। बिरजू ने नम आंखों से मेमने को मुखिया को थमा दिया। मेमना मुखिया के साथ जाने को तैयार नहीं था। लेकिन मुखिया जोर जबरदस्ती मेमने को ले ही गया। अपने नए मालिक के पास आकर मेमना खुश नहीं था। उसने पूरा दिन कुछ नहीं खाया।

अगली सुबह ही वह मेमना वापस अपने पुराने मालिक बिरजू के घर पहुंच गया। उसे रास्ता याद जो हो चुका था। बिरजू ने अपने दरवाजे पर मेमने को देखा तो देखते ही उसे गले लगा लिया। लेकिन तभी पीछे मुखिया को भी खबर हो गई थी। वह वापस मेमने को लेने बिरजू के पास पहुंच गया और मेमने को फिर से अपने साथ अपने घर पर ले आया।

इस बार मुखिया को मैंने पर बहुत गुस्सा आया और उसने मेमने को रस्सी से बांध दिया। पूरा दिन उसे घास भी नहीं खिलाई। दो-तीन दिन तक यही सिलसिला चलता रहा। मुखिया की बेटी को मेमने पर बहुत दया आ रही थी। लेकिन उसके पिता उसे मेमने से मिलने ही नहीं देते थे। एक रात चुपके से मुखिया की बेटी ने मेमने की रस्सी खोल दी और कहा जा भाग जा यहां से।

मेमना पूरी शक्ति के साथ भाग गया। लेकिन इस बार रात के अंधेरे मे वो रास्ता भटक गया और अपने पुराने मालिक के पास नहीं पहुच पाया। सुबह होते होते मेमना बहुत दूर आ चुका था। उसने सामने देखा की एक मटर का खेत है। वो बस सीधा खेत मे ही घुस गया और अपनी भूख मिटाने लगा।

थोड़ी देर मे वहाँ खेत के रखवाले या गए और उसे पकड़कर खेत के मालिक के पास ले गए। खेत ने मालिक ने कहा – इस माना ने मेरी मटर के फसल को बर्बाद की है अब मेरे नुकसान की भरपाई भी यही करेगा। बंद कर दो इसे तहखाना में। मेमना तहखाना में बंद था तभी एक मोटा सा आदमी आया और मेमने को जबरदस्ती खींच कर ले जाने लगा। मेमना मन ही मन समझ गया कि अब उसका आखिरी वक्त आ गया है।

वह मोटा आदमी एक कसाई था, जिसको खेत के मालिक ने बुलाया था और मेमने को उसे बेच दिया। मेमना सोचा अब जो किस्मत में होगा वह होकर ही रहेगा। मेरी किस्मत में कसाई के हाथों मौत लिखी है तो यही सही। मेमना बिना किसी विरोध के कसाई के साथ-साथ चलने लगा।

बहुत देर तक पैदल चलते-चलते अचानक मेमने को महसूस हुआ कि यह रास्ता कुछ जाना पहचाना सा है। यह बेरी का पेड़, यह कुआं, देखे देखे से लग रहे हैं। यह देखते-देखते मेमने का मन खुशी से नाचने लगा। क्योंकि यह रास्ता उसके पुराने मालिक के गांव को जा रहा था। ना जाने मेमने में कहां से इतनी ताकत आ गई।

उसने एक झटके से कसाई के हाथ से अपनी रस्सी छुड़ाई और सरपट दौड़ता हुआ अपने पुराने मालिक यानी बिरजू के दरवाजे पर पहुंच गया। बिरजू ने जब अपने प्यारे मामले को देखा तो वह भी खुशी से झूम उठा। पीछे-पीछे वह कसाई भी बिरजू के घर पहुंच गया और बोला मैंने यह मेमना खरीदा है वापस करो इसे।

बिरजू ने कहा पूरा गांव जानता है कि मैं आज तक अपना कोई भी जानवर किसी कसाई को नहीं बेचा ।अब यह मेमना मेरा है और मेरे पास ही रहेगा। बिरजू के आस-पड़ोस वालों ने भी बिरजू का ही साथ दिया कसाई को खाली हाथ ही लौटना पड़ा। बिरजू अपने मेमने को वापस पाकर बहुत खुश था। मेमने को बेचकर ज़ो रकम मिली थी बिरजू ने उससे साहूकार का कर्ज भी चुका दिया और अपनी बेटी की शादी भी करवा दी। अब वह अपने कर्ज के बोझ से मुक्त हो चुका था।

सौ बोरी अनाज

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प्रीतमगढ़ के सेठ गोपीचंद अपनी चालाकी और हाजी जवाबी के लिए पूरे गांव में मशहूर थे। उनके होशियारी के सामने कोई नहीं टिक पाता था। बड़े ही सुख चैन से वह अपना जीवन वसर कर रहे थे। मगर जब उनका बेटा चंदू बड़ा हुआ तो वह उनकी चिंता का कारण बन गया। चंदू एक बहुत ही भोला भाला लड़का था। सेठ जी को लगता था कि मेरा बेटा इतना सीधा-साधा है। मेरे बाद इसका गुजारा कैसे चलेगा। एक दिन सेठ जी ने चंदू को 100 भेड़ देते हुए कहा तुम इन्हे नगर लेकर जाओ, इन्हे मारना या बेचना नहीं इन्हे वापस लाना वो भी सौ बोरी जौ के साथ। वरना तुम्हें घर में घुसने नहीं दूंगा।

सेठ ने सोचा शायद यही तरीका है, जिससे वह अपने बेटे को बाहर की दुनिया की तरह तेज तर्राक बना सके। चंदू भेड को लेकर निकल पड़ा और नगर में पहुंचकर एक चौराहे पर जाकर बैठ गया और सोचने लगा कि इस समस्या का क्या हाल होगा। अभी चंदू बैठे-बैठे सोच में मगन ही था कि तभी उसे एक लड़की की आवाज सुनाई दी। लड़की ने कहा बाहर गांव से आए मुसाफिर लगते हो लगता है कोई परेशानी है। मैं तुम्हारी कुछ मदद करूं। इस अनजान नगर में अपनेपन के दो मीठे बोल सुनकर सीधा-साधा चंदू खुश हो गया। उसने लड़की को सारी बात बता दी।

उस लड़की का नाम रूपसा था वह इसी नगर के रहने वाली थी। रूपसा ने चंदू की सारी बात सुनकर कहा इसमें इतना परेशान होने वाली कौन सी बात है । मेरे पास तुम्हारी समस्या का हाल है। तुम इन भेद के बाल उतार कर उन बनाने वालों को बेच दो और जो पैसे मिलेंगे उससे जाकर जौ के बोरे खरीद लेना। चंदू ने ऐसा ही किया और वापस अपने पिता के पास भेद और 100 बोरी जौ के साथ पहुंच गया। घर पहुंच कर चंदू ने सोचा कि उसके पिता बहुत खुश होंगे। लेकिन जब पिता को मालूम पड़ा की एक लड़की ने उसकी मदद की है तो वह नाराज हो गए।

दूसरे दिन सेठ जी ने एक बार फिर से चंदू को बुलाया और कहा पिछली बार तुमने भेड़ों के बाल बेच दिए थे। जो बात मुझे पसंद नहीं आई इस बार फिर से भेड़ को नगर में लेकर जाओ और 100 बोरी जौ के साथ में लेकर आना चंदू निराश होकर एक बार फिर से नगर की तरफ चल पड़ा। इस बार भी उसके साथ 100 भेड़े थी।

चंदू फिर से उसी चौराहे पर जाकर बैठ गया। तभी रुपसा एक बार फिर से उससे मिलने आई। चंदू ने रूपसा को अपने पिता की कही बात बताई और कहने लगा इस बार में 100 बोरी जौ कि नहीं ले जा पाऊंगा। तभी रक्सा ने कहा एक तरीका है तुम भेड के सिंह काटकर बाजार में बेच दो और उसके धन से जौ की बोरियां खरीद लेना।

चंदू ने ऐसा ही किया और सौ बोरी जौ की लेकर पिता के पास पहुंचा। भेड़ों को पिता को को देकर वो बहुत खुश था। उसने पिता को अपनी सारी बात बताई। सेठ जी ने ऐसे सोच जो लड़की मेरे लड़के की इतनी मदद कर रही है। वो जरूर ही स्वभाव मे अच्छी होगी और बुद्धिमान तो वो है ही। सेठ जी ने चंदू से कहा की उस लड़की से कहो की वो हमें 9 फिट लंबी राख की रस्सी ल कर दे। चंदू ने ये संदेश रुपसा तक पहुँच दिया।

रूपसा ने कहा रस्सी तो मैं बना दूंगी लेकिन वह रस्सी तुम्हारे पिता को गले में पहननी होगी। चंदू ने यह बात अपने पिता को बताई। चंदू के पिता इस शर्त को मान गए क्योंकि उन्हें पता था कि राख की रस्सी बनाना असंभव काम है। अगले दिन रूपसा ने 9 हाथ लंबी रस्सी ली और उसे पत्थर की बड़ी चट्टान पर रखकर जला दिया। रस्सी तो जल गई मगर रस्सी के आकार की राख बच गई। फिर सेठ जी को बुलाया गया कि वह इस राख के रस्सी को गले में पहन ले।

सेठ जी ने जब वह रस्सी देखी तो उसे पहनना तो दूर उठना भी मुश्किल था क्योंकि हाथ लगाते ही राख की रस्सी टूट जाती। रूपसा की समझदारी के आगे सेठ जी की होशियारी धरी की धरी रह गई। सेठ जी ने बिना वक्त गवाएं रूपसा के आगे उसके बेटे से शादी करने का प्रस्ताव रख दिया। भला रूपसा जैसी समझदार बहू उन्हें कहां मिलती। फिर दोनों की धूमधाम से शादी कर दी गई।

अधूरा सच

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आज की हमारी मोटिवेशनल स्टोरी एक जहाज पर काम करने वाले इंसान की है। जिसका नाम था जॉर्ज जो की एक बहुत ही बड़े समुद्री जहाज पर काम करता था। जॉर्ज पिछले 3 सालों से यह नौकरी कर रहा था। यह जहाज एक ऐसी कंपनी का था। जो सामान को लाद कर एक देश से दूसरे देश में पहुंचाती थी। जॉर्ज का काम जहाज में सामान को रखना उसकी देखभाल करना था।

इसी जहाज पर जॉर्ज के साथ कुछ और लोग भी काम करते थे। वैसे तो जॉर्ज अपने काम से बहुत ही खुश था, क्योंकि इस काम से उसे बहुत ही अच्छी सैलरी मिलती थी और जहाज पर काम करने वाले बाकी लोगों के साथ भी उसकी अच्छी दोस्ती थी।

लेकिन उसे समुद्री जहाज के कप्तान अल्बर्ट के साथ जॉर्ज का 36 का आंकड़ा था। दोनों एक दूसरे को कुछ खास पसंद नहीं करते थे। जॉर्ज पिछले 3 साल से जहाज पर काम कर रहा था लेकिन आज तक उसने कोई भी शिकायत का मौका नहीं दिया था। जॉर्ज अपने पूरे काम को पूरी मेहनत और ईमानदारी के साथ जो करता था। यह समुद्री जहाज जिस कंपनी का था उसका यह रूल था कि जहाज पर एक कंप्लेंट रजिस्टर रखा रहता था।

जिसमें कोई भी कर्मचारी अपनी कंप्लेंट लिख देता था और साल के आखिर में जब कर्मचारियों के प्रमोशन या उनकी सैलरी बढ़ाने का टाइम आता था तो कंपनी के बड़े अधिकारी उसे रजिस्टर में लिखी हुई बातों को ध्यान में रखकर ही उनका प्रमोशन करते थे या उनकी सैलरी बढ़ाते थे। जहाज के कप्तान ने कई बार चाहा कि वह रजिस्टर में जॉर्ज की कंप्लेंट लिखे लेकिन जॉर्ज अपने काम में इतना माहिर था कि उसने आज तक कोई शिकायत का मौका ही नहीं दिया था।

एक शाम को जॉर्ज और उसके साथी जहाज पर काम कर रहे थे। तभी उन्हें पता चला कि उनमें से एक कर्मचारी का जन्मदिन भी है। बस इस मौके पर उन्होंने पार्टी की और सब ने शराब भी पी ली। इसके बाद बाकी सब तो सोने के लिए चले गए लेकिन जॉर्ज जहाज के डेट पर ही रहा। उसे कुछ बेचैनी सी महसूस हो रही थी क्योंकि उसने आज से पहले कभी भी शराब नहीं पी थी। कैप्टन को पता चल चुका था कि जार्ज ने आज शराब पी ली है।

कप्तान ने इस बात को रजिस्टर में कुछ इस तरह से दर्ज किया। कप्तान ने लिखा – जॉर्ज आज रात नशे में धुत था। जॉर्ज ने भी यह बात रजिस्टर में जाकर पढ़ ली। जॉर्ज जानता था कि इस एक सेंटेंस से उसकी नौकरी खतरे में पढ़ सकती है।वह सीधा कैप्टन के पास गया और उसने कैप्टन से माफी भी मांगी।

लेकिन कप्तान अल्बर्ट पर इसका कोई भी असर नहीं पड़ा। फिर जॉर्ज ने कप्तान से कहा कि आप इस सेंटेंस में एक लाइन और जोड़ दें और वह यह कि पिछले 3 सालों में ऐसा पहली बार हुआ है। क्योंकि यही पूरी सच्चाई है कप्तान ने ऐसा करने से मना कर दिया और उसने कहा कि मैंने जो भी रजिस्टर पर लिखा है वही असली सच है।

जॉर्ज मायूस होकर वहां से चला गया अगले दिन जॉर्ज भी रजिस्टर रूम में गया और उसने भी रजिस्टर में एक सेंटेंस लिख दिया। कप्तान ने जब जाकर देखा कि जार्ज ने रजिस्टर में क्या लिखा है तो जॉर्ज ने लिखा था आज की रात कप्तान ने शराब नहीं पी यह पढ़कर कप्तान जार्ज के पास गया और उसने जोर से कहा कि जॉर्ज तुमने जो भी लिखा है उसे तो यह जाहिर होता है कि कैप्टन हर रात शराब पीता है। लेकिन जॉर्ज ने कहा मैंने तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं लिखा मैंने जो भी लिखा है बिल्कुल सच ही लिखा है। कल रात को आपने शराब नहीं पी थी।

उस पर कप्तान ने कहा तुम उस सच को पूरी तरह से लिखो। वह पूरी सच्चाई नहीं है। तब जॉर्ज का जवाब था कि जिस तरह से आपने मेरे बारे में आधा ही सच लिखा था। मैंने भी आपके बारे में आधा ही सच लिखा है आपको समझ में आ गया होगा कि अधूरा सच एक झूठ के बराबर ही होता है।

दोस्तों हालांकि दोनों ने रजिस्टर में जो लिखा था वह सही था लेकिन उनसे जो मैसेज मिलता था वह बिल्कुल ही भड़काने वाला था। उसमें सच्चाई की झलक नहीं थी। अक्सर ही लोग किसी इंसान के बारे में पूरी बात जाने बिना ही उस इंसान के बारे में अपनी एक राय बना लेते हैं। हमें लोगों को जज करने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। क्योंकि हर एक इंसान की अपनी एक कहानी होती है जो शायद हम नहीं जानते।

चर्च का पहरेदार

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दोस्तों, जब सारे दरवाजे बंद हो जाते है तब भी जिन्दगी हमे एक मौका और देती है आगे बढ़ने का। हमें बस उस मौके को पहचानना होगा। हर मौका पहले मौके से छोटा या उससे बड़ा हो सकता है। लेकिन मौका मिलता जरूर है बस जरूरत है उसकी पहचान की और आगे बढ़ाने की। जो लोग ऐसा कर पाते हैं वह चुनौती को भी अवसर में बदल देते हैं।


एक शहर मे एक चर्च था। सालों से शहर के लोग अक्सर ही इस चर्च में प्रार्थना करने के लिए आते थे। चर्च काफी पुराना था इसी चर्च में एक पहरेदार भी काम करता था जो पिछले 30 साल से इसी चर्च में नौकरी कर रहा था। पहरेदार की उम्र लगभग 50 साल की थी इस उम्र में भी वह अपना काम बहुत ही मुस्तैदी के साथ करता। वह अपने काम से बहुत ही संतुष्ट था। वह चर्च में बने हुए कमरे में ही अकेला रहता था।

अब क्योंकि वह अकेला ही रहता था तो उसकी कुछ खास ज़रूरतें भी नहीं थी। उसके कमरे में कुछ खाने पीने का सामान, एक चूल्हा और एक बिस्तर ही था उसे बस एक ही शौक था और वह था चाय पीने का। अपने लिए वह बेहतरीन चाय बनाता था और कभी-कभी चर्च में आने वाले लोगों को भी पिलाता था।

इस चर्च के फादर से उसकी अच्छी बनती थी इसीलिए तो पिछले 30 साल से यही पर टिका हुआ था। एक दिन अचानक फादर की हार्ट अटैक से मौत हो गई तो उनकी जगह एक नए फादर ने ले ली। जो की काफी जवान था और बहुत ही पढ़ा लिखा भी था। पहरेदार जिसका नाम डेविड था।

वह काफी ईमानदारी से अपना काम कर रहा था और नया फादर उसके काम से संतुष्ट भी था लेकिन एक दिन उसने पहरेदार डेविड को अपने कमरे में बुलाया और कहा कि तुम बहुत ही ईमानदारी से काम कर रहे हो और मैं तुम्हारे काम से खुश भी हूं। लेकिन आजकल के मॉर्डन जमाने में मैं चाहता हूं कि चर्च का पहरेदार भी पढ़ा लिखा होना चाहिए। तो तुम ऐसा करो कि पढ़ाई लिखाई शुरू कर दो और कम से कम पांचवी क्लास तक की पढ़ाई तो कर ही लो।

अब यह बात सुनकर पहरेदार डेविड परेशान हो गया। वह मन में सोचने लगा कि अब तो मेरी पढ़ाई लिखाई की उम्र भी नहीं रही और वैसे भी इसका मेरे काम में कोई इस्तेमाल भी नहीं है। लेकिन फादर को तो एक पढ़ा लिखा पहरेदार ही चाहिए था तो उन्होंने पहरेदार से साफ-साफ कह दिया कि या तो पढ़ाई लिखाई शुरू कर दो या फिर यह नौकरी छोड़कर चले जाओ। पहरेदार डेविड ने यह नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया। उसने अपना थोड़ा बहुत जो भी सामान था बिस्तर चूल्हा वगैरा इकट्ठा किया और रवाना हो गया।

इस सर्दियों के मौसम में पहरेदार डेविड उस चर्च से निकल तो पड़ा लेकिन उसे खुद भी अंदाजा नहीं था कि वह कहां जाएगा। वह बस शहर की तरफ जाने वाली सड़क पर चलना शुरू कर देता है। ठंड से उसकी कंप कपी छूट रही थी। उसके दिमाग में तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे। सोचते सोचते पहरेदार डेविड को चाय पीने की तलब लगने लगी। उसने सड़क पर इधर-उधर काफी दूर तक नजर दौड़ाई। लेकिन उसे कोई भी चाय की दुकान नहीं नजर आई।

डेविड को चाय पीने की तलब इतनी ज्यादा लगी थी कि उसने रास्ते में ही किनारे पर अपना चूल्हा और चाय बनाने का सामान रखा और उसने चाय बनाना शुरू कर दिया। अपने लिए एक बेहतरीन चाय बनाकर वह पीने लगा अब उसे ठंड से भी कुछ राहत महसूस होने लगी थी। वह चाय पीने में मगन हो गया तभी उसने महसूस किया कि उसे कोई आवाज लग रहा है और वह आवाज थी और चाय वाले चार कप चाय के लिए हमें भी दे दो ठंड के मारे जान निकली जा रही है।

इतना सुनते ही उसे पहरेदार ने देखा की चार लोग उसे चाय पीने की फरमाइश कर रहे हैं। डेविड ने उनके लिए चाय बना दी और उनको चाय पिलाई और बदले में उनसे कुछ पैसे भी कमा लिए। बस फिर क्या था डेविड को समझ आ गया कि इस चर्च से लेकर शहर तक की सड़क के बीच में चाय की कोई भी दुकान नहीं है। उसने चाय का धंधा शुरू कर दिया। वह वहीं पर सड़क के किनारे पर अपना सामान इकट्ठा करके चाय बनाने लगा। उन लोगों को चाय पिलाने लगा।

कुछ ही दिनों में उसकी चाय की दुकान पूरे इलाके में मशहूर हो गई और धीरे-धीरे कुछ ही महीना में उसका धंधा इतना अच्छा चल पड़ा कि उसने अपना एक पूरा होटल बना लिया। अब वह पहरेदार नहीं था बल्कि एक शानदार होटल का मालिक बन चुका था। तब उसे किसी ने सलाह दी कि अब तुम्हारे पास इतना पैसा है तो तुम्हें यह पैसा बैंक में इन्वेस्ट कर देना चाहिए। जहां पर तुम्हारा पैसा से भी रहेगा और तुम्हें उस पर ब्याज भी मिलता रहेगा।

शहर के एक बैंक ने अपना एक बैंक कर्मचारी डेविड के पास भेजा जिससे कि डेविड अपना पैसा बैंक में इन्वेस्ट कर सके। जब वह बैंक कर्मचारी डेविड के घर पर पहुंचा तो डेविड की शान और शौकत देखकर बहुत ही खुश हो गया।डेविड ने उस बैंक कर्मचारी को अपनी बेहतरीन चाय का ऑफर दी इसके बाद दोनों ने बातचीत शुरू हो गई। बातों ही बातों में उस बैंककर्मचारी ने डेबिड के होटल उसके चाय की बहुत ही तारीफ की।

फिर पैसे इन्वेस्ट करने के लिए उसने एक फॉर्म निकाला जिस पर उसे डेबिट के साइन चाहिए थे। लेकिन डेविड ने उस फार्म पर साइन करने से मना कर दिया क्योंकि डेविड अनपढ़ था उसे साइन करना आता ही नहीं था। यह देखकर वह बैंक कर्मचारी हैरान रह गया कि इतने बड़े होटल का मालिक और इतना अमीर आदमी बिल्कुल अनपढ़ है। उससे रहा नहीं गया तो बैंक कर्मचारी ने डेबिड से बोला सर आप पढ़े-लिखे नहीं है। फिर भी आपने इतना बड़ा होटल खड़ा कर दिया। अगर आप कहीं पढ़े लिखे होते तो आप ना जाने क्या-क्या कर जाते और न जाने कितने और होटल आप बना देते।आप क्या होते आपको भी अंदाजा नहीं है।

बैंक कर्मचारी की बात सुनकर डेबिड की हंसी छूट गई और वह हंसते-हंसते बोला कि अगर मैं पढ़ लिख जाता तो आज भी उसी चर्च में पहरेदार ही होता। मै अनपढ़ हूँ लेकिन मूर्ख नहीं।

दोस्तों मूर्ख इंसान वो नहीं है जो पढ़ा लिखा नहीं है। बल्कि आज के जमाने में हमें पढ़े-लिखे मूर्ख भी मिल जाते हैं। एक समझदार इंसान वह है जो लाइफ में मिलने वाले हर मौके को पहचानता है और उसका फायदा उठाकर आगे बढ़ सकता है। हो सकता है कुछ मौका पर आप असफल भी हो जाए, लेकिन अपने असफलता से सीख सीख कर ही हम अपने चुनौतियों को अवसर में बदल सकते हैं।

आपको आज का पोस्ट Educational Story in HIndi कैसा लगा ये आप कमेन्ट करके बता सकते है। हम ऐसे ही मजेदार कहानियाँ आपके लिए लेकर आते रहेंगे।

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