नमस्कार दोस्तों, हमेशा कि तरह आज फिर से हाजिर है एक नए पोस्ट के साथ जिसका टाइटल Emotional Story है। हम उम्मीद करते है की ये पोस्ट आपको पसंद आएगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करेंगे।
मा बाप की नसीहत – Emotional Story
शेखर अपने माता-पिता के साथ रहता था। अपने मां-बाप की इकलौती संतान था। शेखर की उम्र लगभग 25 साल की थी और अपनी BA की पढ़ाई पूरी करने के बाद अब वह किसी मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करना चाहता था। पिछले 1 साल से वह कई इंटरव्यू दे चुका था, लेकिन अभी तक वह बेरोजगार ही था। शेखर अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा था कि जल्द से जल्द उसे कोई अच्छी जॉब मिल जाए। वह रोज सुबह अपने लैपटॉप में ईमेल को चेक करता कि शायद कोई इंटरव्यू की कॉल आई हो।
शेखर अपने माता-पिता से बहुत ही प्यार करता था लेकिन उनकी कुछ बातें शेखर को बिल्कुल भी पसंद नहीं आती थी। जैसे पंखा चलता छोड़ देने पर मां का टोकन, बिना वजह ट्यूबलाइट जलते रहने पर पिताजी का बोलना, बेकार कागज डस्टबिन में गिरने के लिए कहना या फिर पानी का नल अगर खुला रह जाए तो पानी की बचत पर पूरा 10 मिनट का लेक्चर दे देना। इन सब टोका टोकी से शहर बहुत ही परेशान रहता था।
कई बार वह मन ही मन में सोचता था कि जैसे ही मुझे कोई अच्छी नौकरी मिल जाएगी तो सबसे पहले काम मैं यह करूंगा कि एक अलग घर किराए पर लूंगा और वहां पर बिना अपने मां-बाप के अलग ही रहूंगा। जहां पर मुझे कोई टोका टोकी नहीं करेगा। खैर आज सुबह फिर शेखर रोज की तरह लैपटॉप पर अपनी इमेल चेक करता है और उसे पता चलता है कि आज दोपहर 3:00 बजे एक मल्टीनेशनल कंपनी में उसका इंटरव्यू है।
शेखर खुश हो गया कि आज तो जरूर मैं इंटरव्यू क्लियर कर ही लूंगा। जल्दी ही वह इंटरव्यू के लिए तैयार हो जाता है और अपने माता-पिता को बता कर इंटरव्यू के लिए कंपनी के ऑफिस की तरफ चल पड़ता है।
शेखर टैक्सी में बैठकर बिल्कुल सही टाइम पर इंटरव्यू के लिए पहुंच गया। कंपनी का ऑफिस बिल्डिंग के थर्ड फ्लोर पर था। बिल्डिंग में लिफ्ट भी नहीं लगी हुई थी। इसलिए सीढ़ियां चढ़कर कंपनी के ऑफिस में जाना था। इंटरव्यू देने आ रहे बाकी के कैंडिडेट्स भी सीढ़ियां चढ़कर ही जा रहे थे। शेखर ने भी सीढ़ियों पर चढ़ना शुरू कर दिया। उसके दिमाग में कई ख्याल भी आ रहे थे कि क्या मेरा इंटरव्यू क्लियर हो पाएगा। नौकरी मिलेगी या नहीं तभी उसकी नजर सीढ़ियों पर जलती हुई ट्यूबलाइट पर पड़ी। इतनी भरी दोपहरी में ट्यूबलाइट जलाने की कोई जरूरत नहीं है मां की यह बात शेखर के दिमाग में आ गई.
Emotional Hindi Kahani
उसने उस ट्यूबलाइट को स्विच ऑफ कर दिया और लाइट बंद कर दी। अभी वह सीढ़ियां चढ़ ही रहा था कि तभी उसकी नजर कोने में रखे हुए डस्टबिन पर पड़ी जिसके बाहर एक कागज का टुकड़ा गिरा था। उसे देखकर शेखर को पिता की सिखाई गई सिख याद आ गई की बेकार पेपर डस्टबिन में ही गिराना। उसने ना चाहते हुए भी वह बेकार कागज का टुकड़ा डस्टबिन में गिरा दिया। उसके बाद शेखर थर्ड फ्लोर पर कंपनी के ऑफिस में पहुंचा। ऑफिस में काफी भीड़ थी। सभी लोग इंटरव्यू देने के लिए आए थे।
जो भी कैंडिडेट इंटरव्यू देकर बाहर आ रहे थे, वह काफी निराश लग रहे थे। उनसे पूछने पर पता चला कि इंटरव्यू के लिए ऑफिस के अंदर बुलाया तो जा रहा है, लेकिन बिना कोई इंटरव्यू लिए ही बस नौकरी के लिए ना कहकर वापस भेज दिया जाता है। कुछ तो कहने लगे कि यह सब फर्जी वाला है।
शेखर ने सोचा इतनी दूर आए हैं तो चलो मैं भी इंटरव्यू के लिए जाकर देख ही लेता हूं। शेखर ऑफिस में दाखिल होता है। सामने की मेज पर तीन लोग बैठे थे, शायद कंपनी के बड़े अधिकारी होंगे। शेखर जैसे ही उनके सामने बैठा तो उसने अपना परिचय दिया तभी कंपनी के एक बड़े अधिकारी ने कहा शेखर आपको यह नौकरी दी जाती है। आप कल से ऑफिस ज्वाइन कर ले। शेखर को जैसे यह मजाक लग रहा था। शेखर ने कहा बिना किसी इंटरव्यू के बिना किसी सवाल जवाब के आपने मुझे नौकरी कैसे दे दी? मुझे समझ में नहीं आया।
तब कंपनी के एक बड़े अधिकारी ने जवाब दिया शेखर तुम्हारा इंटरव्यू तो तभी हो गया था, जब तुम सीढ़ियां चढ़कर ऊपर आ रहे थे, या यूं कहें सभी कैंडिडेट्स का इंटरव्यू सीढ़ियों पर ही हो गया था, क्योंकि हमने सीढ़ियो पर सीसीटीवी कैमरा लगा रखे हैं और हम यहां ऑफिस में बैठकर सब कुछ देख रहे हैं।
अभी तक हमने कम से कम डेढ़ सौ से भी ज्यादा लोगों को उसमें देखा है, लेकिन किसी ने भी उसे जलती हुई ट्यूबलाइट का बटन बंद नहीं किया और ना ही वह वेस्ट पेपर उठाकर डस्टबिन में डाला। जबकि हमारा डिसीजन यही था कि वह आदमी जो यह दोनों काम करता हुआ आएगा उसी को नौकरी मिलेगी और तुमने यह दोनों काम किए हैं। इसलिए तुम इस नौकरी के हकदार हो।
Emotional Story in Hindi
उस अधिकारी ने आगे बोलना जारी रखा की शेखर ट्यूबलाइट बंद करना एक मामूली बात है। लेकिन इससे तुम्हारा नजरिया पता लगता है कि तुम फिजूल खर्ची के बिलकुल खिलाफ हो यानी तुम कंपनी के रिसोर्सेस का भी बहुत ही अच्छी तरह से यूटिलाइज करोगे और दूसरी बात वह तुम्हारा वेस्ट पेपर उठाकर डस्टबिन में डालना हमें बताता है कि तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हें बहुत ही अच्छे संस्कार दिए हैं जो कि हमारे लिए बहुत ही फायदेमंद होंगे।
शेखर यह सब सुनकर मन ही मन अपने आप पर शर्मिंदा हो रहा था। मॉडर्न लाइफ में भी ऐसे बहुत से युवा है, जिन्हें अपनी लाइफ में फ्रीडम चाहिए वह अपने सारे डिसीजन खुद लेना चाहते हैं। इसीलिए उन्हें अपने पेरेंट्स की छोटी-छोटी बातें भी बर्दाश्त नहीं होती। जबकि सच्चाई तो यह है की मां-बाप को इस दुनिया और जिंदगी का हमसे ज्यादा तजुर्बा होता है। हमें उनकी बात को बहुत ही ध्यान से सुनना चाहिए और उसका अमल करना चाहिए।
दोस्तों आज की ये Emotional Story आपको कैसे लगी ये आप हमे कॉमेंट करके बता सकते है। हम ऐसे ही कहानियाँ आपके लिए लेकर आते रहेंगे।
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