Guruwar Vrat Katha – गुरुवार व्रत कथा – बृहस्पतिवार व्रत कथा

किसी गांव में एक साहूकार रहता था। जिसके घर में अन्न, वस्त्र और धन किसी भी चीज की कोई कमी नहीं थी। और वह साहूकार बहुत ही दयालु हृदय का था। परंतु उसकी स्त्री बड़ी ही कृपण थी। किसी भिक्षार्थी को कभी कुछ दान में नहीं देती थी। सारे दिन बस अपने घर में ही लगी रहती थी। एक बार की बात है एक समय एक साधु महात्मा बृहस्पतिवार के दिन उसके द्वारा पर आए और भिक्षा की याचना करने लगे । स्त्री उसी समय घर के आंगन को लिप रही थी। इस कारण साधु महाराज से कहने लगी महाराज इस समय तो मैं घर लिप रही हूं। आपको कुछ नहीं दे सकती फिर किसी समय आ जाएगा। साधु यह सुनकर वहां से चले गए।

कुछ दिनों पश्चात वही साधु महाराज उसके द्वारा पर फिर से आए। इस तरह भिक्षा मांगने लगे साहूकारनी उसे समय अपने बच्चों को खाना खिला रही थी, कहने लगी महाराज मैं क्या करूं मुझे फुर्सत ही नहीं है। इसलिए आपको भिक्षा नहीं दे सकती अब साधु महाराज फिर से उसके द्वारा से खाली हाथ ही लौट गए। तीसरी बार जब महात्मा उसके द्वारा पर आए तो उसने उन्हें इस तरह से टालना चाहा कहने लगी महाराज में क्या करूं मुझे समय ही नहीं मिलता। इसलिए आपको भिक्षा नहीं दे सकती, परंतु महात्मा जी कहने लगे कि यदि तुमको हर समय का अवकाश मिल जाए तो मुझे भिक्षा दे दोगी साहूकारनी कहने लगी हां महाराज यदि ऐसा हो जाए तो आपकी बड़ी कृपा होगी। साधु महात्मा जी कहने लगे अच्छा मैं एक उपाय बताता हूं तुम बृहस्पतिवार को दिन चढ़ने पर उठो और सारे घर में झाड़ू लगाकर कूड़ा एक कोने में जमा करके रख दो। घर का चौका इत्यादि मत लगाओ घर वालों से कह दो की हजामत अवश्य बनवाएं। रसोई बनाकर चूल्हे के पीछे खाना रख दो सामने नहीं फिर स्नान आदि करके शाय कल को अंधेरा होने के बाद दीपक जलाओ तथा बृहस्पतिवार को पीले वस्त्र मत धारण करो। ना पीले रंग की चीज का भोजन ग्रहण करो यदि ऐसा करोगी तो तुमको घर का कोई काम नहीं करना पड़ेगा। तुम्हें अवकाश ही अवकाश हो जाएगा।

साहूकारनी ने ऐसा ही किया वह हर बृहस्पतिवार को ऐसा ही करने लगी कुछ समय बाद उसके घर में खाने को अन्न का दान भी ना रहा। थोड़े दिनों में वही महात्मा फिर आए और भिक्षा मांगने लगे परंतु साहूकारिणी ने कहा महाराज मेरे घर में खाने को अन्न नहीं है आपको मैं क्या दे सकती हूं। तब महात्मा ने कहा कि जब तुम्हारे पास सब कुछ था तब भी तुम कुछ नहीं देती थी। अब पूरा अवकाश है तब भी तुम कुछ नहीं दे रही हो तुम चाहती क्या हो तब साहूकारिणी ने हाथ जोड़कर प्रार्थना कारी महाराज अब कोई ऐसा उपाय बताएं कि मेरे पहले जैसा धन-धान्य हो जाए। अब मैं प्रतिज्ञा करती हूं आप जैसा कहेंगे मैं वैसा ही करूंगी।

तब महात्मा जी ने कहा बृहस्पतिवार को प्रातः काल उठकर स्नान आदि से निवृत होकर घर को गाय के गोबर से लिपो तथा घर के पुरुष हजामत न बनवाएं, भूखे को अन्न जल देती रहा करो ठीक शाय काल दीपक जलाया करो। यदि ऐसा करोगी तो तुम्हारी सभी मनोकामनाएं भगवान बृहस्पति पूरी करेंगे। साहूकारिणी ने ऐसा ही किया और उसके घर में धन-धान्य वैसा ही हो गया जैसा पहले था। इस प्रकार भगवान बृहस्पति की कृपा से अनेक प्रकार के सुखों को भोगकर वह दीर्घकाल तक जीवित रही।

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