Veer Tum Badhe Chalo Poem

Veer Tum Badhe Chalo Poem: नमस्कार दोस्तो, हमेशा की तरह आज फिर से एक नए पोस्ट veer tum badhe chalo poem के साथ हाजिर है। हम उम्मीद करते है की ये पोस्ट आपको पसंद आएगी और आप इसे आप अपने दोस्तो के साथ जरूर शेयर करेंगे।

वीर तुम बढ़े चलो

Veer Tum Badhe Chalo Poem
Veer Tum Badhe Chalo Poem

हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे,
ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं,
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो !

सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो,
तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं,
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!

प्रात हो कि रात हो संग हो न साथ हो,
सूर्य से बढ़े चलो चन्द्र से बढ़े चलो,
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो !

एक ध्वज लिये ये हुए एक प्रण किये हुए,
मातृ भूमि के लिये पितृ भूमि के लिये,
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!

अन्न भूमि में भरा वारि भूमि में भरा,
यत्न कर निकाल लो रत्न भर निकाल लो,
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!

भारत भूमि हमारी

मिटटी की खुशबू आषाढ में यहां प्रकृति का प्रेम दिखती,
फसले फिर आह्लादित होकर प्रकृति प्रेम का गीत सुनाती।
नदियों की क़ल क़ल धाराये कितने नांद यहां बिख़राये,
और संस्कृति के मूल्यो ने कितने भाव यहां सुलझाये।

यहां भाव विस्तार अनोखे कितने लोग यहां चल आये,
सद्भाव यहाँ समभाव यहा, करुणा,
शांति मिलाप यहा भारत भूमि हमारी भारत भूमि हमारी।

तुझको नमन मेरे वतन फूल हम तू है,
चमन तेरी रक्षा को करें गमन तुझसे ही है,
यह तन मन, आंख जो कोई उठाए आग दरिया में लगाएं,
दुश्मन को दौड़कर भगाए तिरंगे को हमेशा चारों दिशाओं में फैलाएं,
तेरी खातिर मर भी जाएं जान पर अपनी खेल जाएं,
तुझको नमन मेरे वतन फुल हम तू है चमन।

जमीन को अपनी मां और पिता को गगन कहते हैं,
देश की खातिर हर मुश्किल को सहते हैं,
सीमाओं की सुरक्षा करके हिफाजत की है,
हमारी त्याग समर्पण साहस उनके संस्कारों में बहते हैं,
परिस्थितियां हो कैसी भी कर्तव्य का पालन करते हैं,
दुश्मनों को धूल चटाने तान के सीना खड़े रहते हैं।

एक कलम की देशभक्ति

Veer Tum Badhe Chalo Poem
Veer Tum Badhe Chalo Poem

यूं तो लिखती हूं मैं बहुत कविताएं,
पर जब देश भक्ति पर पर लिखती हूं मैं,
लिखने से पहले ही टूट जाती हू अंदर से में,
अगर लिख भी दूं मैं टूटी कलम से,
तो वह पन्ने फट जाते हैं,
जिस पर लिखना चाहती हूं मैं,
अपने देश के उन सपूतों की गाथा,
कहती हूं मैं अपने लिखने वाले से,
मुझ में अब बस रक्त भरा है,
कैसे कहूं मैं उस बेटी पत्नी मां की व्यथा,
जो अपने वीर को तिरंगे में लिपटे देखेगी,
उस आंसू को कैसे लिखूं मैं,
जो स्याही थी वह बन गए लाल रक्त,
अब तो बहुत खून बहा मेरे देश का,
अब मैं फिर से स्याही बनना चाहती हूं,
अब बंद करो यह नफरत जो खून बहाती है,
जो कहते हैं कि इससे जन्नत मिलती है,
कोई जाकर समझाओ उनको, “जन्नत तो मानवता में बसती है”

चक्रवात के चक्कर में त्राहि-त्राहि है,
मन धिसा पीटा हुआ लग रहा है नश्वर जीवन ।।

क्या करे क्या ना करें समझ ना आए,
हे भगवान मार्ग प्रशस्त करो दया निधि दया धन ।।

हम है अज्ञानी अज्ञानता में डूबे हैं,
जन मन कुछ करो प्रभु अशुद्ध से शुद्ध हो मेरे मन ।।

और ना करें हम प्रकृति को कृति सेन निर्धन मनोहर मनमोहक दृश्य हो खुशहाली से खिल उठे मेरे जीवन ।।

तिरंगे का क़र्ज़

लाल रक्त से धरा नहाई. श्वेत नभ पर लालिमा छायी,
आजादी के नव उद्घोष पे, सबने वीरो की गाथा गायी,
गाँधी, नेहरु, पटेल, सुभाष की, ध्वनि चारो और है छायी,
भगत, राजगुरु और, सुखदेव की कुरबानी से आँखे भर आई ।।

ऐ भारत माता तुझसे अनोखी,
और अद्भुत माँ न हमने पाय,
हमारे रगों में तेरे क़र्ज़ की,
एक एक बूँद समायी माये पर है बांधे कफ़न,
और तेरी रक्षा की कसम है खायी,
सरहद में खड़े रहकर, आजादी की रीत निभाई।

स्वतंत्रता का मोल

Veer Tum Badhe Chalo Poem
Veer Tum Badhe Chalo Poem

करोड़ों का लहू बहा है तब स्वतंत्रता पाई है,
इसका मूल चुकाना मुश्किल है,
मातृभूमि की आन में हजारों सैनिक शहीद हुए,
उनका बलिदान का श्रण चुकाना मुश्किल है,
आजादी की लड़ाई में स्वतंत्रता सेनानी फांसी के फंदे पर बेहिचक झूल गए,

उनके बलिदान को हम कितनी जल्दी भूल गए,
उस बलिदान का मूल्य चुकाना बाकी है,
नहीं मांगता बहुत कुछ देश हमारा बस अच्छे इंसान,
अच्छे नागरिक बन जाए अमूल्य है,
यह आज़ादी, अमूल्य है स्वतंत्रता स्वतंत्र रहे हम,

स्वतंत्र रहे विचार स्वतंत्रता से व्यक्त करें अपनी भावनाएं,
अपने अपने बूते पर देश के लिए कुछ कर जाएं,
भेदभाव छोड़कर देश की उन्नति में हाथ बढ़ाएं,
ना मेरा ना तेरा देश,
वासुदेव कुटुम्बकम् की नींव रखकर भारत का परचम लहराएं।

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