Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : नमस्कार दोस्तो, हमेशा की तरह आज फिर से एक नए पोस्ट Moral Stories in Hindi के साथ हाजिर है। हम उम्मीद करते है की ये पोस्ट आपको पसंद आएगी और आप इसे आप अपने दोस्तो के साथ जरूर शेयर करेंगे।

दुष्टता का फल

 Moral Stories in Hindi
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कंचनपुर के एक धनी व्यापारी के घर में रसोई में एक कबूतर ने घोंसला बना रखा था । किसी दिन एक लालची कौवा जो है वो उधर से आ निकला । वंहा मछली को देखकर उसके मुह में पानी आ गया । तब उसके मन में विचार आया कि मुझे इस रसोघर में घुसना चाहिए लेकिन कैसे घुसू ये सोचकर वो परेशान था तभी उसकी नजर वो कबूतरों के घोंसले पर पड़ी ।

उसने सोचा कि मैं अगर कबूतर से दोस्ती कर लूँ तो शायद मेरी बात बन जाएँ । कबूतर जब दाना चुगने के लिए बाहर निकलता है तो कौवा उसके साथ साथ निकलता है । थोड़ी देर बाद कबूतर ने पीछे मुड़कर देखता तो देखा कि कौवा उसके पीछे है इस पर कबूतर ने कौवे से कहा भाई तुम मेरे पीछे क्यों हो इस पर कौवे ने कबूतर से कहा कि तुम मुझे अच्छे लगते हो इसलिए मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ।

इस पर कौवे से कबूतर ने कहा कि हम कैसे दोस्त बन सकते है हमारा और तुम्हारा भोजन भी तो अलग अलग है मैं बीज खाता हूँ और तुम कीड़े । इस पर कौवे ने चापलूसी दिखाते हुए कहा “कौनसी बड़ी बात है मेरे पास घर नहीं है इसलिए हम साथ साथ तो रह ही सकते है है न और साथ ही भोजन खोजने आया करेंगे तुम अपना और मैं अपना ।”

इस पर घर के मालिक ने देखा कि कबूतर के साथ एक कौवा भी है तो उसने सोचा कि चलो कबूतर का मित्र होगा इसलिए उसने उस बारे में अधिक नहीं सोचा । अगले दिन कबूतर खाना खोजने के लिए साथ चलने को कहता है तो कौवे ने पेट दर्द का बहाना बना कर मना कर दिया । इस पर कबूतर अकेला ही चला गया क्योंकि कौवे ने घर के मालिक को यह कहते हुए सुना था नौकर को कि आज कुछ मेहमान आ रहे है इसलिए तुम मछली बना लेना ।

उधर कौवा नौकर के रसोई से बाहर निकलने का इन्तजार ही कर रहा था कि उसके जाते ही कौवे ने थाली और झपटा और मछली उठाकर आराम से खाने लगा । नौकर जब वापिस आया तो कौवे को मछली खाते देख गुस्से से भर गया और उसने कौवे को पकड़ कर गर्दन मरोड़ कर मार डाला ।

जब शाम में कबूतर वापिस आया तो उसने कौवे की हालत देखी तो सारी बात समझ गया । इसलिए कहा गया है दुष्ट प्रकृति के प्राणी को उसके किये की सज़ा अवश्य मिलती है ।

व्यक्ति की महानता

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एक बार की बात है किसी गाँव में एक पंडित रहता था। वैसे तो पंडित जी को वेदों और शास्त्रों का बहुत ज्ञान था लेकिन वह बहुत ग़रीब थे| ना ही रहने के लिए अच्छा घर था और ना ही अच्छे भोजन के लिए पैसे|

एक छोटी सी झोपड़ी थी, उसी में रहते थे और भिक्षा माँगकर जो मिल जाता उसी से अपना जीवन यापन करते थे|

एक बार वह पास के किसी गाँव में भिक्षा माँगने गये, उस समय उनके कपड़े बहुत गंदे थे और काफ़ी जगह से फट भी गये थे|

जब उन्होने एक घर का दरवाजा खटखटाया तो सामने से एक व्यक्ति बाहर आया, उसने जब पंडित को फटे चिथड़े कपड़ों में देखा तो उसका मन घ्रणा से भर गया और उसने पंडित को धक्के मारकर घर से निकाल दिया, बोला- पता नहीं कहाँ से गंदा पागल चला आया है|

पंडित दुखी मन से वापस चला आया, जब अपने घर वापस लौट रहा था तो किसी अमीर आदमी की नज़र पंडित के फटे कपड़ों पर पड़ी तो उसने दया दिखाई और पंडित को पहनने के लिए नये कपड़े दे दिए|

अगले दिन पंडित फिर से उसी गाँव में उसी व्यक्ति के पास भिक्षा माँगने गया| व्यक्ति ने नये कपड़ों में पंडित को देखा और हाथ जोड़कर पंडित को अंदर बुलाया और बड़े आदर के साथ थाली में बहुत सारे व्यंजन खाने को दिए| पंडित जी ने एक भी टुकड़ा अपने मुँह में नहीं डाला और सारा खाना धीरे धीरे अपने कपड़ों पर डालने लगे और बोले- ले खा और खा।

व्यक्ति ये सब बड़े आश्चर्य से देख रहा था, आख़िर उसने पूछ ही लिया कि- पंडित जी आप यह क्या कर रहे हैं सारा खाना अपने कपड़ों पर क्यूँ डाल रहे हैं|

पंडित जी ने बहुत शानदार उत्तर दिया- क्यूंकी तुमने ये खाना मुझे नहीं बल्कि इन कपड़ों को दिया है इसीलिए मैं ये खाना इन कपड़ों को ही खिला रहा हूँ, कल जब में गंदे कपड़ों में तुम्हारे घर आया तो तुमने धक्के मारकर घर से निकाल दिया और आज तुमने मुझे साफ और नये कपड़ों में देखकर अच्छा खाना पेश किया| असल में तुमने ये खाना मुझे नहीं, इन कपड़ों को ही दिया है, वह व्यक्ति यह सुनकर बहुत दुखी हुआ|

मित्रों, किसी व्यक्ति की महानता उसके चरित्र और ज्ञान पर निर्भर करती हैं पहनावे पर नहीं| अच्छे कपड़े और गहने पहनने से इंसान महान नहीं बनता उसके लिए अच्छे कर्मों की ज़रूरत होती है| यही इस कहानी की प्रेरणा है|

सोच का फ़र्क

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एक शहर में एक धनी व्यक्ति रहता था, उसके पास बहुत पैसा था और उसे इस बात पर बहुत घमंड भी था| एक बार किसी कारण से उसकी आँखों में इंफेक्शन हो गया|

आँखों में बुरी तरह जलन होती थी, वह डॉक्टर के पास गया लेकिन डॉक्टर उसकी इस बीमारी का इलाज नहीं कर पाया| सेठ के पास बहुत पैसा था उसने देश विदेश से बहुत सारे नीम- हकीम और डॉक्टर बुलाए| एक बड़े डॉक्टर ने बताया की आपकी आँखों में एलर्जी है| आपको कुछ दिन तक सिर्फ़ हरा रंग ही देखना होगा और कोई और रंग देखेंगे तो आपकी आँखों को परेशानी होगी|

अब क्या था, सेठ ने बड़े बड़े पेंटरों को बुलाया और पूरे महल को हरे रंग से रंगने के लिए कहा| वह बोला- मुझे हरे रंग से अलावा कोई और रंग दिखाई नहीं देना चाहिए मैं जहाँ से भी गुजरूँ, हर जगह हरा रंग कर दो|

इस काम में बहुत पैसा खर्च हो रहा था लेकिन फिर भी सेठ की नज़र किसी अलग रंग पर पड़ ही जाती थी क्यूंकी पूरे नगर को हरे रंग से रंगना को संभव ही नहीं था, सेठ दिन प्रतिदिन पेंट कराने के लिए पैसा खर्च करता जा रहा था|

वहीं शहर के एक सज्जन पुरुष गुजर रहा था उसने चारों तरफ हरा रंग देखकर लोगों से कारण पूछा| सारी बात सुनकर वह सेठ के पास गया और बोला सेठ जी आपको इतना पैसा खर्च करने की ज़रूरत नहीं है मेरे पास आपकी परेशानी का एक छोटा सा हल है.. आप हरा चश्मा क्यूँ नहीं खरीद लेते फिर सब कुछ हरा हो जाएगा|

सेठ की आँख खुली की खुली रह गयी उसके दिमाग़ में यह शानदार विचार आया ही नहीं वह बेकार में इतना पैसा खर्च किए जा रहा था|

तो मित्रों, जीवन में हमारी सोच और देखने के नज़रिए पर भी बहुत सारी चीज़ें निर्भर करतीं हैं कई बार परेशानी का हल बहुत आसान होता है लेकिन हम परेशानी में फँसे रहते हैं| तो मित्रों इसे कहते हैं सोच का फ़र्क|

भगवान उन्हीं लोगों की मदद करते हैं जो स्वयं की मदद करते हैं

एक बार की बात है कि किसी दूर गाँव में एक किसान रहता था। उन दिनों बारिश का समय था चारों तरफ गड्ढों में पानी भरा हुआ था। कच्ची सड़क बारिश की वजह से फिसलन भरी हो गयी थी। सुबह सुबह किसान को बैलगाड़ी लेकर कुछ धन कमाने बाजार जाना होता था लेकिन आज बारिश की वजह से बहुत दिक्कत हो रही थी। फिर भी किसान धीरे धीरे सावधानी पूर्वक बैलगाड़ी लेकर बाजार की ओर जा रहा था।

अचानक रास्ते में एक गड्ढा आया और बैलगाड़ी का पहिया गड्ढे में फंस गया। कीचड़ भरे गड्ढे से निकलना काफी मुश्किल था। बैल ने भी अपनी पूरी ताकत लगायी लेकिन सफलता नहीं मिली। अब तो किसान बुरी तरह परेशान हो उठा। उसने चारों तरफ नजर घुमाई लेकिन ख़राब मौसम में दूर दूर तक कोई नजर नहीं आया।

किसान सोचने लगा कि किससे मदद माँगे कोई इंसान दिखाई ही नहीं दे रहा। किसान दुखी होकर एक तरफ बैठ गया और मन ही मन अपने भाग्य को कोसने लगा। हे भगवान! ये तूने मेरे साथ क्या किया? कोई आदमी भी दिखाई नहीं दे रहा इतना खराब नसीब मुझे क्यों दिया? किसान खुद के भाग्य को कोसे जा रहा था।

तभी वहाँ से एक सन्यासी गुजरे उन्होंने किसान को देखा तो किसान सन्यासी के पास जाकर अपनी परेशानी बताने लगा। मैं सुबह से यहाँ बैठा हूँ, मेरी गाड़ी फँस गयी है और मेरा नसीब भी इतना ख़राब है कि कोई मेरी मदद करने भी नहीं आया। भगवान ने मेरे साथ बहुत अन्याय किया है। सन्यासी उसकी सारी बात सुनकर बोले- तुम इतनी देर से यहाँ बैठे अपने भाग्य को कोस रहे हो और भगवान को बुरा भला बोल रहे हो, क्या तुमने खुद अपनी गाड़ी निकालने का प्रयास किया?

किसान- नहीं,

सन्यासी- तो फिर किस हक़ से तुम भगवान को दोष दे रहे हो, भगवान उन्हीं लोगों की मदद करते हैं जो स्वयं की मदद करते हैं।

अब किसान के बात समझ में आ गयी उसने तुरंत पहिया निकालने का प्रयास किया और वो सफल भी हुआ।

तो मित्रों हममें से ज्यादातर लोग उस किसान की ही तरह हैं जो खुद कुछ नहीं करना चाहते और हमेशा अपने भाग्य और दूसरे लोगों को कोसते रहते हैं। हमें लगता है कि भगवान ने हमारे साथ बहुत गलत किया है। हममें से कोई डॉक्टर बनना चाहता है, कोई इंजिनियर , कोई कलेक्टर लेकिन जब हम अपने काम में सफल नहीं होते तो यही विचार हमारे दिमाग में आता है कि हमारा भाग्य ख़राब है और भगवान ने कुछ नहीं दिया।

लेकिन शायद आप भूल रहे हैं कि भगवान ने आपको, हम सबको एक बहुत अमूल्य चीज़ दी है- ये शरीर। आपके अंदर हर सामर्थ्य है तो फिर आप भाग्य भरोसे क्यों हैं? भगवान भी उन्हीं लोगों की मदद करते हैं जो खुद की मदद करते हैं। किसी महान पुरुष का एक दोहा है –

विद्या धन उद्धम बिना, कहूँ जो पावे कौन , बिना डुलाये ना मिले, ज्यूँ पंखा की पौन

मतलब बिना कार्य किये आप कुछ नहीं पा सकते। जैसे आपके सामने पंखा रखा हो लेकिन वो जब तक आपको हवा नहीं देगा जब तक उसे अपने हाथ से झलेंगे नहीं।

तो मित्रों इस लेख का सार यही है कि आप खुद की मदद करिये तभी भगवान भी आपकी मदद करेंगे तो आओ आज मिलकर एक साथ शपथ लेते हैं कि कभी अपने भाग्य को नहीं कोसेंगे और स्वयं ही अपने कर्णधार बनेंगे।

ईश्वर कि मर्जी पर रहे खुश

एक बच्चा अपनी माँ के साथ खरदारी करने एक दुकान पर गया तो दुकानदार ने उसका मासूम चेहरा देख कर टोफियो का डिब्बा खोला और उसे आगे करके कहा,’लो जितनी चाहे टोफिया ले लो |

लेकिन बच्चे ने उसे बेहद शालीनता से मना कर दिया | दुकानदार ने दुबारा कहा लेकिन बच्चे ने खुद टोफिया नहीं ली |

बच्चे कि माँ ने बच्चे को टोफिया ले लेने के लिए कहा | लेकिन बच्चे ने खुद टोफिया लेने के बजाए दुकानदार के आगे हाथ फेला दिया और कहा,’आप खुद ही देदो अंकल|’ दुकानदार ने टोफिया निकलकर उसे देदी तो बच्चे ने दोनों जेंबो में दाल ली |

वापस आते वक्त उसकी माँ ने पुचा कि ‘जब दुकानदार ने डिब्बा आगे किया तब टॉफी क्यों नहीं ली और उन्होंने खुद निकलकर दी तब ले ली ? इसका क्या मतलब ?’ बच्चे ने बड़े मासूमियत से जवाब दिया कि ‘माँ मेरे हाथ छोटे हैं खुद निकलता तो एक या दो टोफिया आती |

अंकल के हाथ बड़े थे, उन्होंने निकली तो देखो कितनी सारी मिल गई’

ठीक इसी तरह हमें उस ईश्वर कि मर्जी में खुश रहना चाहिए | क्या पता वह किसी दिन हमें पूरा सागर देना चाहता हो और हम अज्ञानतावश बस एक चम्मच लिए ही खड़े हो |

मोची का लालच

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किसी गाँव में एक धनी सेठ रहता था उसके बंगले के पास एक जूते सिलने वाले गरीब मोची की छोटी सी दुकान थी। उस मोची की एक खास आदत थी कि जो जब भी जूते सिलता तो भगवान(God) के भजन गुनगुनाता रहता था लेकिन सेठ ने कभी उसके भजनों की तरफ ध्यान नहीं दिया ।

एक दिन सेठ व्यापार के सिलसिले में विदेश गया और घर लौटते वक्त उसकी तबियत बहुत ख़राब हो गयी । लेकिन पैसे की कोई कमी तो थी नहीं सो देश विदेशों से डॉक्टर, वैद्य, हकीमों को बुलाया गया लेकिन कोई भी सेठ की बीमारी का इलाज नहीं कर सका । अब सेठ की तबियत दिन प्रतिदिन ख़राब होती जा रही थी।

वह चल फिर भी नहीं पाता था , एक दिन वह घर में अपने बिस्तर पे लेता था अचानक उसके कान में मोची के भजन गाने की आवाज सुनाई दी, आज मोची के भजन कुछ अच्छे लग लग रहे थे सेठ को, कुछ ही देर में सेठ इतना मंत्रमुग्ध हो गया कि उसे ऐसा लगा जैसे वो साक्षात परमात्मा से मिलन कर रहा हो।

मोची के भजन सेठ को उसकी बीमारी से दूर लेते जा रहे थे कुछ देर के लिए सेठ भूल गया कि वह बीमार है उसे अपार आनंद की प्राप्ति हुई । कुछ दिन तक यही सिलसिला चलता रहा, अब धीरे धीरे सेठ के स्वास्थ्य में सुधार आने लगा। एक दिन उसने मोची को बुलाया और कहा – मेरी बीमारी का इलाज बड़े बड़े डॉक्टर नहीं कर पाये।

लेकिन तुम्हारे भजन ने मेरा स्वास्थ्य सुधार दिया ये लो 1000 रुपये इनाम, मोची खुश होते हुए पैसे लेकर चला गया ।लेकिन उस रात मोची को बिल्कुल नींद नहीं आई वो सारी रात यही सोचता रहा कि इतने सारे पैसों को कहाँ छुपा कर रखूं और इनसे क्या क्या खरीदना है? इसी सोच की वजह से वो इतना परेशान हुआ कि अगले दिन काम पे भी नहीं जा पाया।

अब भजन गाना तो जैसे वो भूल ही गया था, मन में खुशी थी पैसे की। अब तो उसने काम पर जाना ही बंद कर दिया और धीरे धीरे उसकी दुकानदारी भी चौपट होने लगी । इधर सेठ की बीमारी फिर से बढ़ती जा रही थी।

एक दिन मोची सेठ के बंगले में आया और बोला सेठ जी आप अपने ये पैसे वापस रख लीजिये, इस धन की वजह से मेरा धंधा चौपट हो गया, मैं भजन गाना ही भूल गया। इस धन ने तो मेरा परमात्मा से नाता ही तुड़वा दिया। मोची पैसे वापस करके फिर से अपने काम में लग गया ।

मित्रों ये एक कहानी मात्र नहीं है ये एक सीख है कि किस तरह हम पैसों का लालच हमको अपनों से दूर ले जाता है हम भूल जाते हैं कि कोई ऐसी शक्ति भी है जिसने हमें बनाया है। आज के माहौल में ये सब बहुत देखते को मिलता है लोग 24 घंटे सिर्फ जॉब की बात करते हैं, बिज़निस की बात करते हैं, पैसों की बात करते हैं।

हालाँकि धन जीवन यापन के लिए बहुत जरुरी है लेकिन उसके लिए अपने अस्तित्व को भूल जाना मूर्खता ही है। आप खूब पैसा कमाइए लेकिन साथ ही साथ अपने माता -पिता की सेवा करिये , दूसरों के हित की बातें सोचिये और भगवान का स्मरण करिये यही इस कहानी की शिक्षा है |

ईमानदारी ही सबसे बड़ा धन है

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मुरारी लाल अपने गाँव के सबसे बड़े चोरों में से एक था। मुरारी रोजाना जेब में चाकू डालकर रात को लोगों के घर में चोरी करने जाता। पेशे से चोर था लेकिन हर इंसान चाहता है कि उसका बेटा अच्छे स्कूल में पढाई करे तो यही सोचकर बेटे का एडमिशन एक अच्छे पब्लिक स्कूल में करा दिया था।

मुरारी का बेटा पढाई में बहुत होशियार था लेकिन पैसे के अभाव में 12 वीं कक्षा के बाद नहीं पढ़ पाया। अब कई जगह नौकरी के लिए भी अप्लाई किया लेकिन कोई उसे नौकरी पर नहीं रखता था।

एक तो चोर का बेटा ऊपर से केवल 12 वीं पास तो कोई नौकरी पर नहीं रखता था। अब बेचारा बेरोजगार की तरह ही दिन रात घर पर ही पड़ा रहता। मुरारी को बेटे की चिंता हुई तो सोचा कि क्यों ना इसे भी अपना काम ही सिखाया जाये। जैसे मैंने चोरी कर करके अपना गुजारा किया वैसे ये भी कर लेगा।

यही सोचकर मुरारी एक दिन बेटे को अपने साथ लेकर गया। रात का समय था दोनों चुपके चुपके एक इमारत में पहुंचे। इमारत में कई कमरे थे सभी कमरों में रौशनी थी देखकर लग रहा था कि किसी अमीर इंसान की हवेली है।

मुरारी अपने बेटे से बोला – आज हम इस हवेली में चोरी करेंगे, मैंने यहाँ पहले भी कई बार चोरी की है और खूब माल भी मिलता है यहाँ। लेकिन बेटा लगातार हवेली के आगे लगी लाइट को ही देखे जा रहा था। मुरारी बोला – अब देर ना करो जल्दी अंदर चलो नहीं तो कोई देख लेगा। लेकिन बेटा अभी भी हवेली की रौशनी को निहार रहा था और वो करुण स्वर में बोला – पिताजी मैं चोरी नहीं कर सकता।

मुरारी – तेरा दिमाग खराब है जल्दी अंदर चल

बेटा – पिताजी, जिसके यहाँ से हमने कई बार चोरी की है देखिये आज भी उसकी हवेली में रौशनी है और हमारे घर में आज भी अंधकार है। मेहनत और ईमानदारी की कमाई से उनका घर आज भी रौशन है और हमारे घर में पहले भी अंधकार था और आज भी

मैं भी ईमानदारी और मेहनत से कमाई करूँगा और उस कमाई के दीपक से मेरे घर में भी रौशनी होगी। मुझे ये जीवन में अंधकार भर देने वाला काम नहीं करना। मुरारी की आँखों से आंसू निकल रहे थे। उसके बेटे की पढाई आज सार्थक होती दिख रही थी।

मित्रों। बेईमानी और चोरी से इंसान क्षण भर तो सुखी रह सकता है लेकिन उसके जीवन में हमेशां के लिए पाप और अंधकार भर जाता है। हमेशा अपने काम को मेहनत और ईमानदारी से करें। बेईमानी की कमाई से बने पकवान भी ईमानदारी की सुखी रोटी के आगे फीके हैं। कुछ ऐसा काम करें कि आप समाज में सर उठा के चल सकें।

तीन चोर : कभी घमंड न करें

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बहुत दिनों की बात है। किसी शहर में रमन, घीसा और राका तीन चोर रहते थे। तीनों को थोड़ा-थोड़ा

बहुत दिनों की बात है। किसी शहर में रमन, घीसा और राका तीन चोर रहते थे। तीनों को थोड़ा-थोड़ा विद्या का ज्ञान था। तीनों चोरों को विधा का ज्ञान प्राप्त होने के कारण बहुत घमण्ड था। विद्या द्वारा तीनों चोर शहर में बड़े-बड़े लोहे की तिजोरियों को तोड़ देते थे और बैंकों को लूट लिया करते थे। इस तरह तीनों चोरों ने शहर के लोगों की नाक में दम कर रखा था।

एक बार तीनों चोरों ने एक बड़े बैंक में डकैती करके सारा माल उड़ा दिया। तब पुलिस को खबर हुई तो तीनों चोरों को पकड़ने के लिए तलाश करने लगी। मगर तीनों चोर पास ही के एक घने जंगल में भाग गए।

तीनों चोरों ने देखा कि जंगल में बहुत-सी हड्डियां बिखरी पड़ी हैं। रमन ने अनुमान लगाकर कहा- ”ये तो किसी शेर की हड्डियां हैं। मैं चाहूं तो सभी हड्डियों को अपनी विद्या के ज्ञान द्वारा जोड़ सकता हूं।” घीसा को भी विद्या का घमंड था सो, वह बोला – ”अगर ये शेर की हड्डियां हैं तो मैं इनको अपनी विधा द्वारा शेर की खाल तैयार कर उसमें डाल सकता हूं।” रमन और घीसा की बात सुनकर राका का भी घमण्ड उमड़ पड़ा और उसने कहा – ”तुम दोनों इतना काम कर सकते हो तो मैं भी अपनी विद्या द्वारा इसमें प्राण डाल सकता हूं।”

तीनों चोर अपनी विद्या का प्रयोग करने लगे। कुछ देर बाद रमन ने सारी हड्डियों को जोड़ दिया और घीसा ने शेर की हुबहू जान जान डाल दी। थोड़ी देर में तीनों चोर सामने एक जीवित भयानक शेर को देखकर थर-थर कांपने लगे। मगर शेर के पेट में तो एक दाना नहीं था। वह भूख के मारे गरजता हुआ तीनों चोरों पर हमला कर बैठा और मारकर खा गया। शेर मस्त होकर घने जंगल की ओर चल दिया।

कहानी से शिक्षा दोस्तों, इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि कभी घमण्ड नहीं करना चाहिए। घमण्डी को हमेशा दुख का ही सामना करना पड़ता है। यदि तीनों चोर अपनी विद्या का घमण्ड न करते तो उन्हें जान से हाथ न धोने पड़ते। हमें अपनी विद्या का प्रयोग सोच-समझकर करना चाहिए।

दूसरों में अच्छाइयाँ दूँढ़ें

 Moral Stories in Hindi
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एक दिन श्रील चेतन्य महाप्रभु पुरी (उड़ीसा) के जगन्नाथ मंदिर में ‘गुरूड़ स्तंभ’ के सहारे खड़े होकर दर्शन कर रहे थे। एक स्त्री वहां श्रद्धालु भक्तों की भीड़ को चीरती हुई देव-दर्शन हेतु उसी स्तंभ पर चढ़ गई और अपना एक पांव महाप्रभुजी के दाएं कंधे पर रखकर दर्शन करने में लीन हो गई।

यह दृशय देखकर महाप्रभु का एक भक्त घबड़ाकर धीमे स्वर में बोला, ‘हाय, सर्वनाश हो गया! जो प्रभु स्त्री के नाम से दूर भागते हैं, उन्हीं को आज एक स्त्री का पाँव र्स्पश हो गया! न जाने आज ये क्या कर डालेंगे।

वह उस स्त्री को नीचे उतारने के लिए आगे बढ़ा ही था कि उन्होंने सहज भावपूर्ण शब्दों में उससे कहा -‘अरे नहीं, इसको भी जी भरकर जगन्नाथ जी के दर्शन करने दो, इस देवी के तन-मन-प्राण में कृष्ण समा गए हैं, तभी यह इतनी तन्मयी हो गई कि इसको न तो अपनी देह और मेरी देह का ज्ञान रहा…..अहा! ठसकी तन्मयता तो धन्य है……इसकी कृपा से मुझे भी ऐसा व्याकुल प्रेम हो जाए।’

काम करते समय दूसरों की गलतियों की बजाय अच्छाइयां दूँढ़ना अपनी आदत में लें, जिससे हमारे काम की गुणवत्ता बढ़े और समय की बचत हो। साथ में यह आदत हमारे शिष्ट-व्यवहार को दर्शाएगी।

खम्भे ने पकड़ रखा है

 Moral Stories in Hindi
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एक समय शराब का एक व्यसनी एक संत के पास गया और विनम्र स्वर में बोला, ‘गुरूदेव, मैं इस शराब के व्यसन से बहुत ही दुखी हो गया हूँ। इसकी वजह से मेरा घर बरबाद हो रहा है। मेरे बच्चे भूखे मर रहे हैं, किन्तु मैं शराब के बगैर नही रह पाता! मेरे घर की शांति नष्ट हो गयी है। कृपया आप मुझे कोई सरल उपाय बताएँ, जिससे मैं अपने घर की शांति फिर से पा सकूँ।’

गुरूदेव ने कहा, ‘जब इस व्यसन से तुमको इतना नुकसान होता है, तो तुम इसे छोड़ क्यों नहीं देते?’ व्यक्ति बोला, ‘पूज्यश्री, मैं शराब को छोड़ना चाहता हूं, पर यह ही मेरे खून में इस कदर समा गयी है कि मुझे छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही है।’

गुरूदेव ने हँस कर कहा, ‘कल तुम फिर आना! मैं तुम्हें बता दूँगा कि शराब कैसे छोड़नी है?’

दूसरे दिन निश्चित समय पर वह व्यक्ति महात्मा के पास गया। उसे देख महात्मा झट से खड़े हुए और एक खम्भे को कस कर पकड़ लिया। जब उस व्यक्ति ने महात्मा को इस दशा में देखा, तो कुछ समय तो वह मौन खड़ा रहा, पर जब काफी देर बाद भी महात्माजी ने खम्भे को नहीं छोड़ा, तो उससे रहा नहीं गया और पूछ बैठा, कि ‘गुरूदेव, आपने व्यर्थ इस खम्भे को क्यों पकड़ रखा है?

गुरूदेव बोले, ‘वत्स! मैंने इस खम्भे को नहीं पकड़ा है, यह खम्भा मेरे शरीर को पकड़े हुए है। मैं चाहता हूँ कि यह मुझे छोड़ दे, किन्तु यह तो मुझे छोड़ ही नहीं रहा है।’ उस व्यक्ति को अचम्भा हुआ! व्ह बोला, ‘गुरूदेव मैं शराब जरूर पीता हूँ, मगर मूर्ख नहीं हूँ। आपने ही जानबूझ कर इस खम्भे को कस कर पकड़ रखा है। यह तो निर्जिव है, यह आपको क्या पकड़ेगी यदि आप दृढ़-संकल्प कर लें, तो इसी वक्त इसको छोड़ सकते हैं।

गुरूदेव बोले, ‘नादान मनुष्य, यही बात तो मैं तुम्हें समझाना चाहता हूँ कि जिस तरह मुझे खम्भे ने नहीं बल्कि मैंने ही उसे पकड़ रखा था, उसी तरह इस शराब ने तुम्हें नहीं पकड़ा है, बल्कि सच तो यह है कि तुमने ही शराब को पकड़ रखा है। तुम कह रहे थे कि यह शराब मुझे नहीं छोड़ रही है। जबकि सत्य यह है कि तुम अपने मन में यह दृढ़ निश्चय कर लो कि मुझे इस व्यसन का त्याग अभी कर देना है।

तो इसी वक्त तुम्हारी शराब पीने की आदत छूट जायेगी। शरीर की हर क्रिया मन के द्वारा नियंत्रित होती है और और मन में जैसी इच्छा-शक्ति प्रबल होती है, वैसा ही कार्य सफल होता है।’ वह शराबी गुरू के इस अमृत-वचनों से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उसी वक्त भविष्य में कभी शराब न पीने का दृढ़-संकलप किया। उसके घर में खुशियाँ लौट आयीं और वह शांति से जीवन-यापन करने लगा।

इस तरह हमें शिक्षा मिलती है कि जीवन में कोई भी व्यसन ऐसा नहीं है, जिसे एक बार ग्रहण किये जाने के बाद छोड़ा ना जा सके। अगर मनुष्य चाहे तो बड़ी से बड़ी बुराई का त्याग कर सकता है।

आज की ये पोस्ट Moral Stories in Hindi आपको कैसी लगी ये आप कमेन्ट करके जरूर बताइएगा। हम आगे भी ऐसे ही मजेदार पोस्ट आपके लिए लेकर आते रहेंगे।

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