Mahadevi Verma Poems in Hindi: नमस्कार दोस्तो, हमेशा की तरह आज फिर से एक नए पोस्ट Mahadevi Verma Poems in Hindi के साथ हाजिर है। हम उम्मीद करते है की ये पोस्ट आपको पसंद आएगी और आप इसे आप अपने दोस्तो के साथ जरूर शेयर करेंगे।
जो तुम आ जाते एक बार
कितनी करूणा कितने संदेश
पथ में बिछ जाते बन पराग
गाता प्राणों का तार तार
अनुराग भरा उन्माद राग
आँसू लेते वे पथ पखार
जो तुम आ जाते एक बार
हँस उठते पल में आर्द्र नयन
धुल जाता होठों से विषाद
छा जाता जीवन में बसंत
लुट जाता चिर संचित विराग
आँखें देतीं सर्वस्व वार
जो तुम आ जाते एक बार
तेरी सुधि बिन
कम्पित कम्पित,
पुलकित पुलकित,
परछाईं मेरी से चित्रित,
रहने दो रज का मंजु मुकुर,
इस बिन श्रृंगार-सदन सूना!
तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना।
सपने औ’ स्मित,
जिसमें अंकित,
सुख दुख के डोरों से निर्मित;
अपनेपन की अवगुणठन बिन
मेरा अपलक आनन सूना!
तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना।
जिनका चुम्बन
चौंकाता मन,
बेसुधपन में भरता जीवन,
भूलों के सूलों बिन नूतन,
उर का कुसुमित उपवन सूना!
तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना।
दृग-पुलिनों पर
हिम से मृदुतर,
करूणा की लहरों में बह कर,
जो आ जाते मोती, उन बिन,
नवनिधियोंमय जीवन सूना!
तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना।
जिसका रोदन,
जिसकी किलकन,
मुखरित कर देते सूनापन,
इन मिलन-विरह-शिशुओं के बिन
विस्तृत जग का आँगन सूना!
तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना।
तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या
तारक में छवि, प्राणों में स्मृति
पलकों में नीरव पद की गति
लघु उर में पुलकों की संस्कृति
भर लाई हूँ तेरी चंचल
और करूँ जग में संचय क्या?
तेरा मुख सहास अरूणोदय
परछाई रजनी विषादमय
वह जागृति वह नींद स्वप्नमय,
खेल-खेल, थक-थक सोने दे
मैं समझूँगी सृष्टि प्रलय क्या?
तेरा अधर विचुंबित प्याला
तेरी ही विस्मत मिश्रित हाला
तेरा ही मानस मधुशाला
फिर पूछूँ क्या मेरे साकी
देते हो मधुमय विषमय क्या?
चित्रित तू मैं हूँ रेखा क्रम,
मधुर राग तू मैं स्वर संगम
तू असीम मैं सीमा का भ्रम
काया-छाया में रहस्यमय
प्रेयसी प्रियतम का अभिनय क्या?
Mahadevi Verma Short Poems in Hindi
मैं प्रिय पहचानी नहीं
पथ देख बिता दी रैन
मैं प्रिय पहचानी नहीं!
तम ने धोया नभ-पंथ
सुवासित हिमजल से;
सूने आँगन में दीप
जला दिये झिल-मिल से;
आ प्रात बुझा गया कौन
अपरिचित, जानी नहीं!
मैं प्रिय पहचानी नहीं!
धर कनक-थाल में मेघ
सुनहला पाटल सा,
कर बालारूण का कलश
विहग-रव मंगल सा,
आया प्रिय-पथ से प्रात-
सुनायी कहानी नहीं!
मैं प्रिय पहचानी नहीं!
नव इन्द्रधनुष सा चीर
महावर अंजन ले,
अलि-गुंजित मीलित पंकज-
-नूपुर रूनझुन ले,
फिर आयी मनाने साँझ
मैं बेसुध मानी नहीं!
मैं प्रिय पहचानी नहीं!
इन श्वासों का इतिहास
आँकते युग बीते;
रोमों में भर भर पुलक
लौटते पल रीते;
यह ढुलक रही है याद
नयन से पानी नहीं!
मैं प्रिय पहचानी नहीं!
अलि कुहरा सा नभ विश्व
मिटे बुद्बुद्-जल सा;
यह दुख का राज्य अनन्त
रहेगा निश्चल सा;
हूँ प्रिय की अमर सुहागिनि
पथ की निशानी नहीं!
मैं प्रिय पहचानी नहीं!
Mahadevi Verma Poems in Hindi
मैं बनी मधुमास आली
आज मधुर विषाद की घिर करुण आई यामिनी,
बरस सुधि के इन्दु से छिटकी पुलक की चाँदनी
उमड़ आई री, दृगों में
सजनि, कालिन्दी निराली!
रजत स्वप्नों में उदित अपलक विरल तारावली,
जाग सुक-पिक ने अचानक मदिर पंचम तान लीं;
बह चली निश्वास की मृदु
वात मलय-निकुंज-वाली!
सजल रोमों में बिछे है पाँवड़े मधुस्नात से,
आज जीवन के निमिष भी दूत है अज्ञात से;
क्या न अब प्रिय की बजेगी
मुरलिका मधुराग वाली?
बताता जा रे अभिमानी
कण-कण उर्वर करते लोचन
स्पन्दन भर देता सूनापन
जग का धन मेरा दुख निर्धन
तेरे वैभव की भिक्षुक या
कहलाऊँ रानी!
बताता जा रे अभिमानी!
दीपक-सा जलता अन्तस्तल
संचित कर आँसू के बादल
लिपटी है इससे प्रलयानिल,
क्या यह दीप जलेगा तुझसे
भर हिम का पानी?
बताता जा रे अभिमानी!
चाहा था तुझमें मिटना भर
दे डाला बनना मिट-मिटकर
यह अभिशाप दिया है या वर;
पहली मिलन कथा हूँ या मैं
चिर-विरह कहानी!
बताता जा रे अभिमानी!
मैं नीर भरी दुख की बदली!
स्पन्दन में चिर निस्पन्द बसा
क्रन्दन में आहत विश्व हँसा
नयनों में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झारिणी मचली!
मेरा पग-पग संगीत भरा
श्वासों से स्वप्न-पराग झरा
नभ के नव रंग बुनते दुकूल
छाया में मलय-बयार पली।
मैं क्षितिज-भृकुटि पर घिर धूमिल
चिन्ता का भार बनी अविरल
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नव जीवन-अंकुर बन निकली!
पथ को न मलिन करता आना
पथ-चिह्न न दे जाता जाना;
सुधि मेरे आगन की जग में
सुख की सिहरन हो अन्त खिली!
विस्तृत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना, इतिहास यही-
उमड़ी कल थी, मिट आज चली!
कहां रहेगी चिड़िया
कहां रहेगी चिड़िया?
आंधी आई जोर-शोर से
डाली टूटी है झकोर से
उड़ा घोंसला बेचारी का
किससे अपनी बात कहेगी
अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी?
घर में पेड़ कहाँ से लाएँ
कैसे यह घोंसला बनाएँ
कैसे फूटे अंडे जोड़ें
किससे यह सब बात कहेगी
अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी?
मैं अनंत पथ में लिखती जो
मै अनंत पथ में लिखती जो
सस्मित सपनों की बाते
उनको कभी न धो पायेंगी
अपने आँसू से रातें!
उड़् उड़ कर जो धूल करेगी
मेघों का नभ में अभिषेक
अमिट रहेगी उसके अंचल-
में मेरी पीड़ा की रेख!
तारों में प्रतिबिम्बित हो
मुस्कायेंगी अनंत आँखें,
हो कर सीमाहीन, शून्य में
मँडरायेगी अभिलाषें!
वीणा होगी मूक बजाने-
वाला होगा अंतर्धान,
विस्मृति के चरणों पर आ कर
लौटेंगे सौ सौ निर्वाण!
जब असीम से हो जायेगा
मेरी लघु सीमा का मेल,
देखोगे तुम देव! अमरता
खेलेगी मिटने का खेल!
जो मुखरित कर जाती थीं
जो मुखरित कर जाती थीं
मेरा नीरव आवाहन,
मैं नें दुर्बल प्राणों की
वह आज सुला दी कंपन!
थिरकन अपनी पुतली की
भारी पलकों में बाँधी
निस्पंद पड़ी हैं आँखें
बरसाने वाली आँधी!
जिसके निष्फल जीवन नें
जल जल कर देखी राहें
निर्वाण हुआ है देखो
वह दीप लुटा कर चाहें!
निर्घोष घटाओं में छिप
तड़पन चपला सी सोती
झंझा के उन्मादों में
घुलती जाती बेहोशी!
करुणामय को भाता है
तम के परदों में आना
हे नभ की दीपावलियों!
तुम पल भर को बुझ जाना!
क्यों इन तारों को उलझाते?
क्यों इन तारों को उलझाते?
अनजाने ही प्राणों में क्यों
आ आ कर फिर जाते?
पल में रागों को झंकृत कर,
फिर विराग का अस्फुट स्वर भर,
मेरी लघु जीवन वीणा पर
क्या यह अस्फुट गाते?
लय में मेरा चिर करुणा-धन
कम्पन में सपनों का स्पन्दन
गीतों में भर चिर सुख चिर दुख
कण कण में बिखराते!
मेरे शैशव के मधु में घुल
मेरे यौवन के मद में ढुल
मेरे आँसू स्मित में हिल मिल
मेरे क्यों न कहाते?
Famous Poems of Mahadevi Verma in Hindi
वे मधुदिन जिनकी स्मृतियों की
वे मधु दिन जिनकी स्मृतियों की
धुँधली रेखायें खोईं,
चमक उठेंगे इन्द्रधनुष से
मेरे विस्मृति के घन में!
झंझा की पहली नीरवता-
सी नीरव मेरी साधें,
भर देंगी उन्माद प्रलय का
मानस की लघु कम्पन में!
सोते जो असंख्य बुदबुद् से
बेसुध सुख मेरे सुकुमार;
फूट पड़ेंगे दुख सागर की
सिहरी धीमी स्पन्दन में!
मूक हुआ जो शिशिर-निशा में
मेरे जीवन का संगीत,
मधु-प्रभात में भर देगा वह
अन्तहीन लय कण कण में
अलि अब सपने की बात
अलि अब सपने की बात-
हो गया है वह मधु का प्रात!
जब मुरली का मृदु पंचम स्वर,
कर जाता मन पुलकित अस्थिर,
कम्पित हो उठता सुख से भर,
नव लतिका सा गात!
जब उनकी चितवन का निर्झर,
भर देता मधु से मानस-सर,
स्मित से झरतीं किरणें झर झर,
पीते दृग – जलजात!
मिलन-इन्दु बुनता जीवन पर,
विस्मृति के तारों से चादर,
विपुल कल्पनाओं का मंथर-
बहता सुरभित वात
अब नीरव मानस-अलि गुंजन,
कुसुमित मृदु भावों का स्पंदन,
विरह-वेदना आई है बन-
तम तुषार की रात!
क्या जलने की रीत
क्या जलने की रीति शलभ समझा दीपक जाना
घेरे हैं बंदी दीपक को
ज्वाला की वेला
दीन शलभ भी दीप शिखा से
सिर धुन धुन खेला
इसको क्षण संताप भोर उसको भी बुझ जाना
इसके झुलसे पंख धूम की
उसके रेख रही
इसमें वह उन्माद न उसमें
ज्वाला शेष रही
जग इसको चिर तृप्त कहे या समझे पछताना
प्रिय मेरा चिर दीप जिसे छू
जल उठता जीवन
दीपक का आलोक शलभ
का भी इसमें क्रंदन
युग युग जल निष्कंप इसे जलने का वर पाना
धूम कहाँ विद्युत लहरों से
हैं निश्वास भरा
झंझा की कंपन देती
चिर जागृति का पहरा
जाना उज्जवल प्रात न यह काली निशि पहचाना
किसी का दीप निष्ठुर हूँ
शलभ मैं शपमय वर हूँ!
किसी का दीप निष्ठुर हूँ!
ताज है जलती शिखा;
चिनगारियाँ शृंगारमाला;
ज्वाल अक्षय कोष सी
अंगार मेरी रंगशाला;
नाश में जीवित किसी की साध सुन्दर हूँ!
नयन में रह किन्तु जलती
पुतलियाँ आगार होंगी;
प्राण में कैसे बसाऊँ
कठिन अग्नि समाधि होगी;
फिर कहाँ पालूँ तुझे मैं मृत्यु-मन्दिर हूँ!
हो रहे झर कर दृगों से
अग्नि-कण भी क्षार शीतल;
पिघलते उर से निकल
निश्वास बनते धूम श्यामल;
एक ज्वाला के बिना मैं राख का घर हूँ!
तम में बनकर दीप
उर तिमिरमय घर तिमिरमय
चल सजनि दीपक बार ले!
राह में रो रो गये हैं
रात और विहान तेरे
काँच से टूटे पड़े यह
स्वप्न, भूलें, मान तेरे;
फूलप्रिय पथ शूलमय
पलकें बिछा सुकुमार ले!
तृषित जीवन में घिर घन-
बन; उड़े जो श्वास उर से;
पलक-सीपी में हुए मुक्ता
सुकोमल और बरसे;
मिट रहे नित धूलि में
तू गूँथ इनका हार ले!
मिलन वेला में अलस तू
सो गयी कुछ जाग कर जब,
फिर गया वह, स्वप्न में
मुस्कान अपनी आँक कर तब।
आ रही प्रतिध्वनि वही फिर
नींद का उपहार ले!
चल सजनि दीपक बार ले!
जीवन दीप
किन उपकरणों का दीपक,
किसका जलता है तेल?
किसकि वर्त्ति, कौन करता
इसका ज्वाला से मेल?
शून्य काल के पुलिनों पर-
जाकर चुपके से मौन,
इसे बहा जाता लहरों में
वह रहस्यमय कौन?
कुहरे सा धुँधला भविष्य है,
है अतीत तम घोर;
कौन बता देगा जाता यह
किस असीम की ओर?
पावस की निशि में जुगनू का-
ज्यों आलोक-प्रसार।
इस आभा में लगता तम का
और गहन विस्तार।
इन उत्ताल तरंगों पर सह-
झंझा के आघात,
जलना ही रहस्य है बुझना –
है नैसर्गिक बात!
दीपक अब रजनी जाती रे
जिनके पाषाणी शापों के
तूने जल जल बंध गलाए
रंगों की मूठें तारों के
खील वारती आज दिशाएँ
तेरी खोई साँस विभा बन
भू से नभ तक लहराती रे
दीपक अब रजनी जाती रे
लौ की कोमल दीप्त अनी से
तम की एक अरूप शिला पर
तू ने दिन के रूप गढ़े शत
ज्वाला की रेखा अंकित कर
अपनी कृति में आज
अमरता पाने की बेला आती रे
दीपक अब रजनी जाती रे
धरती ने हर कण सौंपा
उच्छवास शून्य विस्तार गगन में
न्यास रहे आकार धरोहर
स्पंदन की सौंपी जीवन रे
अंगारों के तीर्थ स्वर्ण कर
लौटा दे सबकी थाती रे
दीपक अब रजनी जाती रे
Mahadevi Verma Poems in Hindi
सजनि दीपक बार ले
उर तिमिरमय घर तिमिरमय
चल सजनि दीपक बार ले!
राह में रो रो गये हैं
रात और विहान तेरे
काँच से टूटे पड़े यह
स्वप्न, भूलें, मान तेरे;
फूलप्रिय पथ शूलमय
पलकें बिछा सुकुमार ले!
तृषित जीवन में घिर घन-
बन; उड़े जो श्वास उर से;
पलक-सीपी में हुए मुक्ता
सुकोमल और बरसे;
मिट रहे नित धूलि में
तू गूँथ इनका हार ले!
मिलन वेला में अलस तू
सो गयी कुछ जाग कर जब,
फिर गया वह, स्वप्न में
मुस्कान अपनी आँक कर तब।
आ रही प्रतिध्वनि वही फिर
नींद का उपहार ले!
चल सजनि दीपक बार ले!
दीप मेरे जल अकम्पित
दीप मेरे जल अकम्पित,
घुल अचंचल!
सिन्धु का उच्छवास घन है,
तड़ित, तम का विकल मन है,
भीति क्या नभ है व्यथा का
आँसुओं से सिक्त अंचल!
स्वर-प्रकम्पित कर दिशायें,
मीड़, सब भू की शिरायें,
गा रहे आंधी-प्रलय
तेरे लिये ही आज मंगल
मोह क्या निशि के वरों का,
शलभ के झुलसे परों का
साथ अक्षय ज्वाल का
तू ले चला अनमोल सम्बल!
पथ न भूले, एक पग भी,
घर न खोये, लघु विहग भी,
स्निग्ध लौ की तूलिका से
आँक सबकी छाँह उज्ज्वल
हो लिये सब साथ अपने,
मृदुल आहटहीन सपने,
तू इन्हें पाथेय बिन, चिर
प्यास के मरु में न खो, चल!
धूम में अब बोलना क्या,
क्षार में अब तोलना क्या!
प्रात हंस रोकर गिनेगा,
स्वर्ण कितने हो चुके पल!
दीप रे तू गल अकम्पित,
चल अंचल!
क्या पूजन क्या अर्चन रे!
उस असीम का सुंदर मंदिर मेरा लघुतम जीवन रे!
मेरी श्वासें करती रहतीं नित प्रिय का अभिनंदन रे!
पद रज को धोने उमड़े आते लोचन में जल कण रे!
अक्षत पुलकित रोम मधुर मेरी पीड़ा का चंदन रे!
स्नेह भरा जलता है झिलमिल मेरा यह दीपक मन रे!
मेरे दृग के तारक में नव उत्पल का उन्मीलन रे!
धूप बने उड़ते जाते हैं प्रतिपल मेरे स्पंदन रे!
प्रिय प्रिय जपते अधर ताल देता पलकों का नर्तन रे!
आज की ये पोस्ट Mahadevi Verma Poems in Hindi आपको कैसी लगी ये आप कमेन्ट करके जरूर बताइएगा। हम आगे भी आपके लिए ऐसे ही मजेदार पोस्ट आपके लिए लेकर आते रहेंगे।
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