सोमवार व्रत कथा – Somvar Vrat Katha

प्राचीन काल की बात है एक गांव में एक साहूकार रहता था। साहूकार बहुत धनी था लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। साहूकार अपने वंश को लेकर हमेशा चिंतित रहता था। साहूकार भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सोमवार का व्रत रखता था और व्रत के दौरान भगवान शिव पार्वती की पूजा करता और शाम को शिवलिंग पर दीपक जलता था। साहूकार की पूजा अर्चना को देखकर एक दिन माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा हे प्रभु! यह साहूकार आपका परम भक्त है, प्रति सोमवार को विधि विधान से आपकी पूजा करता है। मुझे लगता है कि आपको उसकी मनोकामना पूर्ण करनी चाहिए। शिवजी ने पार्वती जी की बात को सुनकर कहा है गौरी यह संसार एक कर्म क्षेत्र है जैसे एक किसान अपने खेत में बीज होता है तो कुछ वक्त बाद उसे पेड़ मिलता है। इस तरह इस संसार में आदमी जैसा कर्म करता है उसे उसका वैसा ही फल मिलता है। भगवान शिव बोले कि इसके कर्मों में संतान सुख नहीं है।

लेकिन माता पार्वती ने भोले भंडारी से दोबारा आग्रह किया और कहा हे नाथ फिर भी आप इसकी मनोकामना पूर्ण कर दीजिए। यह आपका परम भक्त है अगर आपने अपने भक्तों की इच्छा को पूर्ण नहीं किया तो वह आपकी पूजा आराधना क्यों करेंगे। माता पार्वती के इतना आग्रह करने पर भगवान शिव ने कहा यह साहूकार बहुत धनवान है औरइसके कोई पुत्र नहीं है इसलिए यह सदैव चिंतित रहता है। लेकिन इसके भाग्य में संतान योग भी नहीं है। लेकिन तुम्हारी आग्रह करने पर मैं इसे पुत्र प्राप्ति का वरदान दे देता हूं। लेकिन इसे जो पुत्र होगा वह केवल 12 सालों तक ही जीवित रहेगा। फिर एक रात्रि शिवजी ने साहूकार को स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि उसको जल्द ही पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी, लेकिन उसका पुत्र दीर्घायु नहीं रहेगा। बल्कि केवल 12 वर्ष तक ही जीवित रह पाएगा। यह बात सुनकर साहूकार ना तो प्रसन्न हुआ और ना ज्यादा दुखी हुआ। साहूकार ने इस बात को सुनकर भी पूजा अर्चना जारी रखी और कुछ दिनों बाद साहूकार की पत्नी गर्भवती हो गई और उसने एक सुंदर बालक को जन्म दिया। बालक के जन्म से घर पर हर्षो उल्लास का माहौल था। लेकिन साहूकार खुश नहीं था क्योंकि उसको पता था कि उसके बालक का यह जीवन केवल12 वर्ष तक का ही है और उसने किसी को भी यह बात नहीं बताई थी।

जब साहूकार का बालक 11 वर्ष का हुआ तो साहूकार की पत्नी ने कहा कि अब इसका विवाह कर देना चाहिए। लेकिन साहूकार ने मना कर दिया और उसे शिक्षा के लिए काशी भेज दिया साहूकार ने बालक के मामा को बुलाया और पैसे देकर उन्हें बालक के साथ काशी जाने का आदेश दिया। फिर साहूकार ने मामा भांजे से कहा कि वह काशी जाते समय रास्ते में यज्ञ करते हुए और ब्राह्मणों को भोजन करते हुए ही जाए। दोनों मामा भांजे ने ऐसा ही किया।

काशी जाते वक्त जिस रास्ते से मामा भांजे गुजर रहे थे, उसका राजा अपनी पुत्री का विवाह एक ऐसे राजकुमार से करवा रहा था। जो की कान्हा था यानी उसे एक आंख से दिखता नहीं था। दूल्हे का पिता इस बात से चिंतित था कि अगर दुल्हन पक्ष को यह पता चल गया कि दूल्हा कान्हा है, तो राजकुमारी विवाह के लिए मना कर देगी। इसलिए उसने जब साहूकार के पुत्र को देखा तो उसने सोचा कि मैं अपने बालक के स्थान पर तोरण के वक्त इस बालक को बिठा दूंगा और दुल्हन के पक्ष वालों को पता भी नहीं चलेगा। दूल्हे के पिता ने साहूकार के बेटे को इस बात के लिए रजो किया। इस तरह के उस लड़के ने दूल्हे के कपड़े पहने और घोड़ी पर चढ़कर तोरण की रस्म पूरी की। तोरण के बाद फेरो की जब बारी आई तो दूल्हे के पिता ने साहूकार के पुत्र से अनुरोध किया कि वह दुल्हन के साथ फेरे ले और जब विवाह संपन्न हो जाए। तो यह बात किसी को ना बताएं मामा भी राजी हो गया और विवाह समारोह भी निपट गया और शादी संपन्न होने के बाद मामा भांजा काशी के लिए प्रस्थान कर गए।

परंतु साहूकार के पुत्र ने दुल्हन के कपड़ों पर लिख दिया कि तुम्हारी शादी मुझसे हुई है लेकिन इसके साथ तुम जाओगी वह एक आंख वाला आदमी है और मैं काशी में शिक्षा ग्रहण करने जा रहा हूं जब राजकुमारी ने यह बात पढ़ी तो उसने राजकुमार के साथ जाने से इनकार कर दिया और अपने पिता से कहा यह मेरा पति नहीं है। मेरा पति शिक्षा ग्रहण करने काशी गया है जब सब जगह यह बात फैल गई तो मजबूरी में दूल्हे के पिता को सारी बात बतानी पड़ी और दुल्हन के पिता ने भी अपनी बेटी को भेजने से इनकार कर दिया।

इधर मामा भांजे दोनों काशी पहुंच गए और बालक शिक्षा ग्रहण करने लगा और मामा ने यज्ञ करना भी शुरू कर दिया जब साहूकार का पुत्र 12 साल का हो गया तो एक दिन वह अपने मां से बोला कि उसकी तबीयत ठीक नहीं है और वह सोने अंदर जा रहा है। साहूकार का पुत्र अंदर सोने गया और उसकी मृत्यु हो गई कुछ देर बाद जब मां अंदर पहुंचे उन्होंने जब अपने भांजे को मरे हुए देखा तो वह बहुत दुखी हुए। परंतु वह रो नहीं सकते थे वरना उनके यज्ञ अधूरा रह जाता इसलिए मामा ने वापस जाकर यज्ञ पूरा किया और ब्राह्मणों का भोजन करने के बाद मामा अपनी मृत भांजे को देखकर रोने लगे।

उसी वक्त उसे मार्ग से शिव पार्वती गुजर रहे थे माता पार्वती ने किसी के रोने की आवाज सुनी तो उन्होंने शिवजी से कहा हे प्रभु! कोई मनुष्य रो रहा है चलो उसके दुखों को दूर कर देते हैं। शिव पार्वती मां के पास गए और उन्होंने जब मृत बालक को देखा तो हैरान हो गए क्योंकि वह भगवान शिव के आशीर्वाद से जन्म साहूकार का पुत्र था। माता पार्वती ने कहा हे नाथ! यह तो साहूकार का पुत्र है जिसको आपने केवल 12 वर्ष तक का जीवन दिया था। पार्वती जी ने मृत बालक को देखा तो उन्हें दया आ गई और उन्होंने शिवजी से कहा प्रभु आप इस बालक को जीवन दान दे दीजिए वरना इसके माता-पिता जीते जी मर जाएंगे। माता पार्वती के आग्रह करने पर शिव जी ने उनकी बात मान ली और उसे जीवन दान दे दिया।

साहूकार का पुत्र जीवित हो गया और मामा भांजे अपने घर की ओर प्रस्थान के लिए चल दिए। रास्ते में साहूकार का पुत्र उस शहर से गुजर जहां उसका विवाह हुआ था। दुल्हन के पिता ने बालक को पहचान लिया और मामा भांजे को लेकर अपने महल आ गए। दुल्हन के पिता ने एक समारोह किया और अपनी पुत्री को साहूकार के साथ भेज दिया

जब साहूकार का बालक अपने घर पहुंचा तो उसके माता-पिता छत पर बैठे थे और सोच रहे थे कि अगर उनका पुत्र सही सलामत वापस नहीं लौटा तो वे दोनों भी इसी छत से कूद कर अपनी जान दे देंगे। पर इस समय उसके मामा वहां आ गए और उन्होंने बताया कि उनका पुत्र जीवित है और विवाह करके वापस लौटा है। साहूकार ने अपने बालक को जीवित देखा तो खुशी से उसका स्वागत किया और साहूकार का पूरा परिवार खुशी-खुशी अपना जीवन बिताने लगा जैसे भोलेनाथ ने इस परिवार पर कृपा करी ऐसी कृपा सब पर करना।

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