Hindi Story for Kids

दोस्तों, बचपन मे बच्चों का कहानियों से एक अनोखा रिश्ता होता है। इन कहानियों से जिंदगी की छोटी से छोटी सिख बहुत आसानी से मिल जाती है। बच्चे जो भी अपने अगल बगल सुनते है वैसे ही उनका व्यक्तित्व निखरता है। तो दोस्तों, आज हम आपके लिए कुछ ऐसे ही Hindi Story for Kids लेकर आए है। हम उम्मीद करते है की ये पोस्ट आपको पसंद आएगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करेंगे।

कबूतर और मधुमक्खी की कहानी

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एक समय की बात है। एक जंगल में नदी किनारे एक पेड़ पर कबूतर रहता था। उसी जंगल में एक दिन कहीं से एक मधुमक्खी भी गुजर रही थी कि अचानक से वह एक नदी में जा गिरी। उसके पंख गीले हो गए। उसने बाहर निकलने के लिए बहुत कोशिश की, लेकिन वह नहीं निकल सकी। जब उसे लगा कि वह अब मर जाएगी, तो उसने मदद के लिए चिल्लाना शुरू कर दिया। तभी पास के पेड़ पर बैठे कबूतर की नजर उस पर पड़ गई। कबूतर ने उसकी मदद करने के लिए तुरंत पेड़ से उड़ान भर ली।

कबूतर ने मधुमक्खी को बचाने के लिए एक तरकीब सोची। कबूतर ने एक पत्ते को अपनी चोंच में पकड़ा और उसे नदी में गिरा दिया। वह पत्ता मिलते ही मधुमक्खी उस पर बैठ गई। थोड़ी ही देर में उसके पंख सूख चुके थे। अब वह उड़ने के लिए तैयार थी। उसने कबूतर को जान बचाने के लिए धन्यवाद बोला। उसके बाद मधुमक्खी वहां से उड़कर चली गई।

इस बात को कई दिन बीत चुके थे। एक दिन वही कबूतर गहरी नींद में सो रहा था और तभी एक लड़का उस पर गुलेल से निशाना लगा रहा था। कबूतर गहरी नींद में था, इसलिए वह इस बात से अंजान था, लेकिन उसी समय वहां से एक मधुमक्खी गुजर रही थी, जिसकी नजर उस लड़के पर पड़ गई। यह वही मधुमक्खी थी, जिसकी कबूतर ने जान बचाई थी। मधुमक्खी तुरंत लड़के की ओर उड़ गई और उसने जाकर सीधे लड़के के हाथ पर डंक मार दिया।

मधुमक्खी के काटते ही लड़का तेजी से चिल्ला पड़ा। उसके हाथ से गुलेल दूर जाकर गिरी। लड़के के चिल्लाने की आवाज सुनकर कबूतर की नींद खुल गई थी। वह मधुमक्खी के कारण सुरक्षित बच गया था। कबूतर सारा माजरा समझ गया था। उसने मधुमक्खी को जान बचाने के लिए धन्यवाद बोला और दोनों जंगल की ओर उड़ गए।

कहानी से सीख: हमें मुसीबत में फंसे व्यक्ति की मदद जरूर करनी चाहिए। इससे हमें भविष्य में इसके अच्छे परिणाम जरूर मिलते हैं।

दो मछलियों और एक मेंढक की कहानी

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एक बार की बात है, एक तालाब में दो मछलियां और एक मेंढक साथ रहा करते थे। एक मछली का नाम शतबुद्धि और दूसरी का नाम सहस्त्रबुद्धि था। वहीं, मेंढक का नाम एकबुद्धि था। मछलियों को अपनी बुद्धि पर बड़ा घमंड था, लेकिन मेंढक अपनी बुद्धि पर कभी घमंड नहीं करता था। फिर भी तीनों आपस में बहुत अच्छे दोस्त थे। तीनों इकट्ठे तालाब में एकसाथ घूमा करते थे और हमेशा साथ रहते थे।

जब भी कोई समस्या आती, तो तीनों साथ मिलकर उससे निपटते थे। एक दिन नदी के किनारे से मछुआरे जा रहे थे। उन्होंने देखा कि तालाब मछलियों में भरा हुआ है। मछुआरों ने कहा “हम कल सुबह यहां आएंगे और बहुत सारी मछलियां पकड़कर ले जाएंगे।” मेंढक ने मछुआरों की सारी बातें सुन ली थी।

वह तालाब में मौजूद सभी की जान बचाने के लिए अपने दोस्तों के पास गया। उसने शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि को मछुआरों की सारी बात बताई। एकबुद्धि मेंढक ने कहा “उन्हें अपनी जान बचाने के लिए कुछ करना चाहिए।” दोनों मछलियां कहने लगीं – “हम मछुआरों के डर से अपने पूर्वजों की जगह छोड़कर नहीं जा सकते हैं।

दोनों ने फिर कहा – “हमें डरने की जरूरत नहीं है। हमारे पास इतनी बुद्धि है कि हम अपना बचाव कर सकती हैं।” वहीं, एकबुद्धि मेंढक ने कहा – “मुझे पास में मौजूद एक तालाब के बारे में पता है, जो इसी तालाब से जुड़ा है।” उसने तालाब के अन्य जीवों को भी साथ चलने को कहा, लेकिन कोई भी एकबुद्धि मेंढक के साथ जाने को तैयार नहीं था, क्योंकि सभी को शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि पर भरोसा था कि वो उन सबकी जान बचा लेंगी।

मेंढक ने कहा – “तुम सब मेरे साथ चलो। मछुआरे सुबह तक आ जाएंगे।” इस पर सहस्त्रबुद्धि ने कहा – “उसे तालाब में छिपने की एक जगह पता है।” शतबुद्धि ने भी कहा – “उसे भी तालाब में छिपने की जगह मालूम है।” इस पर मेंढक ने कहा – “मछुआरों के पास बड़ा जाल है। तुम उनसे नहीं बच सकते हो”, लेकिन मछलियों को अपनी बुद्धि पर बहुत गुमान था। उन्होंने मेंढक की एक न सुनी, लेकिन मेंढक उसी रात अपनी पत्नी के साथ दूसरे तालाब में चला गया।

शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि ने एकबुद्धि का मजाक उड़ाया। अब अगली सुबह मछुआरे अपना जाल लेकर वहां आ पहुंचे। उन्होंने तालाब में जाल डाला। तालाब के सभी जीव अपनी जान बचाने के लिए भागने लगे, लेकिन मछुआरों के पास बड़ा जाल था, जिस कारण कोई भी बचकर नहीं जा सका। जाल में बहुत सारी मछलियां पकड़ी गईं। शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि ने भी बहुत बचने की कोशिश की, लेकिन उन्हें भी मछुआरों ने पकड़ ही लिया।

जब उन्हें तालाब से बाहर लाया गया, तब तक दोनों की मौत हो चुकी थी। शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि का आकार सबसे बड़ा था, इसलिए, मछुआरों ने उन्हें लग रखा था। उन्होंने बाकी मछलियों को एक टोकरी में डाला, जबकि शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि को कंधे पर उठाकर चल दिए। जब वह दूसरे तालाब के सामने पहुंचे, तो एकबुद्धि मेंढक की नजर इन दोनों पर पड़ी। उसे अपने मित्रों की यह हालत देख बड़ा दुख हुआ। उसने अपनी पत्नी से कहा कि काश इन दोनों ने मेरी बात मान ली होती, तो आज ये जिंदा होती।

कहानी से सीख: कभी भी अपनी बुद्धि पर घमंड नहीं करना चाहिए। एक दिन यही घमंड जानलेवा साबित हो सकता है।

Hindi Story for Kids – मूर्ख बकरी की कहानी

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एक जंगल में दो बकरियां रहती थीं। वो दोनों जंगल के अलग हिस्सों में घास खाती थीं। उस जंगल में एक नदी भी बहती थी, जिसके बीच में एक बहुत ही कम चौड़ा पुल था। इस पुल से एक समय में केवल एक ही जानवर गुजर सकता था। इन दोनों बकरियों के साथ भी एक दिन कुछ ऐसा ही हुआ। एक दिन घास चरते-चरते दोनों बकरियां नदी तक आ पहुंची। ये दोनों नदी पार करके जंगल के दूसरे हिस्से में जाना चाहती थीं। अब एक ही समय पर दोनों बकरियां नदी के पुल पर थीं।

पुल की चौड़ाई कम होने के कारण इस पुल से केवल एक ही बकरी एक बार में गुजर सकती थी, लेकिन दोनों में से कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं था। इस पर एक बकरी ने कहा, ‘सुनो, मुझे पहले जाने दो, तुम मेरे बाद पुल पार कर लेना।’ वहीं, दूसरी बकरी ने जवाब दिया, ‘नहीं, पहले मुझे पुल पार करने दो, उसके बाद तुम पुल पार कर लेना।’ यह बोलते-बोलते दोनों बकरियां पुल के बीच तक जा पहुंची। दोनों एक दूसरे की बात से सहमत नहीं थीं।

अब बकरियों के बीच तू-तू मैं-मैं शुरू हो गई। पहली बकरी ने कहा, ‘पहले पुल पर मैं आई थी, इसलिए पहले मैं पुल को पार करूंगी।’ तब दूसरी बकरी ने भी तुरंत जवाब दिया, ‘नहीं, पहले मैं पुल पर आई थी, इसलिए पहले मैं पुल पार करूंगी।’ यह झगड़ा बढ़ता चलता जा रहा था। इन दोनों बकरियों को बिल्कुल भी याद नहीं रहा कि वह कितने कम चौड़े पुल पर खड़ी हैं। दोनों बकरियां लड़ते-लड़ते अचानक से नदी में गिर गईं। नदी बहुत गहरी थी और उसका बहाव भी तेज था, जिस कारण दोनों बकरियां उस नदी में बहकर मर गईं।

कहानी से सीख: झगड़े से कभी किसी समस्या का हल नहीं निकलता, उल्टा इससे सभी का नुकसान होता है। इसलिए, ऐसी अवस्था में शांत दिमाग से काम लेना चाहिए।

एकता में बल की कहानी

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किसी गांव में एक किसान रहता था। उसके चार पुत्र थे। किसान बहुत ही मेहनती था। यही कारण था कि उसके सभी पुत्र भी अपने हर काम को पूरी मेहनत और ईमानदारी से किया करते थे, लेकिन परेशानी यह थी कि किसान के सभी पुत्रों की आपस में बिल्कुल भी नहीं बनती थी। वो सभी छोटी-छोटी बात पर आपस में लड़ते-झगड़ते रहते थे। अपने पुत्रों के इस झगड़े को लेकर किसान बहुत परेशान रहता था। किसान ने कई बार अपने पुत्रों को इस बात के लिए समझाने का प्रयास किया, लेकिन उसकी बातों का चारों भाइयों पर कोई असर नहीं होता था।

धीरे-धीरे किसान बूढ़ा हो चला, लेकिन उसके पुत्रों के आपसी झगड़ों का सिलसिला खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। ऐसे में एक दिन किसान ने एक तरकीब निकाली और पुत्रों के झगड़े की इस आदत को दूर करने का मन बनाया। उसने अपने सभी पुत्रों को आवाज लगाई और अपने पास बुलाया।

किसान की आवाज सुनते ही सभी पुत्र अपने पिता के पास पहुंच गए। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उनके पिता ने उन सभी को एक साथ क्यों बुलाया है। सभी ने पिता से उन्हें बुलाने का कारण पूछा। किसान बोला- आज मैं तुम सभी को एक काम देने जा रहा हूं। मैं देखना चाहता हूं कि तुम में से कौन ऐसा है, जो इस काम को बखूबी कर सकता है।

सभी पुत्रों ने एक सुर में कहा- पिता जी आप जो काम देना चाहते हैं, दीजिए। हम उसे पूरी मेहनत और ईमानदारी से करेंगे। बच्चों के मुंह से यह बात सुनकर किसान ने अपने बड़े बेटे से कहा, ‘जाओ और बाहर से कुछ लकड़ियां उठाकर लाओ’। किसान ने अपने दूसरे बेटे से एक रस्सी लाने को कहा।

पिता के बोलते ही बड़ा बेटा लकड़ियां लाने चला गया और दूसरा बेटा रस्सी लाने के लिए बाहर की ओर दौड़ा। थोड़ी देर बाद दोनों बेटे वापस आए और पिता को लकड़ियां और रस्सी दे दी। अब किसान ने अपने बेटों को बोला कि इन सभी लकड़ियों को रस्सी से बांधकर उनका गट्ठर बना दें। पिता के इस आदेश का पालन करते हुए बड़े बेटे ने सभी लकड़ियों को आपस में बांधकर गट्ठर बना दिया। गट्ठर तैयार होने के बाद बड़े बेटे ने किसान से पूछा- पिता जी अब हमें क्या करना है?

पिता ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘बच्चों अब आपको इस लकड़ी के गट्ठर को दो भागों में अपने बल से तोड़ना है।’ पिता की यह बात सुनकर बड़ा बेटा बोला ‘यह तो मेरे बाएं हाथ का काम है, मैं इसे मिनटों में कर दूंगा।’ दूसरे नंबर का बेटा बोला ‘इसमें क्या है, यह काम तो आसानी से हो जाएगा।’ तीसरे नंबर का बेटा बोला ‘यह तो मेरे सिवा कोई नहीं कर पाएगा।’ चौथा बेटा बोला ‘यह तुम में से किसी के भी बस का काम नहीं है, मैं तुम सब में सबसे बलवान हूं, मेरे सिवा यह काम और कोई नहीं कर सकता।’

फिर क्या था अपनी बातों को साबित करने में सभी जुट गए और एक बार फिर चारों भाइयों में झगड़ा शुरू हो गया। किसान बोला- ‘बच्चों मैंने तुम सबको यहां झगड़ा करने नहीं बुलाया है, बल्कि मैं देखना चाहता हूं कि तुम से कौन ऐसा है, जो इस काम को बखूबी कर सकता है। इसलिए, झगड़ा बंद करो और लकड़ी के इस गट्ठर को तोड़कर दिखाओ। सभी को इस काम के लिए बारी-बारी मौका दिया जाएगा।

यह कहते हुए किसान ने सबसे पहले लकड़ी के गट्ठर को अपने सबसे बड़े बेटे के हाथ में थमा दिया। बड़े बेटे ने गट्ठर को तोड़ने का बहुत प्रयास किया, लेकिन उसे तोड़ पाने में असफल रहा। असफल होने के बाद बड़े बेटे ने दूसरे नंबर के बेटे को वह लकड़ी का गट्ठर थमाते हुए कहा कि भाई मैंने प्रयास कर लिया यह काम मुझसे नहीं हो पाएगा, तुम ही कोशिश करके देख लो।

इस बार लकड़ी का गट्ठर दूसरे बेटे के हाथ में था। उसने भी उस गट्ठर को तोड़ने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया, लेकिन लकड़ी का गट्ठर नहीं टूटा। असफल होने के बाद उसने लकड़ी के गट्ठर को तीसरे नंबर के बेटे को दे दिया और कहा, यह काम बहुत कठिन है, तुम भी कोशिश कर लो।

इस बार तीसरे नंबर के बेटे ने भी अपनी पूरी ताकत लगा दी, लेकिन लकड़ी का गट्ठर बहुत मोटा था। इस कारण अधिक बल लगाने पर भी वह उसे तोड़ नहीं पा रहा था। काफी मेहनत करने के बाद जब उससे भी यह नहीं हुआ, तो अंत में उसने लकड़ी के गट्ठर को सबसे छोटे बेटे के हाथ में दे दिया।

अब छोटे बेटे की बारी थी अपनी ताकत आजमाने की। उसने भी काफी प्रयास किया, लेकिन वह भी सभी भाइयों की तरह उस लकड़ी के गट्ठर को तोड़ पाने में सफल नहीं हुआ। अंत में हारकर उसने लकड़ी के गट्ठर को जमीन पर पटक दिया और बोला- ‘पिता जी यह काम संभव नहीं है।’ किसान मुस्कुराया और बोला ‘बच्चों अब आप इस गट्ठर को खोलकर इसकी लकड़ियों को अलग कर लो और फिर उसे तोड़ने का प्रयास करो।’ चारों भाइयों ने ऐसा ही किया। इस बार सभी ने एक-एक लकड़ी अपने हाथों में ली और आसानी से उसे तोड़ दिया।

किसान बोला- ‘बच्चों आप चारों भी इन्हीं लकड़ियों के समान हो। जब तक इन लकड़ियों की तरह साथ रहोगे, तब तक कोई भी तुम्हें किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा, लेकिन अगर तुम लोग लड़ते-झगड़ते रहोगे, तो इन अकेली लकड़ियों की तरह आसानी से टूट जाओगे।’

किसान की यह बात सुनकर अब सभी बच्चों को समझ आ गया था कि पिता उन्हें क्या समझाना चाहते हैं। सभी पुत्रों ने अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगी और वादा किया कि जीवन में फिर दोबारा कभी वे आपस में नहीं झगड़ेंगे।

कहानी से सीख: एकता ही सबसे बड़ी ताकत है। अगर हम आपस में एकजुट होकर रहेंगे, तो कोई भी मुश्किल क्यों न आ जाए, उसका सामना साथ मिलकर आसानी से किया जा सकता है। वहीं, अगर हम एक दूसरे से लड़ेंगे और अलग-अलग रहेंगे, तो छोटी से छोटी तकलीफ भी जिंदगी पर भारी पड़ सकती है।

Hindi Story for Kids – भूखे कुत्ते

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तीन कुत्ते थे, जो आपस में गहरे मित्र थे। एक दिन, तीनों कुत्ते भूखे थे और उन्हें खाने-पीने को कुछ नहीं मिल रहा था।अचानक उन्हें पानी की धारा में नीचे एक हड्डी पड़ी दिखी। उन्होंने वह हड्डी उठाने की बहुत कोशिश की लेकिन उस तक नहीं पहुंच पाए। तीनों ने निश्चय किया कि अगर सारा पानी पी लिया जाए तो उन्हें हड्डी मिल जाएगी।

तीनों ने पानी पीना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में उनके पेट भर गए और फूलने लगे। वे तब भी नहीं रुके और लगातार पानी पीते गए। उनके पेट और अधिक फूलते गए और फट गए। उनके पेटों से सारा पानी भी बाहर निकल पड़ा। तीनो कुत्ते उसी पानी की धारा में नीचे मरे पड़े थे।

लड़ते बकरे और सियार

एक दिन एक सियार किसी गाँव से गुजर रहा था। उसने गाँव के बाजार के पास लोगों की एक भीड़ देखी। कौतूहलवश वह सियार भीड़ के पास यह देखने गया कि क्या हो रहा है। सियार ने वहां देखा कि दो बकरे आपस में लड़ाई कर रहे थे। दोनों ही बकरे काफी तगड़े थे इसलिए उनमे जबरदस्त लड़ाई हो रही थी। सभी लोग जोर-जोर से चिल्ला रहे थे और तालियां बजा रहे थे। दोनों बकरे बुरी तरह से लहूलुहान हो चुके थे और सड़क पर भी खून बह रहा था।

जब सियार ने इतना सारा ताजा खून देखा तो अपने आप को रोक नहीं पाया। वह तो बस उस ताजे खून का स्वाद लेना चाहता था और बकरों पर अपना हाथ साफ़ करना चाहता था। सियार ने आव देखा न ताव और बकरों पर टूट पड़ा। लेकिन दोनों बकरे बहुत ताकतवर थे। उन्होंने सियार की जमकर धुनाई कर दी जिससे सियार वहीँ पर ढेर हो गया।

सीख: लालच से प्रेरित होकर कोई भी अनावश्यक कदम नहीं उठाना चाहिए और कोई कदम उठाने से पहले भलीभांति सोच लेना चाहिए।

Hindi Story for Kids – आखिरी प्रयास

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एक समय की बात है. एक राज्य में एक प्रतापी राजा राज करता था. एक दिन उसके दरबार में एक विदेशी आगंतुक आया और उसने राजा को एक सुंदर पत्थर उपहार स्वरूप प्रदान किया। राजा वह पत्थर देख बहुत प्रसन्न हुआ। उसने उस पत्थर से भगवान विष्णु की प्रतिमा का निर्माण कर उसे राज्य के मंदिर में स्थापित करने का निर्णय लिया और प्रतिमा निर्माण का कार्य राज्य के महामंत्री को सौंप दिया।

महामंत्री गाँव के सर्वश्रेष्ठ मूर्तिकार के पास गया और उसे वह पत्थर देते हुए बोला, “महाराज मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करना चाहते हैं. सात दिवस के भीतर इस पत्थर से भगवान विष्णु की प्रतिमा तैयार कर राजमहल पहुँचा देना. इसके लिए तुम्हें ५० स्वर्ण मुद्रायें दी जायेंगी.”

५० स्वर्ण मुद्राओं की बात सुनकर मूर्तिकार ख़ुश हो गया और महामंत्री के जाने के उपरांत प्रतिमा का निर्माण कार्य प्रारंभ करने के उद्देश्य से अपने औज़ार निकाल लिए. अपने औज़ारों में से उसने एक हथौड़ा लिया और पत्थर तोड़ने के लिए उस पर हथौड़े से वार करने लगा. किंतु पत्थर जस का तस रहा। मूर्तिकार ने हथौड़े के कई वार पत्थर पर किये. किंतु पत्थर नहीं टूटा।

पचास बार प्रयास करने के उपरांत मूर्तिकार ने अंतिम बार प्रयास करने के उद्देश्य से हथौड़ा उठाया, किंतु यह सोचकर हथौड़े पर प्रहार करने के पूर्व ही उसने हाथ खींच लिया कि जब पचास बार वार करने से पत्थर नहीं टूटा, तो अब क्या टूटेगा। वह पत्थर लेकर वापस महामंत्री के पास गया और उसे यह कह वापस कर आया कि इस पत्थर को तोड़ना नामुमकिन है. इसलिए इससे भगवान विष्णु की प्रतिमा नहीं बन सकती।

महामंत्री को राजा का आदेश हर स्थिति में पूर्ण करना था. इसलिए उसने भगवान विष्णु की प्रतिमा निर्मित करने का कार्य गाँव के एक साधारण से मूर्तिकार को सौंप दिया। पत्थर लेकर मूर्तिकार ने महामंत्री के सामने ही उस पर हथौड़े से प्रहार किया और वह पत्थर एक बार में ही टूट गया।

पत्थर टूटने के बाद मूर्तिकार प्रतिमा बनाने में जुट गया. इधर महामंत्री सोचने लगा कि काश, पहले मूर्तिकार ने एक अंतिम प्रयास और किया होता, तो सफ़ल हो गया होता और ५० स्वर्ण मुद्राओं का हक़दार बनता।

कहानी से सिख:

मित्रों, हम भी अपने जीवन में ऐसी परिस्थितियों से दो-चार होते रहते हैं। कई बार किसी कार्य को करने के पूर्व या किसी समस्या के सामने आने पर उसका निराकरण करने के पूर्व ही हमारा आत्मविश्वास डगमगा जाता है और हम प्रयास किये बिना ही हार मान लेते हैं

कई बार हम एक-दो प्रयास में असफलता मिलने पर आगे प्रयास करना छोड़ देते हैं। जबकि हो सकता है कि कुछ प्रयास और करने पर कार्य पूर्ण हो जाता या समस्या का समाधान हो जाता। यदि जीवन में सफलता प्राप्त करनी है, तो बार-बार असफ़ल होने पर भी तब तक प्रयास करना नहीं छोड़ना चाहिये, जब तक सफ़लता नहीं मिल जाती। क्या पता, जिस प्रयास को करने के पूर्व हम हाथ खींच ले, वही हमारा अंतिम प्रयास हो और उसमें हमें कामयाबी प्राप्त हो जाये।

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