हिंदू धर्म मे सबसे पहले गणेश भगवान का ही पूजा क्यों कीय जाता है? हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य का आरंभ करने से पूर्व गणेश जी की पूजा करना आवश्यक माना गया है। क्योंकि उन्हें विघ्नहर्ता एवं रिद्धि सिद्धि का स्वामी कहा जाता है। इनके स्मरण ध्यान जप और आराधना से कामनाओं की पूर्ति होती है एवं विघ्नों का विनाश होता है। वे शीघ्र प्रसन्न होने वाले, बुद्धि के अधिष्ठाता और साक्षात प्राण स्वरूप है, गणेश का अर्थ है गणों का इष्ट अर्थात गणों का स्वामी। किसी पूजा आराधना अनुष्ठान एवं कार्य में गणेश जी के गण कोई विघ्न बाधा ना पहुंचाएं इसलिए सर्वप्रथम गणेश पूजा करके उनकी कृपा प्राप्त की जाती है।
प्रत्येक शुभ कार्य के पूर्व श्री गणेशाय नमः का उच्चारण कर उनकी स्तुति में यह मंत्र बोला जाता है वह कृतुर्न महाकाय सूर्यकोटि समप्रभा निर्विघ्नम कुरु में देव सर्वकार्येषु सर्वदा अर्थात विशाल आकार और टेढ़ी सुढ वाले करोड़ों सूर्य के समान तेज वाले हे देव गणेश जी मेरे समस्त कार्यों को सदा विघ्न रहित पूर्ण संपन्न करें। गणेश जी विद्या के देवता है, साधना में उच्च स्तरीय दूरदर्शिता आ जाए उचित अनुचित कर्तव्य अकर्तव्य की पहचान हो जाए, इसलिए सभी शुभ कार्यों में गणेश पूजन का विधान बनाया गया है।
पद्म पुराण के अनुसार
पद्म पुराण के अनुसार सृष्टि के आरंभ में जब यह प्रश्न उठा की प्रथम पूज्य किसे माना जाए तो समस्त देवतागण ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। ब्रह्मा जी ने कहा कि जो कोई संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा सबसे पहले कर लेगा उसे ही प्रथम पूजा जाएगा। इस पर सभी देवता गण अपने-अपने वाहनों पर सवार होकर परिक्रमा हेतु चल पड़े। क्योंकि गणेश जी का वाहन चूहा है और उनका शरीर स्थूल तो ऐसे में परिक्रमा कैसे कर पाते। इस समस्या को नारद ने सुलझाया और उन्हें जो उपाय सुझाया उसके अनुसार गणेश जी ने भूमि पर राम नाम लेकर उसके साथ परिक्रमा की और ब्रह्मा जी के पास सबसे पहले पहुंच गए। तब ब्रह्मा जी ने उन्हें प्रथम पूज्य बताया क्योंकि राम नाम साक्षात श्री राम का स्वरूप है और श्री राम में ही संपूर्ण ब्रह्मांड निहित है।
शिव पुराण के अनुसार
शिव पुराण की एक अन्य कथा के अनुसार एक बार समस्त देवता भगवान शंकर के पास यह समस्या लेकर पहुंचे कि किस देव को उनके मुखिया चुना जाए? भगवान शिव ने यह प्रस्ताव रखा की जो भी पहले पृथ्वी की तीन परिक्रमा करके कैलाश लौटेगा वहीं अगर पूजा के योग्य होगा और उसे ही देवताओं का स्वामी बनाया जाएगा। क्योंकि गणेश जी का वाहन चूहा अत्यंत धीमी गति से चलने वाला था इसलिए अपनी बुद्धि चातुर्य के कारण उन्होंने अपने पिता शिव और माता पार्वती के ही तीन परिक्रमा पूर्ण की और हाथ जोड़कर खड़े हो गए। शिव ने प्रसन्न होकर कहा कि तुमसे बढ़कर संसार में अन्य कोई इतना चतुर नहीं है। माता-पिता के तीन परिक्रमा से तीनों लोकों की परिक्रमा का पुण्य तुम्हें मिल गया, जो पृथ्वी की परिक्रमा से भी बड़ा है। इसलिए जो मनुष्य किसी कार्य के शुभारंभ से पहले तुम्हारा पूजन करेगा उसे कोई बाधा नहीं आएगी बस तभी से गणेश जी अग्र पूजा हो गए।