बचपन और कहानियों का एक अलग ही नाता है। यह कहानियां ही तो हैं, जो जिंदगी की छोटी से छोटी सीख बड़े ही सहज और सरल तरीके से दे जाती हैं और इसी सीख पर निर्भर करता है बच्चों का व्यक्तित्व। आज भले ही दिल बहलाने वाली बच्चों की नैतिक कहानियां हमारे जहन से धुंधली हो गई हों, लेकिन उनसे मिली सीख यकीनन आज भी आप सभी के दिलों में जिंदा होगी। वहीं आज के दौर की बात करें, तो हम बच्चों को बहलाने के लिए उनके हाथ में टीवी का रिमोट या मोबाइल थमा देते हैं और इस बात को भूल जाते हैं कि बच्चों को बहलाने से कहीं ज्यादा जरूरी है, उन्हें नैतिकता का पाठ पढ़ाना है।
आज हम ऐसे ही कुछ Short Story in Hindi लेकर आए है। हम उम्मीद करते है की ये पोस्ट आपको पसंद आएगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करेंगे।
मर्ख साधू और ठग
एक बार की बात है किसी गांव में एक साधु बाबा रहा करते थे। पूरे गांव में वह अकेले साधु थे, जिन्हें पूरे गांव से कुछ न कुछ दान में मिलता रहता था। दान के लालच में उन्होंने गांव में किसी दूसरे साधू को नहीं रहने दिया और अगर कोई आ जाता था, तो उन्हें किसी भी प्रकार से गांव से भगा देते थे। इस प्रकार उनके पास बहुत सारा धन इकट्ठा हो गया था।
वहीं, एक ठग की नजर कई दिनों से साधु बाबा के धन पर थी। वह किसी भी प्रकार से उस धन को हड़पना चाहता था। उसने योजना बनाई और एक विद्यार्थी का रूप बनाकर साधु के पास पहुंच गया। उसने साधु से अपना शिष्य बनाने का आग्रह किया।
पहले तो साधु ने मना किया, लेकिन फिर थोड़ी देर बाद मान गए और ठग को अपना शिष्य बना लिया। ठग साधु के साथ ही मंदिर में रहने लगा और साधु की सेवा के साथ-साथ मंदिर की देखभाल भी करने लगा।
ठग की सेवा ने साधु को खुश कर दिया, लेकिन फिर भी वह ठग पर पूरी तरह विश्वास नहीं कर पाया।
एक दिन साधु को किसी दूसरे गांव से निमंत्रण आया और वह शिष्य के साथ जाने के लिए तैयार हो गया। साधु ने अपने धन को भी अपनी पोटली में बांध लिया। रास्ते में उन्हें एक नदी मिली। साधु ने सोचा कि क्यों न गांव में प्रवेश करने के पहले नदी में स्नान कर लिया जाए। साधु ने अपने धन को एक कंबल में छुपाकर रख दिया और ठग से उसकी देखभाल करने का बोलकर नदी की ओर चले गए।
ठग की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसे जिस मौके की तलाश थी, वो मिल गया। जैसे ही साधु ने नदी में डुबकी लगाई ठग सारा सामान लेकर भाग खड़ा हुआ। जैसे ही साधु वापस आया, उसे न तो शिष्य मिला और न ही अपना सामान। साधु ने ये सब देखकर अपना सिर पकड़ लिया।
कहानी से सीख : कभी भी लालच नहीं करना चाहिए और न ही किसी की चिकनी चुपड़ी बातों पर विश्वास करना चाहिए।
Short Story in Hindi – कौवा और दुष्ट सांप
एक बार की बात है। एक जंगल में किसी पेड़ पर कौवे का एक जोड़ा रहा करता था। वो दोनों खुशी-खुशी उस पेड़ पर जीवन बसर कर रहे थे। एक दिन उनकी इस खुशी को एक सांप की नजर लग गई। जिस पेड़ पर कौवों का घोंसला था, उसी पेड़ के नीचे बने बिल में सांप रहने लगा था। जब भी कौवों का जोड़ा दाना चुगने के लिए जाता, सांप उनके अंडों को खा जाता था और जब वो वापस आते, तो उन्हें घोंसला खाली मिलता था, लेकिन उन्हें पता नहीं चल पा रहा था कि अंडे कौन ले जाता है।
इस प्रकार से कई दिन निकल गए। एक दिन कौवे का जोड़ा दाना चुग कर जल्दी आ गया, तो उन्होंने देखा की उनके अंडों को बिल में रहले वाला एक सांप खा रहा है। इसके बाद उन्होंने पेड़ पर किसी ऊंचे स्थान पर छुपकर अपना घोंसला बना लिया। सांप ने देखा कि कौवों का जोड़ा पहले वाले स्थान को छाेड़कर चला गया है, लेकिन शाम होते ही दोनों वापस पेड़ पर आ जाते हैं।
इस प्रकार कई दिन निकल गए। कौवा के अंडों में से बच्चे निकल आए और वो बड़े होने लगे। एक दिन सांप को उनके नए घोंसले का पता चल गया और वह कौवों के जाने का इंतजार करने लगा। जैसे कौवे घोंसला छोड़ कर गए, सांप उनके घोंसले की ओर बड़ने लगा, लेकिन किसी कारण से कौवों का जोड़ा वापस पेड़ की ओर लौटने लगा। उन्होंने दूर से ही सांप को उनके घोंसले की ओर जाता देख लिया और जल्दी से वहां पहुंच कर अपने बच्चों को पेड़ की ओट में छुपा दिया।
सांप ने देखा की घोंसला खाली है, तो वह कौवों की चाल समझ गया और वापस बिल में जाकर सही मौके का इंतजार करने लगा। इसी बीच कौवे ने सांप से पीछा छुड़ाने के लिए एक योजना बनाई। कौवा उड़कर जंगल के बाहर बने एक राज्य में चला गया। वहां एक सुंदर महल था। महल में राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ खेल रही थी। कौवा उसके गले में से मोतियों का हार लेकर उड़ गया। सभी ने शोर मचाया, तो पहरेदार हार लेने के लिए कौवे का पीछा करने लगे।
कौवे ने जंगल में पहुंचकर हारा को सांप के बिल में डाल दिया, जिसे पीछे कर रहे सैनिकों ने देख लिया। जैसे ही सैनिकों ने हार निकालने के लिए बिल में हाथ डाला, तो सांप फुंकारता हुआ बाहर निकल आया। सांप को देखकर सैनिकों ने तलवार से उस पर हमला कर दिया, जिससे सांप घायल हो गया और अपनी जान बचाकर वहां से भाग गया। सांप के जाने के बाद कौवा अपने परिवार के साथ खुशी-खुशी रहने लगा।
कहानी से सीख: कभी भी निर्बल का फायदा नहीं उठाना चाहिए। साथ ही मुसीबत में समझदारी से काम लेना चाहिए।
खटमल और जूं की कहानी
यह कहानी कई वर्ष पुरानी है। उस समय दक्षिण भारत में एक राजा राज किया करता था। राजा के बिस्तर में मंदरीसर्पिणी नाम की एक जूं रहा करती थी, लेकिन इस बारे में राजा को कोई जानकारी नहीं थी। हर रात जब राजा गहरी नींद में सो जाता,तो जूं अपने घर से बाहर निकलती, बड़े चाव से पेट भरकर राजा का खून चूसती और दोबारा जाकर छिप जाती।
एक दिन न जाने कहां से उस राजा के बिस्तर में अग्निमुख नामक एक खटमल भी घुस आया। जब जूं ने उसे देखा, तो उसे बहुत गुस्सा आया कि उसके इलाके में एक खटमल घुस आया है। जूं उसके पास गई और उससे तुरंत वापस चले जाने को कहा। इस पर खटमल बोला, “अरे जूं बहना, इस तरह का व्यवहार तो कोई अपने दुश्मन के साथ भी नहीं करता। मैं बहुत दूर से आया हूं और सिर्फ एक रात तुम्हारे घर रुक कर आराम करना चाहता हूं। कृपया मुझे यहां रुकने दो।”
खटमल की बातें सुनकर जूं का दिल पिघल गया। उसने कहा, “ठीक है, तुम यहां रुक सकते हो, लेकिन तुम्हारे कारण राजा को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। तुम राजा के आसपास भी नहीं जाओगे।”“जूं बहन, मैं बहुत दूर से आया हूं और बहुत भूखा हूं। वैसे भी, हर रोज कहां राजा का मीठा खून पीने का मौका मिलता है। कृपया मुझे आज रात राजा के खून का स्वाद चखने का मौका दे दो,” खटमल ने विनती करते हुए कहा।
जूं, खटमल की बातों में आ गई और उसने उसे राजा का खून चूसने की इजाजत दे दी। “ठीक है, तुम राजा के खून का भोजन कर सकते हो, लेकिन उससे पहले तुम्हें राजा के गहरी नींद में सो जाने का इंतजार करना होगा। जब तक राजा पूरी तरह सो नहीं जाता, तब तक तुम उसे नहीं काट सकते,” जूं ने कहा। इस पर खटमल ने हां कर दिया और दोनों रात होने का इंतजार करने लगे।
रात होते ही राजा अपने कमरे में आया और सोने की तैयारी करने लगा। राजा का शरीर बहुत तंदुरुस्त था और उसकी तोंद बहुत मोटी थी। यह देख कर खटमल के मुंह में पानी आ गया। जैसे ही राजा बिस्तर पर आकर लेटा, खटमल ने न आव देखा न ताव और सीधे जाकर राजा की मोटी तोंद पर जोर से काट लिया और फिर दौड़ कर पलंग के नीचे छिप गया। राजा दर्द के मारे चीख उठा और तुरंत अपने सिपाहियों को कमरे में बुला लिया।
राजा ने सिपाहियों को आदेश दिया, “सिपाहियों, इस बिस्तर में जरूर कोई खटमल या जूं है। उसे तुरंत ढूंढो और मार डालो।” राजा के सिपाहियों ने बिस्तर पर ढूंढना शुरू किया, तो उन्हें बिस्तर में छिपी जूं मिल गई। उन्होंने तुरंत उस जूं को मार डाला और खटमल बच निकला। इस प्रकार खटमल की गलती के कारण बेचारी जूं मारी गई।
कहानी से सीख : हमें आंखें बंद करके किसी अजनबी पर भरोसा नहीं करना चाहिए।
Short Story in Hindi – सियार और जादुई ढोल
एक समय की बात है, जब एक जंगल के पास दो राजाओं के बीच युद्ध हुआ। उस युद्ध में एक की जीत और दूसरे की हार हुई। युद्ध खत्म होने के एक दिन बाद तेज आंधी चली, जिस कारण युद्ध के दौरान बजाया जाने वाला ढोल लुड़क कर जंगल में चला जाता है और एक पेड़ के पास जाकर अटक जाता है। जब भी तेज हवा चलती और पेड़ की टहनी ढोल पर पड़ती, तो ढमाढम-ढमाढम की आवाज आने लगती थी।
उसी जंगल में एक सियार खाने की तलाश में इधर-उधर भटक रहा था और अचानक उसकी नजर गाजर खा रहे खरगोश पर पड़ती है। सियार उसे शिकार बनाने के लिए सावधानी से आगे बढ़ता है। जब वह खरगोश पर झपटा मारता है, तो खरगोश उसके मुंह में गाजर को फंसाकर भाग जाता है।
किसी तरह से सियार गाजर को मुंह से बाहर निकालकर आगे बढ़ता है, तो उसे ढोल की तेज आवाज सुनाई देती है। वह ढोल की आवाज सुनकर घबरा जाता है और सोचने लगता है कि उसने पहले कभी किसी जानवर की ऐसी आवाज नहीं सुनी। जहां से ढोल की आवाज आ रही थी, सियार उस ओर जाता है और यह जानने की कोशिश करता है कि जानवर उड़ने वाला है या चलने वाला।
फिर वह ढोल के पास जाता है और उस पर हमला करने के लिए कूदता है, तो ढम की आवाज आती है, जिसे सुनकर सियार छलांग लगा कर उतर जाता है और पेड़ के पीछे छुपकर देखने लगता है। कुछ मिनट बाद किसी तरह की प्रतिक्रिया न होने पर वह फिर से ढोल पर हमला करता है और फिर से ढम की आवाज आती है और वह फिर से ढोल से कूदकर भागने लगता है, लेकिन इस बार वह वहीं पर रुककर मुड़कर देखता है। ढोल में किसी भी तरह की हलचल न होने पर वह समझ जाता है कि यह कोई जानवर नहीं है।
फिर वह ढोल पर कूद-कूद कर ढोल को बजाने लगता है। इससे ढोल हिलने लगता है और लुड़कने भी लगता है, जिससे सियार ढोल से गिर जाता है और ढोल बीच में से फट जाता है। ढोल के फटने पर उसमें से विभिन्न तरह के स्वादिष्ट भोजन निकलते हैं, जिसे खाकर सियार अपनी भूख को शांत करता है।
कहानी से सीख: हर किसी चीज का एक निर्धारित समय होता है। जो हमें चाहिए होता है, वो हमें तय समय पर मिल ही जाता है।
बंदर और लकड़ी का खूंटा
एक समय की बात है, जब शहर से थोड़ी दूर में एक मंदिर बनाया जा रहा था। उस मंदिर के निर्माण में लकड़ियों का इस्तेमाल किया जा रहा था। लकड़ियों के काम के लिए शहर से कुछ मजदूर आए हुए थे। एक दिन मजदूर लकड़ी चीर रहे थे। सारे मजदूर रोज दोपहर का खाना खाने के लिए शहर जाया करते थे। उस दौरान एक घंटे तक वहां कोई भी नहीं रहता था। एक दिन दोपहर के खाने का समय हुआ, तो सभी जाने लगे। एक मजदूर ने लकड़ी आधी ही चीर थी। इसलिए, वह बीच में लकड़ी का खूंटा फंसा देता है, ताकि दोबारा चीरने के लिए आरी फंसाने में आसानी हो।
उनके जाने के कुछ समय बाद बंदरों का एक समूह वहां आ जाता है। उस समूह में एक शरारती बंदर था, जो वहां पड़ी चीजों को उल्टा-पुल्टा करने लगा। बंदरों के सरदार ने सभी को वहां रखी चीजों को छेड़ने से मना किया। कुछ समय बाद सारे बंदर पेड़ों की तरफ वापस जाने लगे, तो वह शरारती बंदर सबसे बचकर पीछे रह जाता है और उधम मचाने लगता है।
शरारत करते-करते उसकी नजर उस अधचिरे लकड़ी पर पड़ती है, जिस पर मजदूर ने लकड़ी का खूंटा लगाया था। खूंटे को देखकर बंदर सोचने लगा कि उस लकड़ी को वहां पर क्यों लगाया है, उसे निकालने पर क्या होगा। फिर वह उस खूंटे को बाहर निकालने के लिए खींचने लगता है।
बंदर के अधिक जोर लगाने पर वह खूंटा हिलने और खिसकने लगता है, जिसे देखकर बंदर खुश होता है और जोर लगाकर उस खूंटे को सरकाने लगता है। वह खूंटे को निकालने में इतना मगन हो जाता है कि उसे पता ही नहीं चलता कि कब उसकी पूंछ दोनों पाटों के बीच में आ गई। बंदर पूरी ताकत के साथ खूंटे को खींचकर बाहर निकाल देता है। खूंटा निकलते ही लकड़ी के दोनों भाग चिपक जाते हैं और उसकी पूंछ बीच में फंस जाती है।
पूंछ के फंसने पर बंदर दर्द के मारे चिल्लाने लगता है और तभी मजदूर भी वहां पहुंच जाते हैं। उन्हें देखकर बंदर भागने के लिए जोर लगाता है, तो पूंछ टूट जाती है। वह चीखते हुए टूटी पूछ लेकर भागता हुआ अपने झुंड के पास पहुंच जाता है। वहां पहुंचते ही सभी बंदर उसकी टूटी हुई पूंछ देखकर हंसने लगते हैं।
कहानी से सीख : हमें न तो दूसरों की चीजों के साथ छेड़छाड़ करनी चाहिए और न ही उनके काम में दखलंदाजी करनी चाहिए। ऐसा करने से हमें ही नुकसान होता है।
Short Story in Hindi – व्यापारी का पतन और उदय
वर्धमान नामक शहर में एक कुशल व्यापारी रहा करता था। जब उस राज्य के राजा को उसकी कुशलता के बारे में पता चला, तो राजा ने उसे अपने राज्य का प्रशासक बना दिया। व्यापारी की कुशलता से आम व्यक्ति से लेकर राजा तक सभी बहुत प्रभावित थे। कुछ समय बाद व्यापारी की लड़की की शादी तय हुई। इस खुशी में व्यापारी ने बहुत बड़े भोज का आयोजन किया।
इस भोज समारोह में उसने राजा से लेकर राज्य के सभी लोगों को आमंत्रित किया। इस समारोह में राजघराने में काम करने वाला एक सेवक भी आया, जो गलती से राज परिवार के सदस्यों के लिए रखी कुर्सी पर बैठ गया। उस सेवक को कुर्सी पर बैठा देख व्यापारी को बहुत गुस्सा आता है। गुस्से में व्यापारी उस सेवक का उपहास कर समारोह से भगा देता है। इससे सेवक को शर्मिंदगी महसूस होती है और वह व्यापारी को सबक सिखाने की ठान लेता है।
कुछ दिन बाद जब वह राजा के कमरे की सफाई कर रहा होता है, तो उस समय राजा कच्ची नींद में होता है। सेवक मौके का फायदा उठाकर बड़बड़ाना शुरू कर देता है। सेवक बोलता है, “व्यापारी की इतनी हिम्मत, जो रानी के साथ दुर्व्यवहार करें।” यह सुनकर राजा नींद से उठ जाता है और सेवक को कहता है, “क्या तुमने कभी व्यापारी को रानी के साथ दुर्व्यवहार करते हुए देखा है।”
सेवक तुरंत राजा के पैरों में गिरकर उनसे माफी मांगने लगता है और कहता है, “मैं रात में सो नहीं पाया, इसलिए मैं कुछ भी बड़बड़ा रहा हूं।” सेवक की बात सुनकर राजा सेवक को कुछ नहीं बोलता, लेकिन उसके मन में व्यापारी के लिए शक पैदा हो जाता है।
इसके बाद राजा ने व्यापारी के राज महल में प्रवेश पर पाबंदी लगाकर उसके अधिकार को कम कर दिया। अगले दिन व्यापारी किसी काम से राज महल में आता है, तो उन्हें पहरेदार दरवाजे पर ही रोक देते हैं। पहरेदार का यह व्यवहार देखकर व्यापारी को आश्चर्य होता है। वहीं, पास में खड़ा राजा का सेवक जोर-जोर से हंसने लगता है और पहरेदार से कहता है, “तुम्हें पता नहीं, तुमने किसे रोका है। यह बहुत ही प्रभावशाली व्यक्ति हैं, जो तुम्हें यहां से बाहर निकलवा सकते हैं। इन्होंने मुझे अपने भोज समारोह से निकलवा दिया था।”
सेवक की उन बातों को सुनकर व्यापारी को सब समझ में आ जाता है और वह उस सेवक से माफी मांगता है। साथ ही वह उस सेवक को अपने घर दावत के लिए आमंत्रित करता है। व्यापारी ने सेवक को बड़े विनम्र भाव से भोज कराया और कहा कि उस दिन जो भी किया वह गलत था। व्यापारी से सम्मान पाकर सेवक खुश होता है और कहता है, “आप परेशान न हो राजा से खोया हुआ सम्मान आपको जल्दी वापस दिलाऊंगा।”
उसके अगले दिन राजा जब कच्ची नींद में होता है, तो सेवक कमरे की सफाई करते हुए फिर से बड़बड़ाने लगता है और कहता है, “हे भगवान हमारे राजा इतने भूखे होते हैं कि गुसलखाने में स्नान करते हुए खीर खाते रहते हैं। इस बात को सुनकर राजा नींद से उठकर सेवक से क्रोध में कहते हैं, “मूर्ख सेवक तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुम मेरे बारे में ऐसी बात करो।” राजा के क्रोध को देखकर सेवक पैर में गिरकर माफी मांगता है और कहता है, महाराज, रात को मैं ठीक तरह से सो नहीं पाया, इसलिए कुछ भी बड़बड़ा रहा हूं।
फिर राजा सोचने लगता है, अगर यह सेवक मेरे बारे में ऐसा बोल सकता है, तो उस व्यापारी के बारे में भी झूठ ही बोल रहा होगा। अगले ही दिन राजा ने व्यापारी को महल में बुलाया और उन्हें उनसे छीने हुए सभी अधिकार वापस दे दिए।
कहानी से सीख: किसी को छोटा समझकर उनका मजाक नहीं उड़ाना चाहिए। सभी का सम्मान करना चाहिए। किसी को नीचा दिखाने से एक दिन खुद भी अपमान का सामना करना पड़ता है।
आलसी ब्राह्मण की कहानी
एक बार की बात है, एक गांव में एक ब्राह्मण रहता था। वह सुबह उठता, नहाता, पूजा करता, खाना खाता और फिर सो जाता था। उसके पास किसी भी चीज की कमी नहीं थी। एक बड़ा खेत, खाना पका कर देने वाली एक सुन्दर-सी पत्नी और दो बच्चों का अच्छा परिवार था।
सब कुछ होने के बाद भी ब्राह्मण के घरवाले एक बात से बहुत परेशान थे। वो बात यह थी कि ब्राह्मण बहुत आलसी था। वो कोई भी काम खुद नहीं करता था और दिन भर सोता रहता था।
एक दिन बच्चों का शोर सुनकर ब्राह्मण जाग गया और उसने देखा कि उसके दरवाजे पर एक साधु महाराज आए हैं। ब्राह्मण और उसकी पत्नी ने साधु महाराज का स्वागत किया और उन्हें भोजन कराया। भोजन के बाद ब्राह्मण ने साधु की खूब सेवा की।
साधु महाराज उनकी सेवा से बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान मांगने को कहा। ब्राह्मण ने वरदान मांगा कि मुझे कोई भी काम न करना पड़े और मेरी जगह कोई और मेरा काम कर दे।
तब साधु उसे वरदान में एक जिन्न देते हैं और साथ में यह भी कहते हैं कि जिन्न को हमेशा व्यस्त रखना। अगर उसे काम नहीं दिया, तो वो तुम्हें खा जाएगा। वरदान पाकर ब्राह्मण मन ही मन बहुत खुश हुआ और साधु को आदर के साथ विदा किया।
साधु के जाते ही वहां एक जिन्न प्रकट हुआ। पहले तो ब्राह्मण उसे देखकर डर जाता है, लेकिन जैसे ही वो ब्राह्मण से काम मांगता है, तब ब्राह्मण का डर दूर हो जाता है और वो उसे पहला काम खेत जोतने का देता है।
जिन्न वहां से गायब हो जाता है और ब्राह्मण की खुशी का ठिकाना नहीं रहता। कुछ ही देर में जिन्न फिर आ जाता है और बोलता है कि खेत जोत दिया, दूसरा काम दीजिए। ब्राह्मण सोचता है कि इतना बड़ा खेत इसने इतनी जल्दी कैसे जोत दिया।
ब्राह्मण इतना सोच ही रहा था कि जिन्न बोलता है कि जल्दी मुझे काम बताओ नहीं तो मैं आपको खा जाऊंगा।
ब्राह्मण डर जाता है और बोलता है कि जाकर खेतों में सिंचाई करो। जिन्न फिर वहां से गायब हो जाता है और थोड़ी ही देर में फिर आ जाता है। जिन्न आकर बोलता है कि खेतों की सिंचाई हो गई, अब अगला काम बताइए।
ब्राह्मण एक-एक कर सभी काम बताता जाता है और जिन्न उसे चुटकियों में पूरा कर देता है। ब्राह्मण की पत्नी यह सब देख रही थी और अपने पती के आलसीपन पर चिंता करने लगी। शाम होने के पहले ही जिन्न सभी काम कर देता था। सब काम करने के बाद जिन्न ब्राह्मण के पास आ जाता और बोलता कि अगला काम बताइए, नहीं तो मैं आपको खा जाऊंगा।
अब ब्राह्मण के पास कोई भी काम नहीं बचा, जो उसे करने के लिए कह सके। उसे चिंता होने लगी है और वह बहुत डर जाता है।
जब ब्राह्मण की पत्नी अपने पती को डरा हुआ देखती है, तो अपने पती को इस संकट से निकालने के बारे में सोचने लगती है। वह ब्राह्मण से बोलती है कि स्वामी अगर आप मुझे वचन देंगे कि आप कभी आलस नहीं करेंगे और अपने सभी काम खुद करेंगे, तो मैं इस जिन्न को काम दे सकती हूं।
इस पर ब्राह्मण सोचता है कि पता नहीं यह क्या काम देगी। अपनी जान बचाने के लिए ब्राह्मण अपनी पत्नी को वचन दे देता है। इसके बाद ब्राह्मण की पत्नी जिन्न से बोलती है कि हमारे यहां एक कुत्ता है। तुम जाकर उसकी पूंछ पूरी सीधी कर दो। याद रखना उसकी पूंछ एकदम सीधी होनी चाहिए।
जिन्न बोलता है कि अभी यह काम कर देता हूं। यह बोलकर वह वहां से चला जाता है। लाख कोशिश के बाद भी वह कुत्ते की पूंछ सीधी नहीं कर पाता और हार मान लेता है। हारकर जिन्न ब्राह्मण के यहां से चला जाता है। उस दिन के बाद से ब्राह्मण अपने आलस को छोड़कर सभी काम करने लगता है और उसका परिवार खुशी-खुशी रहने लगता है।
कहानी से सीख: आलस करने से हम मुसीबत में फंस सकते हैं। इसलिए, हमें आलस छोड़कर अपना काम खुद ही करना चाहिए।
Short Story in Hindi – गौरैया और घमंडी हाथी की कहानी
एक पेड़ पर एक चिड़िया अपने पति के साथ रहा करती थी। चिड़िया सारा दिन अपने घोंसले में बैठकर अपने अंडे सेती रहती थी और उसका पति दोनों के लिए खाने का इंतजाम करता था। वो दोनों बहुत खुश थे और अंडे से बच्चों के निकलने का इंतजार कर रहे थे।
एक दिन चिड़िया का पति दाने की तलाश में अपने घोंसलें से दूर गया हुआ था और चिड़िया अपने अंडों की देखभाल कर रही थी। तभी वहां एक हाथी मदमस्त चाल चलते हुए आया और पेड़ की शाखाओं को तोड़ने लगा। हाथी ने चिड़िया का घोंसला गिरा दिया, जिससे उसके सारे अंडे फूट गए। चिड़िया को बहुत दुख हुआ। उसे हाथी पर बहुत गुस्सा आ रहा था। जब चिड़िया का पति वापस आया, तो उसने देखा कि चिड़िया हाथी द्वारा तोड़ी गई शाखा पर बैठी रो रही है। चिड़िया ने पूरी घटना अपने पति को बताई, जिसे सुनकर उसके पति को भी बहुत दुख हुआ। उन दोनों ने घमंडी हाथी को सबक सिखाने का निर्णय लिया।
वो दोनों अपने एक दोस्त कठफोड़वा के पास गए और उसे सारी बात बताई। कठफोड़वा बोला कि हाथी को सबक मिलना ही चाहिए। कठफोड़वा के दो दोस्त और थे, जिनमें से एक मधुमक्खी थी और एक मेंढक था। उन तीनों ने मिलकर हाथी को सबक सिखाने की योजना बनाई, जो चिड़िया को बहुत पसंद आई।
अपनी योजना के तहत सबसे पहले मधुमक्खी ने हाथी के कान में गुनगुनाना शुरू किया। हाथी जब मधुमक्खी की मधुर आवाज में खो गया, तो कठफोड़वे ने आकर हाथी की दोनों आखें फोड़ दी। हाथी दर्द के मारे चिल्लाने लगा और तभी मेंढक अपने परिवार के साथ आया और एक दलदल के पास टर्रटराने लगा। हाथी को लगा कि यहां पास में कोई तालाब होगा। वह पानी पीना चाहता था, इसलिए दलदल में जाकर फंसा। इस तरह चिड़िया ने मधुमक्खी, कठफोड़वा और मेंढक की मदद से हाथी से बदला ले लिया।
कहानी से सीख: एकता और विवेक का उपयोग करके बड़ी से बड़ी मुसीबत को हराया जा सकता है।