Poem on Nature in Hindi

Poem on Nature in Hindi: नमस्कार दोस्तो, हमेशा की तरह आज फिर से एक नए पोस्ट Poem on Nature in Hindi के साथ हाजिर है। हम उम्मीद करते है की ये पोस्ट आपको पसंद आएगी और आप इसे आप अपने दोस्तो के साथ जरूर शेयर करेंगे।

हरी भरी यह हमारी धरती, हर मन को अपनी सुंदरता से हरती,
पेड़, पौधे, नदिया और झरने, हरते हैं मन को यह सबके,
पेड़ हमे देता फल और मधु छाया, विशाल है इसका रूप, हर दिल को है यह भाया,
अपने साथ है, रंगो भरी खुशियां ये लाया फूलो की अपरम्पार खुशबू,
मन को है सबको भाये, हर दिल इसको सुंग के है, खुशहाल हो जाए
हरी भरी यह हमारी धरती, हर मन को अपनी सुंदरता से हरती।

Poem on Nature in Hindi
Poem on Nature in Hindi

बिन कुएं का पानी।

तू आया था उन बादलों की तरह, जो बरस कर चला गया,
धरती फिर भी प्यासी रही, बिन पानी रेतीले इलाकों तरह।

आया तो था, बिन कही बातों की तरह,
जरा सी हवा ले गई तुझे, तेज तुफानो की तरह।

ऐ हवा कबी आ ठहर कर, कुछ जी लू मैं तुझे भी,
क्यों बुझ जाता है तू, लिखे हुए रेत मैं अफसानों की तरह।

कभी मेरी भी प्यास बुझे, कबी तो सुनाऊं दिल का हाल तुझे,
देख जरा कबसे रुकी हुई हूं, तू क्यों भागता है क्रजदारों की तरह।

देख जरा मेरा भी और, धरती हु मै तेरी, कर दे इस तरह मुझे,
फूल सी मेहकू ही और, बना दे मुझे भी भगदारों की तरह।

अबकी आ तो बरस के जा रहूं न मैं विरानो की तरह,
तरस गई हु मै बिन पानी के कुऐ कि तरह।

प्रकृति की लीला न्यारी

प्रकृति की लीला न्यारी,
कहीं बरसता पानी,
बहती नदियां, कहीं उफनता समंद्र है,
तो कहीं शांत सरोवर है।

प्रकृति का रूप अनोखा कभी,
कभी चलती साए-साए हवा,
तो कभी मौन हो जाती,
प्रकृति की लीला न्यारी है।

कभी गगन नीला, लाल, पीला हो जाता है,
तो कभी काले सफेद बादलों से घिर जाता है,
प्रकृति की लीला न्यारी है।

कभी सूरज रोशनी से जग दोशन करता है,
तो कभी अंधियारी रात में चाँद तारे टिम टिमाते है,
प्रकृति की लीला न्यारी है। कभी सुखी धरा धूल उड़ती है,
तो कभी हरियाली की चादर ओढ़ लेती है,
प्रकृति की लीला न्यारी है।

कहीं सूरज एक कोने में छुपता है,
तो दूसरे कोने से निकलकर चोंका देता है,
प्रकृति की लीला न्यारी है।

बसंत आने को है

दीपशिखा के चंचल चरण करने चले है,
फागुन वरण शीतल ज्वाला से अपनी सौरभ मधु बरसाने को है,
सुना है ! बसंत आने को है !!

हर इक मन में उमंग
प्रवाह शीतलता करती मधुर
दाह मनभावन सौंदर्यता से
अब मनवा मधुर लुभाने को है
सुना है ! बसंत आने को है !!

अमवा के अंकुर पनपने लगे,
पुष्प टेसू, सरसों खिलने लगे,
नए दौर के नए किस्से देकर,
पुरानी पाती विदा होने को है,
सुना है ! बसंत आने को है !!

तितलियाँ

तितलियों को जब पंख मिल जाते हैं,
यह हवा से भी हल्की हो जाती है,
पलक झपकते ही आसमां छू लेती है
मंजिल की चाह किसे नहीं होती पर,
वह अपनी राह स्वयं बनाती है

परवाह नहीं जमाने की पीछे छोड़ सभी को चाँद तक उत्तर जाती है,
जलपरी बन नाविक को दीहाती है
सीम का मोती भुराती है पहाड़ों का सीना चीर
हरि को अपनी अंगूठी का नगीना बनाती है
जब तितलियों को पंख मिल जाते हैं,
वह अपने आप से नहीं मिलाती हैं और अपनी राह स्वयं बनाती है।

प्रकृति से मिले कई उपहार

प्रकृति से मिले है हमे क़ई उपहार,
बहुत अनमोल है ये सभी उपहार।

वायु ज़ल वृक्ष आदि है,
इनके नाम नही चुक़ा सक़ते हम इनके दाम।

वृक्ष जिसे हम क़हते है क़ई नाम इसके होते है।
सर्दी गर्मी बारिश ये सहते है पर क़भी कुछ नही ये क़हते है।

हर प्राणी क़ो जीवन देते पर बदले मे ये कुछ नही लेते।
समय रहते यदि हम नही समझे
ये बात मूक़ ख़ड़े इन वृक्षो से भी होती है ज़ान।

क़रने से पहले इन वृक्षो पर वार,
वृक्षो क़ा है जीवन में कितना है उपकार।

Poem on Nature in Hindi – प्रकृति संदेश

पर्वत कहता शीश उठाकर,
तुम भी ऊँचे बन जाओ।
सागर कहता है लहराकर,
मन में गहराई लाओ।

समझ रहे हो क्या कहती हैं,
उठ उठ गिर गिर तरल तरंग,
भर लो भर लो अपने दिल में मीठी मीठी मृदुल उमंग!
पृथ्वी कहती धैर्य न छोड़ो.
कितना ही हो सिर पर भार,
नभ कहता है फैलो इतना ढक लो तुम सारा संसार !

सुनो, प्रकृति की आकुल पुकार,
कहती है यह, वृक्ष मत काटो।
छलनी हो रहा शरीर हमारा,
अब तो हमारा क्रंदन सुन लो।

धरा भी क्षण-क्षण कह रही,
वृक्ष प्राणों का है आधार।
बंजर से इस सूने तन पर,
वृक्ष धरती का है श्रृंगार ।

मत चलाओ शस्त्र वृक्ष पर,
मानो यह ईश्वर का अनुदान है।
इन पेड़ों से भूजल स्तर भी बढ़ेगा,
समस्त जीवन हेतु ये वरदान है।

एक पेड़ की कहानी

जो डालें हैं जुड़ी उन्हें मैं छांट देता हूँ,
दरख्तों की जड़ों को भी, गर्त तक काट देता हूँ,

मैं हूँ अब बागबाँ ऐसा, जो खारों की फसल बोता,
मैं इंसाँ ही नही हूँ अब, मैं अब हर पेड़ खाता हूँ।

मैं अपने आशियाने में, कटी लकड़ी लगाता हूँ,
बुरादे सा जब उड़ता है, जो उनका लहू मुझ पर, मैं ख़ुद पे मुस्कुराता हूँ।

दरख्तों की कबर पर मैं मेरी ‘मंज़िल’ सजाता हूँ,
मैं अपनी बागबानी की, मिसालें ख़ुद ही गाता हूँ।

चिड़ियों से है उड़ना सीखा, तितली से इठलाना।
भवरों की गुंजन से सीखा, राग मधुरतम गाना।

तेज लिया सूरज से हमने, चांद से शीतल छाया।
टिम-टिम करते तारों की, हम समझ गए सब माया।

सागर ने सिखलाई हमको, गहरी सोच की धारा।
गगनचुम्बी पर्वत से सीखा. हो ऊंचा लक्ष्य हमारा।

समय की टिक टिक ने समझाया, सदा ही चलते रहना।
मुश्किल कितनी आन पड़े, पर कभी न धीरज खोन।

प्रकृति के कण-कण में है, सुंदर संदेश समाया।
ईश्वर ने इसके द्वारा ज्यों, अपना रूप दिखाया।।

सुंदर कविता

सुन्दर रूप इस धरा का,
आँचल जिसका नीला आकाश,
पर्वत जिसका ऊँचा मस्तक,
उस पर चाँद सूरज की बिंदियों का ताज,
नदियों-झरनो से छलकता यौवन,
सतरंगी पुष्प-लताओं ने किया.
श्रृंगार खेत-खलिहानों में लहलाती फसले,
बिखराती मंद-मंद मुस्कान।

Poem on Nature in Hindi
Poem on Nature in Hindi

अगर पेड़ भी चलते

अगर पेड़ भी चलते होते कितने मजे हमारे होते।
बाँध तने में उसके रस्सी चाहे जहां कहीं ले जाते।

जहां कहीं भी धूप सताती उसके नीचे झट सुस्ताते,
जहाँ कहीं वर्षा हो जाती उसके नीचे हम छिप जाते।

लगती जब भी भूख अचानक तोड़ मधुर फल उसके खाते,
आती कीचड़, बाढ़ कहीं तो झट उसके ऊपर चढ़ जाते ।
अगर पेड़ भी चलते होते कितने मजे हमारे होते ।

पेड़ की गुहार

खुश था में अपनी जीवन मे,
फिर एक दिन इंसान आया,
इंसान को अपनी ओर आते देख,
मेरा मन बहुत घबराया,

इंसान के हाथ में कुल्हाड़ी देख,
मुझे अपना अंत समय नजर आया,
मै इंसान के सामने बहुत गिड़‌गिड़ाया,
पर इंसान ने मुझे काट गिराया।

मै भागना चाहता था,
पर पैर नहीं थे मेरे पास,
मै उड़ना चाहता था,
पर पंख नही थे मेरे पास।

किसने हक दिया तुझे ए इंसान
जो हमें ऐसे काट गिराएगा,
अगर तू ही बन जायेगा हमारा दुश्मन,
तो हमें कौन बचायेगा।

अम्मा ज़रा देख तो ऊपर

अम्मा ज़रा देख तो ऊपर चले आ रहे हैं,
बादल गरज रहे हैं, बरस रहे हैं दीख रहा है जल ही जल।

हवा चल रही क्या पुरवाई भीग रही है,
डाली-डाली ऊपर काली घटा घिरी है नीचे फैली हरियाली।

भीग रहे हैं खेत, बाग, वन भीग रहे हैं घर,
आँगन बाहर निकलूँ, मैं भी भीगूँ चाह रहा है मेरा मन।

सूरज दादा

उमड़-घुमड़ जब वर्षा होती,
सूरज दादा, सूरज दादा,
क्यों इतना गरमाते हो।

हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा,
क्यों इतना गुस्साते हों।
सोकर उठते जब खटिया से,
तुमको शीश नवाते हैं।

ऐसा रोज मनाते हैं।
दिन भर तुम इतना सपने,
गरम तमाचे जड़ देते हो।
पशु-पक्षी व जीव जगत भी,
व्याकुल सबको कर देते हो।

वर्षा का जब मौसम आता,
ओट बादलों की ले लेते हो।
आसमान में खो जाते हो।

जाड़े में तुम बच्चे बन,
सबको प्यारे लगते हो।
हम भी बैठ खुले आँगन में,
तुमसे बाते करते हैं।

शाम ढले तुम चल देते हो,
हम कमरों में छिप जाते हैं।
ओढ रजाई ऊपर से हम,
दुबक बिस्तरों में जाते हैं।

पर्यावरण की पुकार

काटने से पहले शाखे पेड़ के सोचना जरूर,
इस पर बसेरा होगा किसी परिंदे का,
न पा मेहनत से संजोया आशियाना अपना,
रोयेगा, कोसेगा, सोच यह काम है किसी दरिंदे का।

आज तो कर देगा अनसुनी उसकी कराहें,
रंग लायेगी एक दिन उसकी बददुआऐं,
न होना हैरान परेशान महरूम,
जब रिमझिम से हो जाये दबाके पर्यावरण की आहे,

कल पायेगा तु ही सजाऐं,
जिनके दम पर कायम सांसे तेरी,
कहां से लायेगा वे संजीवनी हवाए ?
देख प्रदूषण का कहर कुदरत,
इंसान से घबराये रफता-रफता दूर होती जाये,
न सुधारी जो अपनी खताए कैसे पायेगा कुदरत से वफाए ?

कोयल

देखो कोयल काली है,
पर मीठी है इसकी बोली,
इसने ही तो कूक कूक कर,
आमों में मिश्री घोली।

कोयल कोयल सच बतलाना,
क्या संदेसा लायी हो,
बहुत दिनों के बाद,
आज फिर इस डाली पर आई हो।

क्या गाती हो,
किसे बुलाती बतला दो,
कोयल रानी प्यासी धरती,
देख मांगती हो क्या मेघों से पानी?

प्रकृति संवर रही है

एक सूक्ष्म ताकत से ज़िंदगी बिखर रही है,
पर देखो ना प्रकृति कैसी संवर रही है।

जहाँ किसी को किसी से दरकार नहीं था,
पर एक साथ ऐसा परिवार नहीं था।

नन्हें – मुन्नों को जंक फूड का सहारा हो गया था,
हर रोज़ हिदायत देना काम हमारा हो गया था।

आज माँ के हाथों का स्वाद फिर से आ गया,
देखो ना घर में रहना सबको फिर से भा गया।

चलो मिलकर सामना करने की कसम हम उठाएँ,
दूर होकर भी सबसे, साथ हम कदम उठाएँ।

आज की ये पोस्ट Poem on Nature in Hindi आपको कैसी लगी ये आप कमेन्ट करके जरूर बताइएगा। हम आगे भी आपके लिए ऐसे ही मजेदार पोस्ट आपके लिए लेकर आते रहेंगे।

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